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प्रतीकात्मक तसवीर

दुनिया की शीर्ष 300 यूनिवर्सिटी में भारत की एक भी नहीं 

शिक्षा के मामले में भारत को जोरदार झटका लगा है क्योंकि दुनिया भर की 300 यूनिवर्सिटी में एक भी भारतीय यूनिवर्सिटी नहीं है। ऐसा 2012 के बाद पहली बार हुआ है। हालाँकि भारत के लिए सुखद ख़बर है कि इसमें पिछले साल के मुक़ाबले भारतीय यूनिवर्सिटी की संख्‍या इस बार ज़्यादा है। 2018 में जहाँ 49 यूनिवर्सिटी को इसमें जगह मिली थी वहीं इस बार दुनिया भर की 1300 यूनिवर्सिटी में से 56 यूनिवर्सिटी ने इसमें जगह बनाने में सफलता हासिल की है। 

टाइम्स हायर एजुकेशन (टीएचई) की ओर से जारी वर्ल्ड रैंकिंग सूची में यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्‍सफ़ोर्ड फिर से शीर्ष स्थान पर है। यह पिछले साल भी विश्व रैंकिंग में टॉप पर रही थी। दूसरे नंबर पर कैलिफ़ोर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय रहे हैं। स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय और एमआईटी को भी टॉप 5 की सूची में जगह मिली है। 

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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस बैंगलुरु की रैंकिंग 50 स्थान गिरी है। पिछले साल यह संस्थान 251-300 के ग्रुप में था जबकि इस बार यह 301-350 के ग्रुप में आ गया है। इसके अलावा पंजाब स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रोपड़ भी भी इस बार टॉप 350 रैंकिंग में पहुंच गया है जबकि आईआईटी इंदौर 351-400 के ग्रुप में पहुँचने में सफल रहा है। 

2008-09 के बाद स्थापित किए गए दूसरी पीढ़ी के आईआईटी संस्थान अन्य बड़े स्कूलों और मुंबई और दिल्ली के पुराने आईआईटी संस्थानों से आगे निकल गए हैं। इसका कारण उनका शोध उद्धरणों में बेहतर स्कोर करना है। आईआईटी मुंबई, दिल्ली और खड़गपुर 401-500 के ग्रुप में आए हैं और आईआईटी खड़गपुर और दिल्ली पिछले साल के मुक़ाबले 100 स्थान आगे बढ़े हैं। 

शीर्ष 300 यूनिवर्सिटी में भारत का एक भी नहीं होने को उच्च शिक्षा नीति के लिए ज़ोरदार झटका माना जा रहा है, क्योंकि भारत लगातार यह कोशिश कर रहा है कि उसके शिक्षण संस्थानों को दुनिया भर में पहचान मिले।

रैंकिंग सर्वे को देखें तो पता चलता है कि भारतीय संस्थान अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण के मामले में पिछड़ रहे हैं, जबकि सरकार की कोशिश है कि कम आय और विकासशील देशों के लिए भारत एक बेहतर देश बने लेकिन ऐसा होना आसान नहीं दिखता। 

इस सूची में मुंबई स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ़ केमिकल टेक्नोलॉजी और आईआईटी गांधी नगर ने 501-600 के समूह में जगह बनाई है जबकि इससे पहले उन्हें इस सूची में जगह नहीं मिलती थी। इसी तरह, दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पहली बार 601-800 समूह में जगह बनाने में सफ़ल रहा है। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर जोर 

याद दिला दें कि इस साल आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उच्च शिक्षा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर जोर दिया था। वित्त मंत्री ने विदेशी छात्रों को लुभाने के लिए 'स्टडी इन इंडिया' प्रोग्राम शुरू करने की भी बात कही थी। वित्त मंत्री ने कहा था कि सरकार उच्च शिक्षा के लिए 400 करोड़ रुपये खर्च करेगी। उन्होंने कहा था कि दुनिया के टॉप 200 कॉलेज में भारत के सिर्फ 3 कॉलेज हैं, ऐसे में सरकार इनकी संख्या को बढ़ाने पर जोर देगी। 

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टीएचई की रैंकिंग के एडिटर एली बॉथवेल की ओर से जारी ई-मेल में कहा गया है, ‘तेज़ी से बढ़ती युवा आबादी और अर्थव्यवस्था एवं अंग्रेजी भाषा के निर्देशों के इस्तेमाल को देखते हुए वैश्विक उच्चतर शिक्षा में भारत के लिए काफ़ी संभावनाएं हैं। लेकिन यह काफ़ी निराशाजनक है कि इस साल भारत को टॉप 300 रैंकिंग में जगह नहीं मिली है। सिर्फ़ कुछ ही संस्थान आगे बढ़े हैं। भारत की सरकार के पास अपनी टॉप यूनिवर्सिटियों की ग्लोबल रैंकिंग को सुधारने के लिए और विदेशी छात्रों को पढ़ाई के लिए आकर्षित करने के लिए बड़े क़दम हैं लेकिन इसके लिए यह ज़रूरी है कि लगातार बढ़ रही वैश्विक प्रतिस्पर्धा के बीच बहुत ज़्यादा निवेश किया जाए।'

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पिछले कुछ सालों से ऐसी ख़बरें आती रही हैं कि भारत के कई राज्यों में इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीटें खाली पड़ी हैं। कई साल पहले इंजीनियिंरग को बेहतर भविष्य माना जाता था लेकिन अब इंजीनियरिंग की डिग्री लिये कई छात्र रोज़गार के लिए भटक रहे हैं। हाल ही में ख़बर आई थी कि महाराष्ट्र के इंजीनियरिंग कॉलेजों में 70% तक सीटें खाली हैं। ऐसे में उच्च शिक्षा की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। 

भारत सरकार अगर चाहती है कि दुनिया भर के छात्र-छात्राएँ यहाँ पढ़ने आएँ तो उसे अपने शीर्ष विश्वविद्यालयों में वे सभी व्यवस्थाएँ करनी होंगी जो कि इस रैंकिंग में शीर्ष पर रहे विश्वविद्यालयों में हैं।  इसके साथ ही सरकार को शोध को बढ़ावा देना होगा क्योंकि वैश्विक स्तर पर, विशेषकर एशिया में बेहतर शिक्षा को लेकर प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है। 

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क़मर वहीद नक़वी

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