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फ़ोटो साभार: ट्विटर/पलविंदर

और टिकैत के आँसुओं ने किसान आंदोलन को ज़िन्दा कर दिया

क्या राकेश टिकैत के रो पड़ने ने किसान आंदोलन में नये सिरे से जान फूँक दी है? रात यह लग रहा था कि पुलिस ज़बरन किसानों को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर से हटा देगी लेकिन वैसा नहीं हुआ। उलटे, लौट चुके किसानों ने रातों रात दोबारा मोर्चा संभाल लिया। यूपी, हरियाणा और पंजाब में टिकैत के समर्थन में जगह-जगह प्रदर्शन हुए और एकजुटता का इज़हार किया गया।

यह सब ऐसी परिस्थिति में हुआ जब टिकैत की गिरफ्तारी और आंदोलन को ख़त्म करने की योजना पर योगी आदित्यनाथ की सरकार अमल करने जा रही थी। पुलिस ने इसके लिए पुख्ता इंतज़ाम कर लिए थे।

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शाम ढलने के वक़्त ग़ाज़ीपुर बॉर्डर छावनी में बदल चुका था। राकेश टिकैत शाम तक तकरीबन डेढ़ सौ लोगों के साथ ही रह गये थे। मुख्यधारा का मीडिया किसानों का मज़ाक़ उड़ा रहा था। डीएम और एसपी अपना रौब दिखा रहे थे। 62 दिन बाद ज़िला प्रशासन को याद आया कि आंदोलन से आसपास कचरा फैल रहा है, लोगों को दिक्कतें हो रही हैं। और तो और, स्थानीय लोगों के नाम पर बीजेपी विधायक चंद गुर्गों के साथ आंदोलन ख़त्म कराने को पहुँच गये थे।

तभी टिकैत गरजे कि बीजेपी गुंडों को भेजकर हमें उठवाएगी? फिर मीडिया और पुलिस का रुख और कड़ा होने लगा। ऐसे में राकेश टिकैत ने जो घोषणा की, उस पर ग़ौर करें।

इन घोषणाओं ने ही अर्थी पर उठ चुके किसान आंदोलन में जान फूँक दी

राकेश टिकैत की घोषणा नंबर एक

“हम यहाँ से नहीं हटेंगे। जान दे देंगे लेकिन जब तक कृषि क़ानून वापस नहीं होंगे, प्रदर्शन ख़त्म नहीं करेंगे।”

राकेश टिकैत की यह घोषणा उन किसानों का मनोबल बढ़ाने वाली थी जो आंदोलन करना चाहते थे लेकिन परिस्थिति के सामने लाचार थे। इस घोषणा के बावजूद लौट चुके किसानों को आंदोलन से जोड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन लग रहा था क्योंकि योगी आदित्यानाथ की सरकार हर हाल में आंदोलन ख़त्म करने को उतारू थी और टिकैत के साथ ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर मुट्ठीभर किसान ही रह गये थे। मगर, जान दे देने की बात राकेश टिकैत ने पहली बार कही थी। इसने किसानों को भावनात्मक रूप से टिकैत से जोड़ा।

rakesh tikait leads farmers protest at ghazipur border puts into limelight - Satya Hindi

राकेश टिकैत की घोषणा नंबर दो

“मेरे गाँव के लोग जब तक मुझे पानी नहीं देंगे, मैं पानी नहीं पीऊंगा।”

राकेश टिकैत का यह बयान ऐसा था जिसके बाद इसने सिसौली में टिकैत के घर बाहर सैकड़ों किसानों को इकट्ठा कर दिया। आँखें ग़ुस्से से लाल हो उठीं। टिकैत के घर भीड़ खड़ी हो गयी। भारतीय किसान यूनियन का हौसला बढ़ा, तो उसने ग़ाज़ीपुर बॉर्डर के आसपास के किसानों को वहाँ पहुँचने और बाक़ी किसानों को अपने-अपने इलाक़ों में टेंट गाड़ देने का निर्देश जारी कर दिया। बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर, सहारनपुर, ग़ाज़ियाबाद से रातों रात सैकड़ों ट्रैक्टर गाजीपुर पहुँच गये। देखते-देखते ग़ाज़ीपुर बॉर्डर फिर से गुलजार हो गया जो शाम तक शामियाना उखड़ने और पुलिसिया जोर-जुल्म की आशंका में वीरान हो चुका था।

29 जनवरी को यानी आज भारतीय किसान यूनियन ने किसानों की महापंचायत बुलाने का भी एलान कर दिया।

ऐसा नहीं है कि राकेश टिकैत के आँसुओं और मरते दम तक लड़ने के संकल्प ने सिर्फ़ यूपी के किसानों को ही झकझोरा। हरियाणा, पंजाब और यूपी की सड़कों पर जगह-जगह देर रात तक प्रदर्शन और सड़क जाम का सिलसिला शुरू हो गया। दोबारा दिल्ली बॉर्डर की ओर ट्रैक्टर के साथ किसान चल पड़े। राकेश टिकैत के प्रति बढ़ते जनसमर्थन के बाद योगी सरकार के हाथ-पैर भी फूल गये। जबरदस्ती आंदोलन हटवाने की योजना पर अमल रोक दिया गया।

वीडियो में देखिए, अब किसान आंदोलन का क्या होगा?

टिकैत को इन 3 राजनीतिक घटनाओं ने ताक़त दी

राकेश टिकैत के नेतृत्व में जो जान लौटी है उसके पीछे समर्थन के साथ-साथ राजनीतिक दलों का खुलकर आना भी महत्वपूर्ण है। तीन बातें ऐसी हुई हैं जिसने टिकैत को बेहद मज़बूत बना दिया-

  • दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का राकेश टिकैत से बात करना और आंदोलन को समर्थन देने का भरोसा। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर दिल्ली के समर्थन का मतलब रणनीतिक रूप से संजीवनी बूटी मिलने के बराबर है।
  • राहुल गांधी का इस पक्ष या उस पक्ष में होने वाला ट्वीट, जिसमें उन्होंने लोकतंत्र का साथ देते हुए किसान आंदोलन के समर्थन में खड़े होने का एलान किया।
  • राष्ट्रीय लोकदल ने खुले तौर पर राकेश टिकैत को समर्थन देने का एलान कर दिया।

ये तमाम घटनाएँ राकेश टिकैत के आँसू से पैदा हुई परिस्थितियों के बाद की हैं।

rakesh tikait leads farmers protest at ghazipur border puts into limelight - Satya Hindi

बजट सत्र पर रहेगा किसानों का दबाव

बजट सत्र आज शुरू हो रहा है। राष्ट्रपति के अभिभाषण का विरोध करने का फ़ैसला 16 दलों ने मिलकर लिया था। अब राकेश टिकैत को संसद में भी जोरदार समर्थन मिल सकता है। लिहाजा किसान आंदोलन की राजनीतिक दलों से जो एक औपचारिक दूरी रही थी, अब ख़त्म होगी। आने वाले समय में विपक्षी राजनीतिक दल खुलकर किसानों के आंदोलन में हिस्सा लें, इसके आसार बनने लगे हैं। 

किसानों को टिकैत की यह बात भी अपील कर गयी कि वे अपमान का दाग लेकर दिल्ली से लौटना नहीं चाहते। गणतंत्र दिवस पर लालक़िले पर हुई घटना का कलंक किसान अपने माथे पर लेकर नहीं चल सकता क्योंकि इस घटना के पीछे उन्हें बदनाम करने वाली ताक़तें हैं। किसानों ने इस घटना की जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराने की माँग की है। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर टिकैत अगर टिके रह जाते हैं तो बाक़ी मोर्चों पर भी किसानों की एकजुटता और मज़बूत होगी। ऐसे में आंदोलन ख़त्म करने पर आमादा केंद्र और प्रदेश की बीजेपी सरकारों की मुश्किलें बढ़ जाएँगी।

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प्रेम कुमार

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