सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर ख़बरों में है। अदालत की एक बेंच ने दूसरे बेंच की एक फ़ैसले पर रोक लगा दी है और उसके उलट फ़ैसला सुना दिया है। इस कदम की न्यायिक रूप से अनुचित बताया गया है।अदालत ने वरिष्ठों पर फ़र्जीवाड़ा करने का आरोप लगाते हुए पूछा गया है कि क्या पैसा ही सब कुछ है, क्या कोई नैतिकता नहीं बची है?
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जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच ने इस पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह अनुचित है, ‘याचिका कर्ताओं और उनके वकील ने तथ्यों को छिपाया है और अदालत से राहत पाने के लिए धोखाधड़ी की है। उन्होंने कहा, हमें इस पर गहरी आपत्ति है, इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है, यह न्यायिक गड़बड़ी की पराकाष्ठा है। बेंच को इस तरह का आदेश नहीं देना चाहिए था।’
मामला क्या है?
जस्टिस मिश्रा और जस्टिस सिन्हा के खंडपीठ ने कोच्चि के 5 अपार्टमेंट कॉमप्लेक्स, जिसमें 300 फ्लैट थे, उन्हें गिरा देने का आदेश दिया था। अदालत का मानना था कि कोच्चि कोस्टल रीजनल ज़ोन के दिशानिर्देशों और मराडू म्युनिसपैलिटी के नियम-क़ानूनों का उल्लंघन किया गया था।बाद में केरल स्टेट कोस्टल ज़ोन मैनेजमेंट अथॉरिटी ने अदालत की ग्रीष्मकालीन बेंच में अपील की और मकानों को गिराए जाने पर रोक लगाने की माँग की थी। जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एम. आर. शाह ने 21 जून को इसे खारिज कर दिया। बाद में फ्लैट के मालिकों ने एक और याचिका दी और कहा कि उनकी बात उस कमेटी ने नहीं सुनी, जिसने कथित उल्लंघन पर रिपोर्ट तैयार की थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए इंदिरा बनर्जी और अजय रस्तोगी के खंडपीठ ने कहा कि नियम के मुताबिक इस याचिका की सुनवाई उस बेंच को ही करनी चाहिए, जिसने मकान गिराने का आदेश दिया था। इस बेंच ने अगले आदेश तक मकान गिराने पर रोक लगा दी।
जस्टिस मिश्रा और जस्टिस सिन्हा की बेंच ने कहा, ‘हमने याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद आप एक दूसरी बेंच के पास गए और दूसरा आदेश लेने के लिए तथ्यों को छुपाया। आपने अदालत से न्यायिक रूप से ग़लत काम कराया। यह बिल्कुल फ़र्जीवाड़ा है।’
इस मामले के वकील और तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि उन्हें पूरी बात की जानकारी नहीं थी। उन्हें कड़ी फटकार लगाते हुए अदालत ने कहा, ‘मुमकिन है कि आपको पूरी बात पता न हो। पर दूसरों को सब कुछ पता था। जानबूझ कर फ़र्जीवाड़ा किया गया। उन्हें लगता है कि वे इस तरह का काम कर बच कर निकल जाएँगे।’
अदालत ने बनर्जी को फटकार लगाते हुए कहा, ‘इस पूरे मामले में दो-तीन वरिष्ठ वकील लगे हुए हैं, क्या कोई नैतिकता नहीं बची है? क्या पैसा ही सब कुछ है?’
बाद में कल्याण बनर्जी ने याचिका वापस लेने की अनुमति माँगी। अदालत ने इसकी इजाज़त दे दी, पर यह चेतावनी भी दी कि यदि यह मामला किसी और बेंच को ले जाया गया तो अदालत की अवमानना का मामला बनेगा।
जस्टिस मिश्रा ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि कुछ सरकारी अधिकारियों को लगता है कि वे सुप्रीम कोर्ट से खिलवाड़ कर सकते हैं। इन्हें सज़ा दी जानी चाहिए, ये लोग सुप्रीम कोर्ट से धोखाधड़ी करते हैं।
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