आर्थिक मोर्चे पर ख़राब हालत और गिरती विकास दर के बीच दिल्ली चुनाव अभियान में अपने काम बताने में विफल रही मोदी सरकार अब अपनी छवि चमकाने की तैयारी कर रही है। सरकार अपनी 'उपलब्धि' को दिखाने के लिए अभियान छेड़ेगी जिसमें सरकारी कंपनियों के कामों को दिखाया जाएगा। एक रिपोर्ट के अनुसार, उस उपलब्धि के साथ टैग लाइन होगी- 'हर एक काम देश के नाम'। इसका मतलब है कि सरकार हर उस 'उपलब्धि' को देश से यानी राष्ट्रवाद से जोड़ेगी। माना जा रहा है कि हाल के दिल्ली चुनाव में मोदी सरकार की 'विकास' वाली छवि को तगड़ा झटका लगा है। इसी से उबरने के लिए और अगले आने वाले चुनावों में विकास करने वाली पार्टी के रूप में ख़ुद को पेश करने के लिए बीजेपी की यह कवायद है।
बीजेपी की इस बदली नीति का राज क्या है? क्या बीजेपी ने दिल्ली के चुनाव से सबक़ ले लिया है? क्या यह सबक़ यह है कि सिर्फ़ राष्ट्रवाद और हिंदू-मुसलिम के नाम पर चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं और सरकार के काम तो दिखाने पड़ेंगे?
इन सवालों के जवाब दिल्ली चुनाव को ग़ौर से देखने पर मिलेगा। यह साफ़ तौर पर देखा गया कि दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने अपने पिछले पाँच सालों में दिल्ली में किए काम को दिखाया। बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य पर इनके विरोधी भी मानते हैं कि सरकार ने बुनियादी काम किया है। इन विरोधियों में बीजेपी भी शामिल है। एक ख़ास बात यह भी रही कि आम आदमी पार्टी ने न केवल काम किया, बल्कि सोशल मीडिया और मीडिया के ज़रिये काम करने वाली सरकार की छवि भी बनायी।
दूसरी ओर बीजेपी को यह भी यह अहसास हुआ कि एमसीडी में मौजूद बीजेपी की छवि बहुत ख़राब है। लंबे समय तक एमसीडी की ज़िम्मेदारी संभालने के बावजूद हालात में ख़ास परिवर्तन नहीं आया। एमसीडी के तहत आने वाली सफ़ाई में कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता दिखता है। बीजेपी अपने सभी सांसदों के किसी काम को भी नहीं बता पायी। शायद उनका काम बताने लायक नहीं रहा हो। यही कारण है कि बीजेपी ने पूरे चुनाव में अपने अभियान को राष्ट्रवाद और हिंदू-मुसलमान को बनाया। पार्टी की ओर से इसके लिए शाहीन बाग़ को चुना गया और इसके नाम पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश हुई।
अब शायद बीजेपी को यह बात समझ में आ गयी कि शाहीन बाग़ और नागरिकता क़ानून का सवाल उठाकर, तीन तलाक़ क़ानून लागू कर, अनुच्छेद 370 में बदलाव कर और राम मंदिर निर्माण की बात कर वह आसानी से हिंदू वोटरों को नहीं लुभा सकती है। एक्सिस माई इंडिया ने एक सर्वे में भी पाया कि लोगों ने नफ़रत की राजनीति को खारिज कर दिया और विकास को तरजीह दी।
कंपनियाँ क्या करेंगी प्रचार?
तो अहम बात यह है कि बीजेपी ने इससे सबक़ लेकर जो पहला काम शुरू किया है वह है सरकारी कंपनियों के काम को उपलब्धि बताकर लोगों तक पहुँचाना। 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार तेल मंत्रालय ने सरकारी कंपनियों के एग्ज़क्यूटिव्स को कहा है कि वे बड़े स्तर पर कैंपेन शुरू करें। इसमें यह बताया जाए कि मंत्रालय कैसे लोगों की ज़िंदगी में बदलाव ला रहा है। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि कंपनी के दिग्गजों को भी इस काम पर लगाया गया है और कहा गया है कि सिर्फ़ अच्छे कामों को लोगों तक फैलाया जाए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लोगों को बताया जाए कि कैसे गाड़ियों के बीएस-IV मॉडल को हटाकर बीएस-VI मॉडल लाया गया और इससे प्रदूषण नियंत्रण होने के साथ-साथ लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होगा। ऐसा ही काम गैस ऑथोरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड यानी गेल को भी दिया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार एलपीजी कनेक्शन देने वाली उज्ज्वला योजना का बखान भी किया जाएगा। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह महत्वाकांक्षी योजना है और वह हर चुनाव में इसका बखान करते रहे हैं। लेकिन दिल्ली के चुनाव में यह इतने बड़े स्तर पर नहीं उठाया गया था।
माना जाता है कि सरकारी कंपनियाँ शहरों में और पेट्रोल पंपों पर होर्डिंग और विज्ञापन लगाए जाएँगे। यानी इस पर सरकारी कंपनियाँ करोड़ों रुपये ख़र्च करेंगी ताकि सरकार की छवि चमकाई जाए। हालाँकि मोदी सरकार ऐसे विज्ञापन पहले भी करती रही है, लेकिन अब माना जा रहा है कि यह और बड़े पैमाने पर होगा। लेकिन क्या बीजेपी को इसका फ़ायदा मिल पाएगा, यह बहुत जल्द ही बिहार के विधानसभा चुनाव में मिल जाएगा।
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