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बालाकोट हमले में क्या वाक़ई जैश के 300 आतंकवादी मारे गए थे?

क्या भारतीय वायु सेना के हमले में जैश-ए-मुहम्मद के 300 आतंकवादी वाक़ई मारे गए थे? भारतीय वायु सेना के एअर वाइस मार्शल आर.जी.के.कपूर ने गुरुवार को दिल्ली में हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'हमें जो लक्ष्य दिया गया, वह हमने हासिल कर लिया, यह एक सफल मिशन था।'
इस मामले पर गहरा विवाद खड़ा हो गया है। अमेरिकी थिंकटैंक अटलांटिक काउंसिल से जुड़ी डिजिटल फोरेंसिक रिसर्च लैब और ऑस्ट्रेलिया की इंटरनेशनल साइबर पॉलिसी सेंटर ने सैटेलाइट तसवीरों के आधार पर दावे किए हैं कि बालाकोट में जाबा पहाड़ी पर बम तो गिराए गए हैं, पर उससे किसी तरह का कोई नुक़सान नहीं हुआ है।
प्रतिष्ठित समाचार एजेन्सी 'रॉयटर्स' और खाड़ी के चैनल 'अल जज़ीरा' के संवाददाताओं ने घटनास्थल तक जा कर जो देखा, उसके मुताबिक़ बालाकोट की जाबा पहाड़ी पर चार बम तो गिरे, लेकिन उन बमों से जानमाल का कोई नुक़सान नहीं हुआ। 'अल जज़ीरा' के संवाददाता का कहना है कि पहाड़ी पर बनी जिस इमारत को जैश का आतंकी शिविर बताया जाता है, वह वहाँ जस की तस खड़ी है और बम उससे काफ़ी दूर ख़ाली ज़मीन पर गिरे हैं। 
'रायटर्स' संवाददाता का कहना है कि जिस इमारत में मदरसा यानी जैश के आतंकी शिविर के चलने की बात कही जाती है, उसे या उसके आसपास कोई नुक़सान हुआ हो, ऐसा नहीं लगता।
लेकिन इन रिपोर्टो के उलट भारतीय वायु सेना और रक्षा विभााग से जुड़े दूसरे लोगों ने अपना यह दावा दुहराया है कि हमले में जैश को भारी नुकस़ान हुआ है। भारतीय रक्षा विभाग के सूत्रों का कहना है कि सिंथेटिक अपरचर रडार (एसएआर) की तसवीरों से साफ़ है कि हमले में बालाकोट का आतंकवादी शिविर नष्ट हो गया। 
सुरक्षा मामलों के अमेरिकी थिंक टैंक अटलाँटिक काउंसिल की डिजिटल फ़ॉरेन्सिक रिसर्च लैब (डीएफ़आर लैब) ने  सैटेलाइट इमेजरी के ज़रिये इसकी पड़ताल की कि बम कहाँ गिरे। डीएफ़आर लैब ने अपनी पड़ताल के बाद इस पर हैरानी जतायी कि बम जैश के आतंकी ठिकाने से इतनी दूर क्यों गिरे? उसने कहा कि यह वाक़ई बड़ा रहस्यमय है। कुल मिला कर इसमें कोई सन्देह नहीं है कि भारतीय वायुसेना ने बड़ी बहादुरी से जाबा पहाड़ी पर धावा बोला और बम गिराये, लेकिन वहाँ से लौटे विदेशी पत्रकारों और डीएफ़आर लैब सभी का कहना है कि बम असली लक्ष्य से काफ़ी दूर गिरे।  

क्या बम गिराया गया था?

डीएफ़आर लैब का कहना है कि मौक़े पर पड़े बमों के टुकड़ों से साफ़ पता चलता है कि भारतीय वायु सेना ने इज़रायल निर्मित स्पाइस-2000 प्रिसीज़न बम का इस्तेमाल किया। इस बम की ख़ूबी यह है कि इसे इस्तेमाल करने से पहले इसमें अक्षांश और देशांतर की सटीक जानकारी डाल दी जाती है। यह बम जीपीएस सिस्टम पर काम करता है और इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल प्रणाली का इस्तेमाल करता है। यानी यह बम छोड़े जाने के बाद ठीक उसी अक्षांश और रेखांश पर पहुँचता है, जो इसकी प्रणाली में फीड किया गया हो। साथ ही जिस जगह को निशाना बनाना है, उस जगह की तसवीर भी इसमें पहले से फ़ीड कर दी जाती है और बम अपने निश्चित निशाने पर पहुँच कर इसमें फ़ीड की गयी तसवीर का मिलान निशाना बनाये जाने वाली जगह के वास्तविक दृश्य से करता है और दोनों का मिलान हो जाने पर निशाने पर वार करता है। 
स्पाइस-2000 प्रिसीज़न बम जिस इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल प्रणाली का इस्तेमाल करता है, वह इतनी सटीक है कि इसके निशाने में ज़्यादा से ज़्यादा 100 मीटर तक की चूक ही हो सकती है। तो फिर सवाल उठता है कि बम इतनी दूर जा कर कैसे गिरे?
डीएफ़आर लैब का कहना है शुरुआती रिपोर्टों में कहा गया था कि 1,000 किलोग्राम (यानी लगभग 2000 पाउंड) के बम गिराए गए। स्पाइस-2000 का भी बिल्कुल यही पेलोड होता है। बाद में आयी रिपोर्टों से इस बात की पुष्टि भी हो गयी कि स्पाइस-2000 का ही इस्तेमाल इस सर्जिकल स्ट्राइक में किया गया था।
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डीएफ़आर लैब ने उस जगह की भी समीक्षा की है जहां बम गिरे पाये गये। सैटेलाइट से मिली तस्वीरें उस जगह की तस्वीरों से एकदम मिलती हैं, जिन्हें पाकिस्तानी सेना के जनसंपर्क विभाग के प्रमुख ने ट्वीट पर जारी किया था। ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर चल रही उन तस्वीरों से भी मिलती हैं, जो बम गिराये जाने के अगले दिन लोगों ने पोस्ट की थीं। 
No Jaish terrorist killed in IAF Balakote attack, says International media - Satya Hindi
बालाकोट में गिराए गए बम के टुकड़े और उससे मैच करता हआ हथियारडीएफ़आर लैब

कितना नुक़सान हुआ?

डीएफ़आर लैब ने अपनी पड़ताल में भारतीय न्यूज़ एजेन्सी एएनआई द्वारा जारी जैश के आतंकी शिविर के मुख्य गेट की तसवीर का उल्लेख भी किया है। दिखावे के तौर पर इस इमारत में 'मदरसा तालीम-उल-क़ुरान' चलाया जाता था। इसके गेट पर बने गार्ड रूम की नीली छत है। डीएफ़आर ने इस तसवीर का मिलान उस जगह की सैटेलाइट तसवीर से किया और पाया कि दोनों तस्वीरों का मिलान हो रहा है। भारतीय वायुसेना का हमला 26 फ़रवरी को हुआ था। उस दिन की सैटेलाइट तसवीर उपलब्ध नहीं हो सकी। 
लेकिन डीएफ़आर लैब ने घटना के एक दिन पहले यानी 25 फ़रवरी और एक दिन बाद यानी 27 फ़रवरी की सैटेलाइट तस्वीरों का मिलान कर पाया कि बम गिरने से हुआ नुक़सान सिर्फ़ पेड़-पौधों से भरे इलाक़े में ही हुआ, किसी इमारत को उससे नुक़सान नहीं पहुँचा।
ऑस्ट्रेलिया स्थित इंटरनेशनल साइबर पॉलिसी सेंटर का भी कहना है कि उसने प्लैनेट लैब इंक से मिली 27 फ़रवरी की सुबह की सैटेलाइट तस्वीरों का अध्ययन किया और पाया कि जिस जगह बम गिराने की बात कही जा रही है, उस जगह किसी तरह के नुक़सान होने का कोई लक्षण नहीं है। उसने यह भी कहा है कि तीन जगह बम गिराए जाने के संकेत मिलते हैं, बम का असर दिखता है। पर उस बम गिरने से कोई नुक़सान हुआ हो, यह नहीं दिखता है। सेंटर ने ज़ोर देकर कहा है कि लगता है कि 300 लोगों के मारे जाने की बात झूठी है।
No Jaish terrorist killed in IAF Balakote attack, says International media - Satya Hindi

'सेना के पास हैं पुख़्ता सबूत'

दूसरी ओर, भारतीय वायु सेना का कहना है कि उसके पास अपना दावा साबित करने के लिए सिंथेटिक अपरचर रडार (एसएआर) की तसवीरें हैं, जो दिखाती हैं कि हमले में जैश को कितना नुक़सान हुआ। 
सेना ने कहा है, 'हमारे पास हमले के पहले और बाद की एसएआर तसवीरें हैं, जिन्हें देखने से ही साफ़ हो जाता है कि जहाँ बम गिराए गए थे, वहाँ क्या हुआ। पाकिस्तान ने ज़रूर जल्दी-जल्दी उस इलाक़े को दुरुस्त करने की कोशिश की है।
सेना का कहना है, 'हमने सरकार को सबूत दे दिए हैं। यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह उसे जारी करती है या नहीं।'  रक्षा अधिकारियों का कहना है कि मिराज-2000 जहाज़ ने स्पाइस-2000 प्रीसिज़न बम और एजीएम-142 मिसाइल का इस्तेमाल किया, जो बिल्कुल सटीक निशाने पर लगती हैं, लेकिन बादल होने की वजह से यह मुमकिन है कि वह उसकी तसवीर नहीं ले पाई हो। लेकिन मिराज के साथ चल रहे जहाज़ सुखोई 30 एमकेआई ने एसएआर तसवीरें ली हैं। ये तसवीरें बताती हैं कि हमला अचूक था और उससे भारी नुक़सान हुआ। 

क्या वाक़ई मदरसा ध्वस्त हुआ?

अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी अपने तौर पर इस मामले की तफ़्तीश की और अपने रिपोर्टर मौका-ए-वारदात पर भेजे। 'अल जज़ीरा' ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जिस जगह बम गिराये जाने की बात कही जाती है, वह सुनसान जंगल है। वहां देवदार के कई पेड़ गिरे हुए पाए गए, कुछ चट्टानें टूटी हुई थीं और कुछ पत्थर बिखरे हुए थे। पर वहाँ किसी मकान का मलबा नहीं दिखा। दरअसल, उस जगह कोई मकान है ही नहीं। जंगल है, पेड़ हैं, सुनसान ख़ाली जगह है और कुछ दूरी पर खाली मैदान है। 'अल जज़ीरा' को स्थानीय अस्पताल के लोगों ने बताया कि उनके यहाँ बम से ज़ख़्मी कोई व्यक्ति इलाज के लिए नहीं लाया गया, न ही उन्हें किसी की मौत की कोई जानकारी है। चार जगह बम गिराए गए थे। भारतीय वायु सेना ने भी यही कहा था। दूसरी जगह जहां बम गिरे, वहाँ से थोड़ी देर की दूरी पर कुछ घर ज़रूर थे। 
वहीं रहने वाले नूरन शाह धमाके की आवाज सुन बाहर निकले और उनके सिर में पत्थर का एक टुकड़ा जा लगा, उन्हें मामूली चोट आई। उन्होंने थोड़ी दूरी पर आग जलती हुई और धुँआ उठता हुआ देखा। 'रॉयटर्स' के रिपोर्टर ने कहा कि वहाँ घर के बाहर बैठे कुछ लोगों से उनकी मुलाक़ात हुई। एक ने कहा, 'यहाँ मैं रहता हूँ, क्या मैं आपको आतंकवादी लगता हूँ?'
No Jaish terrorist killed in IAF Balakote attack, says International media - Satya Hindi
जिस जगह बम गिराया गया था, उस जगह की सैटेलाइट से ली गई तस्वीर और वास्तविक जगह की तस्वीर। डीएफ़आर लैब

मदरसे का सच

'अल जज़ीरा' का कहना है कि जिस जगह बम गिरे, 'मदरसा तालीम-उल-क़ुरान' उससे तक़रीबन एक किलोमीटर दूर है। नीचे दूर सड़क पर बाक़यदा उसका साइन बोर्ड लगा है, जिस पर यह भी लिखा है कि मदरसे के संस्थापक मौलाना मसूद अज़हर और प्रशासक मुहम्मद युसुफ़ अज़हर हैं।  'अल जज़ीरा' रिपोर्टर का कहना है कि उसे मदरसे तक नहीं जाने दिया गया। लेकिन स्थानीय लोगों से बात करने पर कुछ लोगों ने बताया कि वहाँ मुजाहिदीन रहते हैं, उन्हें हथियारों की ट्रेनिंग दी जाती है, उन्हें तरह-तरह के हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है, उन्हें लड़ना सिखाया जाता है। लेकिन कुछ और लोगों का कहना था कि वहाँ सिर्फ़ मदरसा चलता है, क़ुरान की तालीम दी जाती है और वहाँ किसी तरह के हथियार की ट्रेनिंग की बात उन्होंने न देखी, न सुनी।
No Jaish terrorist killed in IAF Balakote attack, says International media - Satya Hindi
मदरसा तालीम-उल-क़ुरान का रास्ता बताता हुआ साइन बोर्ड अल जज़ीरा
दूसरी ओर, कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि बीते साल अप्रैल में मसूद अज़हर का भाई अब्दुल रऊफ़ असगर वहाँ गया था, उसने तक़रीर की थी और लोगों से जिहाद में शामिल होने को कहा था। कुछ लोगों का कहना था कि वहाँ पहले कुछ मुजाहिदीन रहते थे, पर अब वहाँ यह सब नहीं होता।
समाचार एजेन्सी 'रायटर्स' ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि जाबा जंगलों से भरी पहाड़ियों और झरनों का इलाक़ा है, जो एबटाबाद से क़रीब 60 किलोमीटर दूर है। स्थानीय निवासियों के मुताबिक़ यहाँ क़रीब चार-पाँच सौ लोगों की ही आबादी है। 'रायटर्स' के रिपोर्टर का भी कहना है कि सैनिकों ने पत्रकारों को मदरसे की तरफ़ नहीं जाने दिया, लेकिन मदरसे के पिछवाड़े दूर पर जहाँ वह खड़े थे, वहाँ से देखने पर ऐसा क़तई नहीं लगा कि मदरसे को कोई नुक़सान पहुँचा हो। 'रायटर्स' संवाददाता का कहना है कि स्थानीय लोगों ने उसे वे जगहें दिखायीं, जहाँ चार बमों के गिरने से गड्ढे बन गये थे। ये सब जंगली इलाक़े में थे। लोगों ने कहा कि यहाँ कोई आदमी नहीं मरा, देवदार के कुछ पेड़ ज़रूर 'मरे' हैं।
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