loader

मनरेगा के खजाने में पैसा ख़त्म, मज़दूरों की दिहाड़ी पर संकट 

गांवों में रोज़गार देने की सबसे बड़ी सरकारी योजना मनरेगा के खजाने में पैसा ख़त्म हो गया है। इस योजना का नेगेटिव नेट बैलेंस 8,686 करोड़ रुपये हो गया है और इससे 21 राज्य प्रभावित हुए हैं। इसका सीधा असर उन लाखों दिहाड़ी मजदूरों पर होगा, जिन्हें इस योजना के तहत मजदूरी मिलती है। 

निश्चित रूप से ऐसे वक़्त में जब ग़रीब लोगों पर लॉकडाउन की मार पड़ी है तो दिहाड़ी मज़दूरी करने वालों को अगर उनका दिन भर का पैसा भी नहीं मिला या देर से मिला तो उनके सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो जाएगा। 

यूपीए सरकार ने लांच की थी योजना 

मनरेगा को यूपीए सरकार ने लांच किया था और इसके तहत साल भर में कम से कम 100 दिन का रोज़गार मिलता है। लॉकडाउन के दौरान सरकार ने इसे 1.11 लाख करोड़ का बजट दिया था और इस योजना से रिकॉर्ड 11 करोड़ लोगों को सहारा मिला था। 

लेकिन 2021-22 में इसका बजट घटाकर 73,000 करोड़ रुपये कर दिया गया। केंद्र सरकार ने कहा था कि अगर यह पैसा ख़त्म हो गया तो वह पैसा जारी करेगी। लेकिन 29 अक्टूबर को इसका ख़र्च 79,810 करोड़ रुपये हो गया है और 21 राज्य ऐसे हैं, जिनका नेट बैलेंस नेगेटिव हो गया है। ऐसे राज्यों में भी आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल की हालत सबसे ज़्यादा ख़राब है। 

ताज़ा ख़बरें

अब मज़दूरों को उसी सूरत में उनकी मज़दूरी मिल सकती है, जब ये राज्य सरकारें अपने फंड से उनके लिए कुछ व्यवस्था करें। 

मज़दूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक निखिल डे ने ‘द हिंदू’ से कहा कि वे मनरेगा के बंद हो जाने जैसे हालात का सामना कर रहे हैं। ग़रीब और कमज़ोर लोग पहले ही महामारी की मार के कारण दबे हुए हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में दिए एक आदेश में कहा था कि मनरेगा के तहत मज़दूरी का बकाया रहना सरकार के द्वारा किया गया संवैधानिक उल्लंघन है। 

देश से और ख़बरें

कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि मनरेगा के डाटा से पता चलता है कि काम की मांग करने वाले 13 फ़ीसदी परिवारों को काम नहीं दिया गया। 

लॉकडाउन में मिला सहारा

मनरेगा से पहले भी लाखों लोगों को रोज़गार मिलता रहा है। लेकिन लॉकडाउन के बाद जब बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार हुए तो इस योजना ने ही ऐसे लोगों को सहारा दिया। कुछ महीने पहले आई एक रिपोर्ट के मुताबिक़, अच्छे-खासे पढ़े लिखे लोगों की भी जब लॉकडाउन के दौरान नौकरी गई तो उन्होंने भी मनरेगा के तहत काम किया। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें