लंबे वक़्त तक सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अब इस प्लेटफ़ॉर्म की अहमियत को समझ रहा है। इसलिए, ट्विटर के बाद उसने कू ऐप को भी ज्वाइन कर लिया है। ट्विटर की सरकार के साथ चल रही खटपट के बीच संघ का कू ऐप पर आना चर्चा का विषय तो है ही क्योंकि इन दोनों ऐप को एक-दूसरे का प्रतिद्वंद्वी माना जाता है। इसके अलावा फ़ेसबुक पर भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अच्छी मौजूदगी है।
यह भी माना जा रहा है कि संघ ख़ुद को तेज़ी से बदल रहा है और वह अपने विस्तार के लिए इंटरनेट मीडिया का सहारा ले रहा है। संघ ने जुलाई, 2019 में ट्विटर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी और तब संघ प्रमुख और बाक़ी पदाधिकारियों के हैंडल इस प्लेटफ़ॉर्म पर बनाए गए थे।
कू एप के बारे में कहा जाता है कि इसमें बीजेपी और दक्षिणपंथी विचारधारा का समर्थन करने वालों का दबदबा है। कू का कहना है कि बीते दिनों में बड़ी संख्या में राजनेताओं, खिलाड़ियों और मनोरंजन जगत से जुड़े लोगों ने उसके प्लेटफ़ॉर्म पर अपनी आमद दर्ज़ कराई है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इस प्लेटफ़ॉर्म पर @RSSOrg नाम के हैंडल से आया है।
ख़ुद को बदल रहा संघ
संघ की स्थापना 1925 में हुई थी और यह 2016 से ही ख़ुद को आधुनिक बनाने की कोशिश में जुटा हुआ है। इसके तहत संघ ने स्थापना के बाद से चली आ रही अपनी ख़ाकी नेकर को बदल कर इसकी जगह पैंट को लागू कर दिया था। यह इस सोच के साथ किया गया था कि पैंट की वजह से युवा संघ की ओर आकर्षित होंगे।
यह बात भी चर्चा में है कि संघ अपनी छवि को उदार बनाने की कोशिश कर रहा है। हाल ही में संघ प्रमुख भागवत ने कहा है कि लिंचिंग में शामिल लोग हिंदुत्व के विरोधी हैं और जो ये कहें कि मुसलमान इस देश में नहीं रह सकते, वे हिंदू नहीं हो सकते।
ट्विटर और केंद्र सरकार के बीच चल रहे झगड़े के दौरान इस साल फरवरी में कू ऐप लोगों के सामने आया था। तब कहा गया था कि यह ट्विटर का भारतीय विकल्प है और देखा जाए तो यह ट्विटर की तरह ही माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट है। ट्विटर की तरह लोगों को इस एप पर फॉलो किया जा सकता है और पोस्ट के साथ फ़ोटो या वीडियो को भी डाला जा सकता है।
ट्विटर की तरह कू ऐप में भी '@' लगाकर आप लोगों को टैग कर सकते हैं। इसका ऐप गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है। इसे अप्रमेय राधाकृष्ण और मयंक बिदावतका ने पिछले साल बनाया था।
सोशल मीडिया की अहमियत
सोशल मीडिया नेताओं के लिए आम जनता और कार्यकर्ताओं तक अपनी बात पहुंचाने का बेहद ताक़तवर माध्यम बन चुका है। उसी तरह आम आदमी के लिए अपनी बात सरकार या लोगों तक पहुंचाने में भी इसका अहम रोल है। इसकी अहमियत को देखते हुए ही सरकार और राजनीतिक दल सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफ़ॉर्म पर अपनी मौजूदगी को बढ़ा रहे हैं।
ब्लू टिक को लेकर विवाद
बीते महीने तब विवाद हुआ था, जब ट्विटर ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत और सह सर कार्यवाह कृष्ण गोपाल, सर कार्यवाह सुरेश जोशी के ब्लू टिक को हटा दिया गया था लेकिन कुछ घंटों बाद इसे बहाल कर दिया गया था।
उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू के निजी अकाउंट से भी ब्लू टिक को हटा दिया था। लेकिन थोड़ी ही देर में जब इस पर हंगामा हुआ और मीडिया व सोशल मीडिया में इसे लेकर चर्चा तेज़ हुई तो ट्विटर ने इसे बहाल कर दिया था।
यह बताया गया था कि नायडू और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं के अकाउंट छह महीने से ज़्यादा वक़्त से निष्क्रिय थे और इस वजह से ब्लू टिक को हटा लिया गया था।
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