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आख़िर किसका इंतज़ार कर रहे हैं राहुल गाँधी?

‘कांग्रेस इंच-इंच की लड़ाई लड़ेगी? मैं संघ और भारतीय जनता पार्टी से पहले के मुक़ाबले 10 गुना ज़्यादा ताक़त से लडूँगा? लोकसभा चुनाव 2019 में हारने के बाद राहुल गाँधी ने ये बयान दिये थे और तब लगा था कि कांग्रेस में पुनर्जागरण या पुनर्रचना का काल शुरू होने वाला है। लेकिन ऐसा ज़मीन पर कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। 
राहुल गाँधी ने एक बात स्पष्ट कर दी है कि वह आगे की लड़ाई कांग्रेस अध्यक्ष बनकर नहीं लड़ेंगे लेकिन सवाल यह है कि आख़िर वह लड़ेंगे कैसे? लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद पचास दिन हो चुके हैं और पार्टी ने नया अध्यक्ष चुनने और राहुल गाँधी को मनाने में इतना क़ीमती समय बिता दिया और राहुल गाँधी अदालत-अदालत के चक्कर काट रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी और संघ के ख़िलाफ़ लड़ने की उनकी क्या रणनीति है, वह राहुल गाँधी को खुलकर ज़ाहिर करनी चाहिए। बग़ैर पार्टी अध्यक्ष वह कैसे लड़ेंगे, इसका ब्लू प्रिंट उन्हें पार्टी नेतृत्व, कार्य समिति और उसके बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं के समक्ष रखना चाहिए। उनकी यह देरी कांग्रेस के संकट को कम करने के बजाय बढ़ाने वाली ज़्यादा है।
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कांग्रेस कार्य समिति किसे अध्यक्ष चुनेगी या नहीं चुनेगी, यह सिर्फ़ एक औपचारिक घोषणा मात्र ही होगी, क्योंकि राजनीति में जब तक राहुल गाँधी सक्रिय रहेंगे, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की और नेताओं की नज़र और शक्ति केंद्र उनके इर्द-गिर्द ही बनेगा। तो ऐसे में राहुल गाँधी किसका इंतज़ार कर रहे हैं? उनको जो नई कांग्रेस गढ़नी है उसके लिए तो पार्टी कार्यकर्ता कांग्रेस वर्किंग कमिटी में नहीं हैं। वे कार्यकर्ता देश के दूर-दराज के गाँवों में मिलेंगे जो आज विषम परिस्थितियों में भी कांग्रेस का झंडा लिए संघर्ष करते नज़र आते हैं। राहुल उनसे मिलने की शुरुआत कब करेंगे?
कांग्रेस अध्यक्ष कौन बनेगा, कब उसकी घोषणा होगी उससे ज़्यादा ख़तरा आज राहुल गाँधी की तरफ़ से की जा रही देरी की वजह से है। क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष की घोषणा हो जाने के बाद भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को इस बात का इंतज़ार रहेगा कि राहुल क्या करने वाले हैं?
राहुल गाँधी बार-बार विचारधारा की भी बात करते हैं लेकिन विचारधारा उन्हें सत्ता से क़दमताल करते वाले नेताओं के बीच से नहीं मिलने वाली है। आज कांग्रेस के जो नेता पार्टी और संगठन में काबिज हैं, उन्होनें संघर्ष को एक ज़माने पहले तिलांजलि दे दी है। यदि ये नेता संघर्ष और पार्टी के आधार को बढ़ाने के पक्षधर हैं तो मनमोहन सिंह सरकार के दस साल का कार्यकाल इनके लिए स्वर्णिम काल था, उस दौर में इन्होंने क्या किया? 
कांग्रेस पार्टी और संगठन के कमजोर होने का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण कारण जो दिखाई देता है, वह है पार्टी में सत्ता से चिपक कर रहने वाली मानसिकता के नेताओं का बोलबाला। ये नेता परजीवी (जोंक) की तरह कांग्रेस से चिपके हुए हैं।
कांग्रेस को अच्छी तरह से पता था कि लोकसभा चुनाव में यदि वह नहीं जीत सकी तो सबसे पहला ख़तरा उसकी उन सरकारों पर है जिनके आधार पर पार्टी के नेता अपने वातानुकूलित चैम्बर्स में बैठकर सपने का महल तैयार कर रहे थे। और हो भी वैसा ही रहा है। भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले जिस साम-दाम-दंड-भेद का इस्तेमाल कर रही थी चुनाव के बाद भी वही कर रही है।
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लोकसभा का पहला सत्र चल ही रहा है कि कांग्रेस समर्थित पहली सरकार का विकेट गिराने की चौसर बिछा दी गई। गोवा में कांग्रेस के आधे से ज़्यादा विधायक तोड़कर अगले शिकार का संकेत दे दिया है। महाराष्ट्र में बीजेपी ने कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष को अपनी तरफ़ मिला लिया था और अब विधानसभा चुनाव से पहले 10 विधायकों को तोड़ने की घोषणा कभी भी कर सकती है। गुजरात में भी यही हुआ और राज्यसभा चुनाव से पहले दो विधायक पार्टी छोड़ गए। 
लेकिन इंच-इंच की लड़ाई की बात करने वाले राहुल गाँधी कहाँ हैं? क्या वह कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, गुजरात कहीं भी गए, जहाँ पार्टी विघटन के कगार पर खड़ी है?
क्या राहुल गाँधी इन प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ ज़मीनी स्तर पर संघर्ष कर रहे कांग्रेस के नेताओं से मिले? कर्नाटक और गोवा में जो चल रहा है वह आज नया नहीं है। भारतीय जनता पार्टी वहाँ पर एक के बाद एक प्रयास करती रही और अब उसे कई विधायकों को तोड़ने में सफलता मिली लेकिन कांग्रेस का हाईकमान अपने विधायकों के बचाव में मुस्तैदी से खड़ा नहीं दिखा। गोवा में वहाँ का 25% कैथोलिक वोट जो हमेशा कांग्रेस के साथ खड़ा रहता था, वहाँ आज उसके अधिकांश विधायक पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं। पिछले दो साल से बीजेपी वहाँ कभी एक विधायक को तोड़ती थी तो कभी 2, लेकिन इस बार उनसे सबसे ज़्यादा विधायकों को तोड़ लिया। 
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महाराष्ट्र में पवार के भरोसे छोड़ी कांग्रेस?

गोवा में पार्टी की सरकार नहीं बना पाने की वजह से दिग्विजय सिंह को तो सजा मिल गयी लेकिन उसके बाद क्या बचाव कार्य हुए? महाराष्ट्र में 100 दिन बाद विधानसभा चुनाव हैं, लेकिन अभी तक प्रदेशाध्यक्ष की घोषणा नहीं हुई है। सहयोगी दलों से गठबंधन की बात कौन करेगा? बीजेपी में शामिल होते समय राधाकृष्ण विखे पाटिल ने जो आरोप लगाया था कि राहुल गाँधी ने महाराष्ट्र में पार्टी ‘शरद पवार के भरोसे छोड़ दी है’, क्या ऐसा ही हो रहा है? इस बात में कहीं ना कहीं कुछ दम भी दिखता है, क्योंकि राहुल गाँधी लोकसभा चुनाव के बाद अपनी पार्टी के नेताओं से ज़्यादा शरद पवार और सुप्रिया सुले से मिले हैं।
महाराष्ट्र में जब से पवार ने अपनी पार्टी बनायी है उन्होंने हमेशा कांग्रेस के आधार में सेंध लगाने की कोशिश की लेकिन कभी सफल नहीं हो पाए, लेकिन अब लगता है कि राहुल इतने ही लापरवाह रहे तो इस विधानसभा चुनाव में एनसीपी की सीटें कांग्रेस से ज़्यादा हो जायेंगी।
शरद पवार अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करेंगे, यह बात राजनीतिक गलियारों की गॉसिप से निकलकर हक़ीक़त पता नहीं कब बनेगी लेकिन यहाँ कांग्रेस संगठन पंगु बना हुआ है और यह हक़ीक़त है। ऐसे में पार्टी आगे की लड़ाई कैसे लड़ेगी इसका जवाब तो हाईकमान को ही देना पड़ेगा। कांग्रेस और राहुल गाँधी को इस स्थिति से बाहर निकलना ही होगा?
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संजय राय

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