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'अभी बूस्टर डोज की ज़रूरत नहीं, ‘भारी’ तीसरी लहर के आने की संभावना भी कम'

एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि मौजूदा सूरत-ए-हाल में बूस्टर डोज की ज़रूरत नहीं है। बल्कि ज़रूरत इस बात की है कि वैक्सीन ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को लगाई जाए। गुलेरिया ने यह भी कहा कि हर गुजरते दिन के साथ भारी-भरकम तीसरी लहर आने की संभावना भी कम होती जा रही है। 

जबकि बीते जुलाई महीने में गुलेरिया ने कहा था कि जिन लोगों ने कोरोना टीके की दो खुराक़ें ले ली हैं, उन्हें बूस्टर डोज़ यानी तीसरी खुराक़ लेनी पड़ सकती है। गुलेरिया ने इसकी वजह बताते हुए कहा था कि कोरोना वायरस के नए वैरिएंट पर मौजूदा टीके प्रभावी नहीं भी हो सकते हैं। 

डॉक्टर गुलेरिया ने कहा था कि इसकी वजह ये भी है कि लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है और लगता है कि शायद टीके के बाद बूस्टर डोज़ की ज़रूरत होगी। 

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गुलेरिया ने मंगलवार को एक किताब के विमोचन पर यह बात कही। उन्होंने कहा कि हमारा सीरो पॉजिटिविटी रेट भी बहुत ज़्यादा है। 

जबकि नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कहा है कि बूस्टर डोज की ज़रूरत है या नहीं, इसे लेकर और अधिक शोध किए जाने की ज़रूरत है। 

कोरोना की तीसरी लहर को लेकर डॉ. गुलेरिया ने कहा कि हमारा टीकाकरण अभियान आगे बढ़ रहा है और वैक्सीन भी असरदार ढंग से काम कर रही हैं, ऐसे में किसी जोरदार तीसरी लहर के आने की संभावना कम होती जा रही है। 

यूरोप, अमेरिका में संक्रमण बढ़ा

डॉ. गुलेरिया का यह बयान ऐसे वक़्त में आया है जब दुनिया के कई देशों में फिर से संक्रमण बढ़ रहा है। अमेरिका के कई राज्यों में हालात इतने ख़राब हो रहे हैं जितने पिछले साल भी नहीं थे। 15 राज्यों में पिछले साल से ज़्यादा आईसीयू बेडों पर कोरोना संक्रमित मरीज़ भर्ती हैं। यूरोप के देशों में भी स्थिति गंभीर होती जा रही है। 

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कई देशों में लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध लगाए गए हैं और सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ लोग सड़कों पर उतर आए हैं। कई जगहों पर हिंसा भी हुई है। यूरोप के इन अधिकतर देशों में आधी आबादी से ज़्यादा को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। 

सवाल यह है कि क्या कोरोना का ख़तरा अभी टला नहीं है और भारत को भी सचेत होने की ज़रूरत है? भारत में भी तीसरी लहर के आने की आशंकाएं जताई जा रही हैं और इसीलिए टीकाकरण अभियान को तेज़ किया जा रहा है लेकिन डॉ. गुलेरिया का कहना है कि किसी बड़ी लहर के आने की संभावना कम है। 

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क़मर वहीद नक़वी

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