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'द कोएलिशन ईयर्स' : प्रणब मुखर्जी ने क्या रहस्योद्घाटन किया?

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पद से हटने के बाद तीन खंडों में एक किताब लिखी, 'द कोएलिशन ईयर्स'। इस किताब में उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन के उतार-चढ़ाव, अनुभव और तमाम राजनीतिक स्थितियों और सरकार के फ़ैसलों की चर्चा की और उनके बारे में विस्तार से बताया। पेश हैं इसमें से कुछ मुद्दों पर छपे कुछ अंश।

पॉलिसी स्लोडाउन

यूपीए के शुरू के दिनों में कैबिनेट की बैठकों में विस्तार से चर्चा करने और कई मुद्दों पर कई बार की बातचीत के बावजूद फ़ैसलों में देरी होने पर मनमोहन सिंह कई बार अपनी नाराज़गी जता चुके थे। मैं उनसे सहमत था और यह मानता था कि यूपीए 1 और यूपीए 2 दोनों ही अलग-अलग विचारधाराओं के कई राजनीतिक दलों की गठजोड़ सरकारें थीं। मैंने उन्हें सलाह दी कि अगली कैबिनेट बैठक में वे सबकुछ मुझ पर छोड दें, उन्होंने वैसा ही किया। मैंने कैबिनेट की बैठक में साफ़ शब्दों में कह दिया, मैं सरकार चलाने का सबसे अधिक अनुभव रखता हूं और मैं यह कह दूं कि मैंने ऐसी कैबिनेट नहीं देखी, कैबिनेट की बैठक कोई बातचीत के लिए नहीं होती है, यह निर्णय लेने का सर्वोच्च स्थान है और इसके फ़ैसलों से देश के करोड़ों लोगों पर असर पड़ता है।

कुछ लोगों ने कहा कि यूपीए सरकार ऐसे में तो गिर जाएगी, मैंने कह दिया, मेरे साथ 147 सांसद हैं और मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि एक दर्जन सांसदों वाली पार्टी मुझे परेशान करे।

हालांकि इससे अपने ही सहयोगियों के बीच मेरी लोकप्रियता घट गई, पर मुझे लगा कि लंबे समय तक गठजोड़ चलाने के लिए ऐसा करना ज़रूरी था।

1996 में कांग्रेस की हार

साल 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की व्याख्या करना नामुमकिन है, क्योंकि पीवी (नरसिम्हा राव) ने अर्थव्यवस्था को सफलतापूर्वक भुगतान संतुलन के संकट से बाहर निकाल लिया था और कई बड़े आर्थिक सुधार को लागू किया था। लेकिन खुद पीवी को इस पर आश्चर्य नहीं हुआ था।

यह सच है कि आर्थिक सुधार का लाभ शुरू में संपन्न तबके को ही मिला और यह आम जनता तक नहीं पहुँचा था।

और दूसरे क्या कारण थे? एक, बाबरी मसजिद मुद्दे के कारण मुसलमान कांग्रेस से दूर चले गए...मसजिद को ध्वस्त होने से बचाने में पीवी की नाकामी उनकी सबसे बड़ी असफलता थी और पार्टी पर इसका बेहद बुरा असर पड़ा। दो, कारगर गठजोड़ नहीं बन सका था।

सीताराम केसरी को अध्यक्ष पद से हटाने पर

जीतेंद्र प्रसाद और शरद पवार ने मुझसे मुलाक़ात की। जीतेंद्र प्रसाद ने मुझसे कहा कि कोई रास्ता निकालिए क्यों आप कांग्रेस का संविधान जानते हैं...मैंने विषय का अध्ययन किया और समाधान निकाल लिया।

ममता बनर्जी

ममता बनर्जी जन्मजात विद्रोहिणी हैं।

ममता बनर्जी सही अर्थों में राजनेता हैं। उन्होंने सनक या कल्पना में आकर राष्ट्रपति चुनाव में मेरा समर्थन नहीं किया था। उन्होंने मीडिया में कहा था कि भारी मन से मेरा समर्थन किया था।

साल 2009 के लोकसभा चुनाव और 2011 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की जीत ने उनके चारों ओर एक आभामंडल का निर्माण कर दिया, वे राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण हो गई हैं।

1998 की हार के बाद इंदिरा गांधी के बारे में

नेहरू का भरोसा मजबूत काडर आधारित सबको साथ लेकर चलने वाले संगठन में था, पर उनके बाद यह विश्वास टूट गया...इंदिरा गांधी ने राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को विभाजित कर दिया और धीरे धीरे कांग्रेस के संगठनात्मक ढाँचे को भी ध्वस्त कर दिया।

अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में

अटल बिहारी वाजपेयी कुशल पार्लियामेन्टीरेयिन थे। भाषा पर उनकी जबरदस्त पकड़ थी, वे एक महान वक्ता थे और आम जनता से लगातार मिलते रहते थे, उन्हें एक साथ लाते रहते थे।

चिदंबरम के बारे में

प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के 10 बार के बाद पी चिदंबरम ने सबसे अधिक बार बजट पेश किया है। उनके पास बहुत जानकारी रहती है और वे बौद्धिक रूप से बहुत तीक्ष्ण हैं, पर कभी कभी वह अपने विचारों की वजह से बहुत ही आक्रामक हो जाते हैं।

मेरे और चिदंबरम के बीच मतभेद के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। हमारे बीच कोई मतभेद था भी तो वह अर्थव्यवस्था को लेकर हम दोनों की धारणाओं में अंतर को लेकर ही था।

सोनिया गांधी के बारे में

मेरा मानना है कि किसी ख़ास व्यक्ति के साथ नहीं जुड़े होने और एक तरह की अनासक्ति के भाव उनकी सबसे बड़ी ताकत हैं...अपने परिवार के दूसरे लोगों की तरह ही उन्होंने भी अखिल भारतीय नीतियां अपनाई हैं।

पीछे मुड़ कर देखता हूं तो लगता है कि सबसे लंबे समय तक कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में पार्टी को मजबूत करने की दिशा में उनके योगदान की ठीक से समीक्षा नहीं की गई है।

हालांकि प्रणव मुखर्जी ने अपनी इस किताब में किसी बहुत विवादास्पद मुद्दे पर कुछ ख़ास नहीं लिखा। तमाम मुद्दों को उन्होंने टाल दिया। उन्होंने एक बार ज़रूर कहा था, 'ढेर सारे रहस्य मेरे साथ ही मेरी क़ब्र में दफ़न हो जाएंगे।' और शायद ऐसा ही हुआ है।  
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क़मर वहीद नक़वी

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