हर मुद्दे पर राष्ट्रवाद की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी को क्या राष्ट्र की सुरक्षा की चिंता नहीं है? क्या वह इससे बिल्कुल परेशान नहीं है कि नागरिकता संशोधन विधेयक के प्रावधानों की आड़ में पाकिस्तान अपने जासूसों की घुसपैठ भारत में करवा सकता है और इससे देश की सुरक्षा को गंभीर ख़तरा है?
ये सवाल इसलिए उठते हैं कि भारत की ख़ुफ़िया एजंसी रीसर्च एंड एनलिसिस विंग यानी रॉ ने केंद्र सरकार को यह चेतावनी दी थी। उसने साफ़ शब्दों में कहा था कि पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजंसी आईएसआई नागरिकता संशोधन विधेयक के प्रावधानों की आड़ में भारत को नुक़सान पहुँचा सकता है।
लोकसभा ने सोमवार को यह विधेयक पास कर दिया। इसे बुधवार को राज्यसभा में पेश किया जाना है। इस विधेयक में व्यवस्था है कि 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से भारत आए हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदायों के लोगों को देश की नागरिकता दे दी जाएगी। इसमें मुसलमानों को छोड़ दिया गया है। विपक्ष का कहना है कि धर्म के आधार पर किसी तरह का भेदभाव संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है।
लेकिन सरकार का कहना है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में मुसलमान बहुसंख्यक है, उनके साथ भेदभाव या अत्याचार नहीं हुआ है, जबकि अल्पसंख्यकों के साथ ऐसा हुआ है। इसका एक पक्ष यह भी है कि पाकिस्तान में अहमदिया और शिया समुदायों के मुसलमानों के साथ भी भेदभाव की वारदात हुई हैं। इसी तरह म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार की ख़बरें आती रही हैं।
क्या कहा रॉ ने?
पर जिस ओर लोगों का ध्यान कम गया है, वह है सुरक्षा कारण। रॉ की आपत्ति सुरक्षा कारणों से ही है। सुरक्षा पर बनी
संयुक्त संसदीय समिति ने जनवरी में राज्यसभा और लोकसभा को वह रिपोर्ट सौंपी, जिसमें रॉ की आपत्तियों का ज़िक्र किया गया है।
रॉ के वरिष्ठ अफ़सरों ने समिति के सामने पेश हो कर कहा कि इस विधेयक से देश की सुरक्षा को ख़तरा है, भारत से दुश्मनी रखने वाले तत्व या ख़ुफ़िया एजेन्सी इसकी आड़ में अपने एजंट की घुसपैठ करा देंगे। इस तरह यह विधेयक क़ानून बना तो वह घुसपैठ कराने के लिए एक तरह से क़ानूनी फ़्रेमवर्क मुहैया करा देगा।
रॉ के संयुक्त सचिव सुजीत चटर्जी ने कहा :
“
हमसे दुश्मनी रखने वाली एजेन्सियों को वह क़ानूनी ढाँचा नहीं मिलना चाहिए, जिसका फ़ायदा उठा कर वे लोग हमारे देश में अपने लोग घुसा सकें। यह हम सबके लिए चिंता की बात है।
सुजीत चटर्जी, संयुक्त सचिव, रीसर्च एंडल एनलिसिस वंग
इसके अलावा इंटेलीजेंस ब्यूरो के वरिष्ठ अफ़सर भी भी समिति के सामने पेश हुए। इन अफ़सरों ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक से बहुत ही कम लोगों यानी 31,333 लोगों को ही फ़ायदा मिलेगा। इन लोगों ही अब तक लंबे समय के लिए वीज़ा मिला है। इनमें कोई मुसलमान नहीं है।
इसके अलावा इंटेलीजेन्य ब्यूरो के तात्कालिक निदेशक राजीव जैन भी संयुक्त संसदीय समिति के सामने पेश हुए। उन्होंने कहा, ‘अब तक मिले आँकड़ों के मुताबिक़, ऐसे लोगों की तादाद बहुत ही कम होगी। इसका मानवीय पहलू यह है कि ये लोग अपना घर-बार छोड़ कर आए हैं।’
इस संसदीय समिति के 9 सदस्यों ने अपना विरोध जताया था और औपचारिक विरोध पत्र यानी डिसेंट नोट दिया था। बीजू जनता दल के भर्तृहरि मेहताब, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के मुहम्मद सलीम और कांग्रेस पार्टी के अधीर रंजन चौधरी और सुष्मिता देव प्रमुख हैं।
यह बात महत्वपूर्ण इसलिए है कि बीजीपे ने उग्र राष्ट्रवाद का नैरेटिव पूरे देश में खड़ा किया है और चुनावों के समय उसका भरपूर फ़ायदा उठाया है। इसी के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि किस तरह उन्होंने पाकिस्तान के अंदर घुस कर मारा है और भारत ने परमाणु बम दीवाली के लिए नही बनाए हैं। वही पार्टी यदि रॉ की सिफ़ारिशों को भी नज़रअंदाज़ करती है तो सवाल उठना स्वाभाविक है। यह और अहम इसलिए भी है कि मौजूदा सुरक्षा सलहाकार और पूर्व रॉ प्रमुख प्रधानमंत्री के काफ़ी नज़दीक और बेहद विश्वसनीय हैं। तो क्या गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री के नज़़दीक और विश्वसनीय लोगो की बातों को भी अनसुना कर दिया, यह सवाल उठना लाज़िमी है।
अपनी राय बतायें