इजराइली स्पाइवेयर पेगासस से भारत में जासूसी कराने के जो आरोप लग रहे हैं उसे कौन करा रहा होगा और इतने खर्चीले स्पाइवेयर से कौन सौदा कर सकता है? एनएसओ ही साफ़ तौर पर कहता रहा है कि वह सिर्फ़ सरकारों को ही वह साफ़्टवेयर मुहैया कराता है, लेकिन यदि इसकी बातों को खारिज भी कर दिया जाए तो पेगासस पर सालाना क़रीब साढ़े 3 अरब रुपये ख़र्च करने की क्षमता किसके पास हो सकती है? वह भी क़रीब 300 लोगों की निगरानी के लिए ही। 2019 में भी पेगासस से जासूसी कराए जाने के आरोप लगे थे।
'द गार्डियन', 'वाशिंगटन पोस्ट' और 'द वायर' ने अब दुनिया भर में क़रीब 50 हज़ार फ़ोन को पेगासस से निशाना बनाए जाने की ख़बर दी है। 'द वायर' ने एक रिपोर्ट में कहा है कि क़रीब 300 भारतीयों को निशाना बनाया गया है। तो सवाल है कि जिसने भी यह जासूसी कराई उसने कितने रुपये रुपये चुकाए होंगे?
'द इकोनॉमिक टाइम्स' ने 2019 में सूत्रों के हवाले से इस पर एक रिपोर्ट छापी थी कि पेगासस जासूसी के लिए कितने रुपये वसूलता है। उस रिपोर्ट के अनुसार एनएसओ पेगासस के लाइसेंस के लिए 7-8 मिलियन डॉलर यानी 52 करोड़ से लेकर 59 करोड़ रुपये सालाना ख़र्च वसूलता है। रिपोर्टों में कहा गया है कि एक लाइसेंस से 50 फ़ोन की निगरानी की जा सकती है। यदि 300 फ़ोन की निगरानी करनी हो तो छह लाइसेंस की ज़रूरत होगी और ऐसे में 3.13 अरब से लेकर 3.58 अरब रुपये सालाना का ख़र्च आएगा।
हालाँकि यह रिपोर्ट 2019 की थी इसलिए अब इन दो सालों में लाइसेंस के नियम-शर्तें और फी भी बदली हो सकती है।
सोशल मीडिया पर भी कुछ इसी तरह के दावे किए जा रहे हैं। ख़ुद को लेखक बताने वाले शिवम शंकर सिंह ने ट्विटर पर पोस्ट किया है, 'जब आप पेगासस स्पाईगेट न्यूज़ पढ़ रहे हैं तो याद रखें कि इसकी क़ीमत प्रति लाइसेंस $7-8 मिलियन है, और एक लाइसेंस का उपयोग 50 फ़ोन पर किया जा सकता है।
यह सभी तरह का डाटा देता है- कॉल, संदेश, कीस्ट्रोक, कैमरा + माइक्रोफ़ोन दूर से ही सक्रिय हो जाता है... पूरा नियंत्रण। इसका मतलब है…'
While you follow the #Pegasus #spygate stories, remember that it costs $7-8 Million per license, and one license can be used on 50 phones.
— Shivam Shankar Singh (@ShivamShankarS) July 18, 2021
It throws off ALL data - calls, messages, keystrokes, remote activation of camera + microphone… complete access. What this means is…
तो लोगों पर निगरानी के लिए इतने रुपये ख़र्च कौन कर सकता है? इस मुद्दे पर सरकार पर सवाल उठने पर वह इन आरोपों से इनकार करती रही है। एक दिन पहले ही संसद में सरकार ने जवाब दिया तो घुमा फिराकर। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सरकार का पक्ष रखते हुए लोकसभा में कहा कि डाटा का जासूसी से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि केवल देशहित व सुरक्षा के मामलों में ही टैपिंग होती है, जो रिपोर्ट मीडिया में आई है, वो तथ्यों से परे और गुमराह करने वाले हैं।
इस बीच 'द गार्डियन' अख़बार ने अपने पहले पन्ने पर भारत में पेगासस से जासूसी कराए जाने की ख़बर कुछ इस तरह दी है।
बता दें कि इससे पहले नवंबर 2019 में, डीएमके के लोकसभा सांसद दयानिधि मारन ने सदन के पटल पर पूछा था कि क्या सरकार वाट्सऐप कॉल और संदेशों को टैप करती है, और क्या सरकार इस उद्देश्य के लिए पेगासस का उपयोग करती है।
तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किशन रेड्डी ने लिखित प्रतिक्रिया में सीधे टैपिंग या पेगासस के बारे में प्रश्नों का जवाब नहीं दिया था। प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा था, 'सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 केंद्र सरकार या राज्य सरकार को किसी भी जानकारी को इंटरसेप्ट, मॉनिटर या डिक्रिप्ट करने का अधिकार देती है।' उसके साथ यह भी कहा गया था कि यह देश की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए है।
लेकिन एक सवाल पेगासस से निगरानी कराए जाने को लेकर यह उठ रहा है कि यह सरकारी निगरानी तो है, लेकिन इससे भी बदतर यह है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि डाटा सरकार के पास ही रहता है। क्या होगा अगर इसे निजी व्यावसायिक हितों को बेच दिया जाए, जिनके पास न्यायाधीशों, मंत्रियों और अधिकारियों की निजी जानकारियाँ हों? क्या होगा अगर यह विदेशों में लीक हो रहा हो?
बता दें कि कांग्रेस ने एनएसओ के स्पाइवेयर पेगासस को लेकर खुलासे के बाद नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला किया है। उसने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार लोगों के बेडरूम में झांक रही है और जासूसी कर रही है। उन्होंने सीधे-सीधे आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने देशद्रोह किया है और उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ किया है। कांग्रेस ने प्रेस कॉन्फ़्रेस कर यह आरोप लगाया है। 'द गार्डियन' और वाशिंगटन पोस्ट सहित दुनिया भर के कई प्रतिष्ठित संस्थानों की रिपोर्टों में दावा किया गया है कि कई सरकारों ने 50,000 से अधिक फ़ोन नंबरों को ट्रैक करने के लिए इस पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है। इसमें पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, विपक्षी दलों के नेताओं, जजों आदि को निशाना बनाया गया है। इनमें भारतीय भी शामिल हैं।
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