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'मीडिया की आज़ादी पर हमलावरों' की सूची में इमरान के साथ मोदी

मीडिया की आज़ादी के लिए काम कर रहे संगठन 'रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स' ने 37 ऐसे शासनाध्यक्षों व राष्ट्राध्यक्षों की सूची बनाई है, जिनके बारे में उसका मानना है कि वे 'मीडिया की आज़ादी पर हमलावर' ('प्रीडेटर ऑफ़ प्रेस फ्रीडम') हैं। 

इस सूची में नरेंद्र मोदी भी हैं। उनके साथ उत्तर कोरिया के किम जोंग उन, म्यांमार में सैनिक तख़्तापलट करने वाले सेना प्रमुख मिन आंग हलांग, पाकिस्तान के इमरान ख़ान और सऊदी अरब के शहज़ादे मुहम्मद बिन सलमान भी हैं। 

प्रेस की आज़ादी के मामले में भारत की क्या स्थिति है, इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि 'रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स' ( रिपोर्टर्स सां फ्रंतिए यानी आरएसएफ़) ने प्रेस फ्रीडम सूचकांक जारी किया है, उसमें कुल 180 देशों में भारत 142वें स्थान पर है। 

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सेंसरशिप के नए उपकरण

आरएसएफ़ ने कहा है कि इन देशों में मीडिया की आज़ादी को कुचला जा रहा है, सेंसरशिप के नए उपकरण विकसित किए जा रहे हैं, पत्रकारों को मनमानी तरीके से जेलों में डाला जा रहा है और पत्रकारों की हत्या तक की जा रही है। 

जिस सूची में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, उसी में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद, ईरान के अली ख़मेनी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, बेलारूस के अलेक्सांद्र लुकाशेंको व बांग्लादेश की शेख हसीना भी हैं।

मोदी की आलोचना

नरेंद्र मोदी के बारे में कहा गया है कि 'उन अरबपति व्यवसायियों से उनकी नज़दीकी है, जिनका मीडिया जगत पर कब्जा है, वे मोदी को राष्ट्रवादी लोकलुभावन विचारधारा को आगे बढ़ाने और विभाजक व अपमानजनक भाषण के प्रचार-प्रसार में मदद करते हैं।'

इसमें कहा गया है कि मोदी 26 मई, 2014 को सत्ता संभालने के बाद से ही प्रेस पर हमलावर हैं, ग़लत सूचनाओं का प्रसार कर रहे हैं।

reporters without borders lists modi with predators - Satya Hindi
रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स का प्रेस फ्रीडम मैपrsf.org

आरएसएफ़ ने यह भी कहा है कि मोदी के निशाने पर 'सिकुलर' और 'प्रेस्टीच्यूट' हैं।

बता दें कि सांप्रदायिक ताक़तें भारत में 'सिकुलर' शब्द का इस्तेमाल धर्मनिरपेक्ष लोगों के लिए व्यंग्य व तिरस्कार के लिए करते हैं। 

इसी तरह 'प्रेस्टीच्यूट' शब्द 'प्रेस' और 'प्रॉस्टीच्यूट' से मिल कर बना है और इसका इस्तेमाल मोदी की आलोचना करने वाले पत्रकारों के लिए किया जाता है। 

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क्या कहा गया है मोदी के बारे में?

आरएसएफ़ की रिपोर्ट में भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की गई है। इसमें कहा गया है-

  • नरेंद्र मोदी ने 2001 में गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रेस और सूचना के स्रोतों को नियंत्रण करने का तरीका इजाद किया और 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें ही आजमाया।
  • उनका मुख्य हथियार मुख्यधारा की मीडिया को ढेर सारे भाषणों और सूचनाओं से भर देना है ताकि उनके राष्ट्रवादी-लोकलुभावन नीतियों को वैधता मिल सके।
  • इसमें मीडिया साम्राज्य पर कब्जा जमाए हुए अरबपति व्यवसायियों का सहयोग उन्हें हासिल है।
  • मोदी की रणनीति के दो बिन्दु हैं- वे एक तरफ बड़े मीडिया घरानों को ढेर सारी ग़लत जानकारी दे देते हैं और इन पत्रकारों को पता है कि उन्होंने सरकार की आलोचना की तो उनकी नौकरी चली जाएगी।
  • दूसरी तरफ, वे अपने विभाजक व अपमानजनक भाषणों से ग़लत सूचनाओं का प्रचार करते हैं और इस ज़रिए मीडिया घरानों को ज़्यादा लोगों तक पहुँचने में मदद मिलती है।
  • जो लोग मोदी के विभाजक तौर तरीकों पर सवाल उठाते हैं, उन्हें शांत करना मोदी का काम है। इसके लिए वे क़ानून का सहारा लेते हैं और यह प्रेस की आज़ादी पर ख़तरा है।
  • इसके अलावा मोदी के पास ऑनलाइन सेना है जिसके योद्धा ट्रोल करने में माहिर हैं और सोशल मीडिया पर नफ़रत फैलाने वाले अभियान चलाते हैं, विरोधियों को निशाना बनाते हैं और पत्रकारों की हत्या तक करने की अपील कर डालते हैं। 

आरएसएफ़ की रिपोर्ट में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या की चर्चा की गई है और यह भी कहा गया है कि किस तरह राणा अयूब और बरखा दत्त जैसे मोदी की आलोचना करने वाले पत्रकारों को निशाना बनाया गया। 

आरएसएफ़ सालाना प्रेस फ्रीडम इंडेक्स जारी करता है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मीडिया की आज़ादी को मापने का एक पैमाना समझा जाता है।

भारत प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में पिछले चार सालों से लगातार नीचे खिसकता जा रहा है। वह साल 2017 में 136वें, साल 2018 में 138वें, साल 2019 में 140वें और पिछले साल 142वें नंबर पर पहुँच गया।

पेरिस स्थित रिपोर्टर्स सां फ्रांतिए (आरएसएफ़) यानी रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स एक नॉन-प्रॉफ़िट संगठन है जो दुनियाभर के पत्रकारों और पत्रकारिता पर होने वाले हमलों को डॉक्यूमेंट करने और उनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का काम करता है.

इस सूचकांक में नॉर्वे, फ़िनलैंड, डेनमार्क और न्यूज़ीलैंड जैसे देश अक्सर काफ़ी ऊपर होते हैं जबकि अफ्रीका के कई देश जहाँ लोकतंत्र नहीं है, वे सबसे नीचे होते हैं जैसे गिनी और इरीट्रिया।

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क़मर वहीद नक़वी

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