कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान देश भर में ऑक्सीजन की भारी किल्लत को लेकर हाहाकार मचा था। उस दौरान केंद्र सरकार द्वारा किस राज्य को कितनी ऑक्सीजन दी जा रही है, इसे लेकर विवाद खड़ा हुआ था और सुप्रीम कोर्ट ने 12 सदस्यों वाली टास्क फ़ोर्स क़ायम की थी। ऑक्सीजन किस तरह बांटी गई, इसे लेकर टास्क फ़ोर्स से रिपोर्ट मांगी गई थी।
अब इस टास्क फ़ोर्स की ऑडिट कमेटी ने जो रिपोर्ट दी है, उसके मुताबिक़ दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने उसे जितनी ज़रूरत थी, उससे 4 गुना ज़्यादा ऑक्सीजन की मांग की थी।
तब ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर केंद्र व दिल्ली सरकार के बीच जमकर नोक-झोंक भी हुई थी। ऑक्सीजन की कमी के कारण (अप्रैल-मई 2021) कई राज्यों में सैकड़ों लोगों को जान गंवानी पड़ी थी।
रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली सरकार की ओर से इतनी ज़्यादा ऑक्सीजन की मांग करने की वजह से 12 राज्यों को इस गैस के संकट का सामना करना पड़ा क्योंकि दूसरे राज्यों की ऑक्सीजन भी दिल्ली को ही देनी पड़ी।
ऑडिट कमेटी ने कहा है कि 29 अप्रैल से 10 मई के बीच दिल्ली में ऑक्सीजन की खपत के आंकड़ों में सुधार करना पड़ा क्योंकि कुछ अस्पतालों ने इसकी रिपोर्टिंग में बड़ी ग़लतियां की थीं। ऑडिट कमेटी के मुताबिक़, दिल्ली सरकार ने यह दिखाया कि राजधानी के अस्पतालों में ऑक्सीजन की खपत 1140 मीट्रिक टन है लेकिन ख़ामियों को दुरुस्त करने पर पता चला कि यह 209 मीट्रिक टन थी।
दिल्ली सरकार ने टास्क फ़ोर्स से कहा है कि यह जो भी मांग थी वह अस्पतालों की ओर से की गई थी और इसके लिए उन्होंने दस्तख़त किए फ़ॉर्म्स भी जमा किए थे। उसने कहा है कि वह इस मामले को देखेगी।
ऑडिट कमेटी की सिफ़ारिशें
ऑडिट कमेटी ने कुछ सिफ़ारिशें भी दी हैं। इनमें कहा गया है कि स्थानीय स्तर पर या आस-पास के बड़े शहरों में ऑक्सीजन पैदा करने के लिए रणनीति बनाई जानी चाहिए। साथ ही देश के सभी 18 बड़े महानगरों को ऑक्सीजन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की ज़रूरत है और ऐसे इंतजाम किए जाने चाहिए कि ये शहर कम के कम 100 मीट्रिक टन ऑक्सीजन को स्टोर कर सकें।
अदालत तक पहुंचा था मामला
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी के लिए केंद्र सरकार की आलोचना हुई थी। कई राज्यों में ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीज़ों की मौत के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था और कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि देश में ऑक्सीजन आवंटन में पूरी तरह फेरबदल करने की ज़रूरत है और साथ ही इस पूरी व्यवस्था का ऑडिट किए जाने और ज़िम्मेदारी तय किए जाने की भी ज़रूरत है।
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