राजनीतिक विश्लेषक व लेखक प्रताप भानु मेहता के अशोका यूनिवर्सिटी से इस्तीफ़े की गूंज विदेशों में भी सुनाई पड़ रही है। अकादमिक जगत की कई हस्तियाँ उनके समर्थन में खुल कर आ गई हैं और उनके साथ एकजुटता दिखाई हैं।
कोलंबिया, येल, हॉर्वर्ड, प्रिन्सटन, ऑक्सफ़र्ड और कैंब्रिज विश्वविद्यालयों जैसे नामचीन संस्थाओं के लगभग 150 लोगो नें मेहता के इस्तीफ़े पर अपना विरोध प्रकट किया है। उन्होंने कहा है कि यूनिवर्सिटी के संस्थापकों ने मेहता से साफ़ कह दिया कि वे उनके लिए राजनीतिक बोझ बन चुके हैं और इसके बाद ही इस राजनीतिक विश्लेषक ने इस्तीफ़ा सौंप दिया।
क्या है चिट्ठी में?
विश्वविद्यालय के ट्रस्टी, एडमिनिस्ट्रेटर और विभाग के शिक्षकों को लिखी गई इस खुली चिट्ठी में अकादमिक जगत के इन लोगों ने इस पर चिंता जताई है कि मेहता विश्वविद्यालय की ओर से डाले गए दबाव से बहुत परेशान थे।
ख़त में कहा गया है,
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"मौजूदा भारत सरकार के प्रखर आलोचक और अकादमिक स्वतंत्रता के रक्षक मेहता को उनके लेखन के लिए निशाना बनाया गया है। अशोका यूनिवर्सिटी के ट्रस्टियों को मेहता का बचाव करना चाहिए था, लेकिन उन्हें इस्तीफ़ा देने पर मजबूर कर दिया।"
150 विद्वानों की चिट्ठी का अंश
इस चिट्ठी पर दस्तख़त करने वालों में प्रमुख हैं हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के होमी के. भाभा, बर्कर्ले स्कूल के इर्विन चेरमिंस्की, पेनसिलवेनिया विश्वविद्यालय के रोजर्स स्मिथ, कार्नेगी एनडाउमेंट के मिलन वैष्णव, ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय के केट ओ रेगन और हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के डैनियल एलन।
क्या है मामला?
बता दें कि राजनीतिक विश्लेषक व लेखक प्रताप भानु मेहता ने बीते मंगलवार को अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर पद से इस्तीफा दे दिया। दो साल पहले वे यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर पद से भी इस्तीफा दे चुके थे। मेहता ने लगातार अपने लेखन से और सार्वजनिक तौर पर सत्ता पर सवाल उठाए हैं।
उन्होंने इस निजी विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर मालबिका सरकार को भेजे इस्तीफ़े में लिखा था,
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"संस्थापकों के साथ एक बैठक के बाद मेरे लिए पर्याप्त रूप से यह स्पष्ट हो गया है कि विश्वविद्यालय के साथ मेरे जुड़ाव को एक राजनीतिक मुसीबत माना जा सकता है।"
प्रताप भानु मेहता, राजनीतिक विश्लेषक
सुब्रमणियन का इस्तीफ़ा
इसमें आगे कहा गया है कि "स्वतंत्रता के संवैधानिक मूल्यों और सभी नागरिकों के लिए समान सम्मान का प्रयास करने वाली राजनीति के समर्थन में मेरा सार्वजनिक लेखन विश्वविद्यालय के लिए जोखिमभरा हो सकता है।
इस मुद्दे पर काफी बवाल मच चुका है। मेहता के इस्तीफ़े के बाद उनका समर्थन करते हुए और उनके इस्तीफ़े के विरोध में अपना इस्तीफ़ा देते हुए मशहूर अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमणियन ने कहा था कि अशोक यूनिवर्सिटी में अब अकादमिक स्वतंत्रता के लिए जगह नहीं बची है।
वाइस चांसलर को भेजे त्यागपत्र में सुब्रमणियन ने उन कारणों का ज़िक्र किया है, जिनकी वजह से महेता को इस्तीफ़ा देना पड़ा।
वे जुलाई 2020 में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर के रूप में विश्वविद्यालय से जुड़े थे। वे अशोक सेंटर फ़ॉर इकोनॉमिक थ्योरी के संस्थापक निदेशक थे।
सुब्रमणियन ने इस ओर ध्यान दिलाया कि निजी विश्वविद्यालय होने के बावजूद अब यहाँ अकादमिक अभिव्यक्ति व स्वतंत्रता के लिए जगह नहीं बची है और यह परेशान करने वाली बात है।
उन्होंने यह भी कहा कि अशोक विश्वविद्यालय जिन मूल्यों व आदर्शों के लिए बना है, उन्हें ही चुनौती दी जा रही है और ऐसे में उनका यहाँ बने रहना मश्किल है।
रघुराम राजन ने किया विरोध
भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने मेहता के इस्तीफ़े को "अकादमिक स्वतंत्रता पर खतरनाक हमला" क़रार दिया है। उन्होंने अपने लिंक्डइन पोस्ट में कहा है, ''अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी भी महान विश्वविद्यालय की आत्मा है और अगर इस पर हमले होते हैं तो यह उसी आत्मा पर चोट पहुँचाना है।"
इस मशहूर अर्थशास्त्री ने कहा है,
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"अशोका के संस्थापकों को आखिर किसने प्रेरणा दी होगी कि बुलंद आवाज को सुरक्षा देना बंद करो। क्या अशोक के संस्थापकों ने परेशान आलोचकों से छुटकारा पाने के लिए बाहरी दबाव के आगे घुटने टेक दिए हैं?"
रघुराम राजन, पूर्व गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक
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