राम मंदिर कब बनेगा? संघ सर कार्यवाह भैया जी जोशी के कुंभ में दिए एक व्यक्तव्य के बाद विवाद खड़ा हो गया। जोशी ने कहा था कि 2025 में राम मंदिर बन जाने के बाद देश बहुत तेज़ी से आगे बढ़ेगा। सुनिए क्या कहा भैया जी जोशी ने -
हंगामा हुआ तो दी सफ़ाई
जोशी के इस बयान के बाद हंगामा मच गया। कहा जाने लगा कि संघ ने राम मंदिर निर्माण की तारीख़ 6 साल आगे बढ़ा दी है। बाद में इस पर भैया जी जोशी ने ख़ुद भी सफ़ाई दी कि उन्होंने यह नहीं कहा था कि मंदिर का निर्माण 2025 में शुरू होगा बल्कि यह कहा था कि तब तक मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा। जोशी ने आगे यह भी जोड़ा कि अगर मंदिर अभी से बनना शुरू हो तो इतना समय लग ही जाएगा।
ज़ाहिर है कि संघ सर कार्यवाह भैया जी जोशी ने अपने बयान पर जो सफ़ाई दी और संघ ने जो स्पष्टीकरण दिया, उसमें काफ़ी अंतर है।
मंदिर मुद्दे का किया राजनीतिक इस्तेमाल
मंदिर निर्माण पिछले 5 दशकों से संघ का सबसे प्रिय और सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है और संघ और बीजेपी ने हर अवसर पर इसे अपने राजनीतिक ब्रह्मास्त्र के तौर पर इस्तेमाल भी किया है।
2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले संघ ने अचानक इस मुद्दे को दुबारा जोर-शोर से उठाना शुरू किया, मोदी सरकार पर मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाने का जोरदार दबाव बनाया, सुप्रीम कोर्ट पर भी तीखे हमले किए कि वह जानबूझकर राम जन्मभूमि-बाबरी मसजिद मुक़दमे की तारीख़ टाल रहा है।
सरकार के रवैये से नाराज़ है संघ!
इतना आक्रामक रुख अपना लेने के बाद अचानक संघ का जोश इस मुद्दे पर क्यों ठंडा पड़ गया, इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि इस मामले में मोदी सरकार के ढीले-ढाले रवैये से संघ बहुत नाराज़ है। ख़ासतौर पर नए साल के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब मंदिर निर्माण पर अध्यादेश लाने से साफ़ इनकार कर दिया था, तो उसके तुरंत बाद संघ सर कार्यवाह भैया जी जोशी ने कहा था कि आरएसएस अपने रवैये पर अडिग है कि अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए क़ानून पारित किया जाए।
तब से अब तक मामला कुछ बढ़ा नहीं है और अचानक भैया जी जोशी की तरफ़ से 2025 की तारीख़ आ जाने से राजनीतिक पर्यवेक्षकों की इस धारणा को बल मिला है कि संघ केवल चुनावी मंशा से ही राम मंदिर का मामला उछालता है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि 2019 के चुनाव से पहले भी संघ ने यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया लेकिन 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे का कोई ख़ास असर न होने के कारण संभवत: संघ ने इसको ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
संघ ने ही डाला था अड़ंगा
आप 'सत्य हिंदी' पर पढ़ ही चुके हैं कि शीतला सिंह ने कहा था कि 1986-87 में जब लगभग सभी पक्ष राम मंदिर के निर्माण के लिए समझौते पर तैयार थे तब आरएसएस ने अड़ंगा डाल दिया था और तब राम मंदिर का निर्माण नहीं हो सका। तब ही आरएसएस की योजना थी कि राम मंदिर का मुद्दा चुनाव दर चुनाव बीजेपी के लिए वोट बटोरने की मशीन बनेगा। अतीत ने साबित किया कि राम मंदिर बनाने में सबसे बड़ी बाधा ख़ुद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है। वह इस संवदेनशील मुद्दे पर ज़्यादा से ज़्यादा चुनावों में अधिक से अधिक धार्मिक वोट बीजेपी की मतपेटी में डलवाने की कोशिश करता है।
हमने देखा कि जब हाल में ही 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए तब एकाएक विश्व हिंदू परिषद और साधुओं के अनाम संगठन और संघ के सभी नेता एकाएक मंदिर निर्माण पर धार्मिक भावनाएँ सेंकने लगे और चुनाव होते ही बयान आए कि अब कोर्ट की सुनवाई की प्रतीक्षा की जाएगी।
आज जब भैया जी जोशी ने मंदिर निर्माण की नई प्रस्तावित तारीख़ सीधे 5-6 साल बढ़ा दी है तो इसे समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस की ज़रूरत नहीं है कि यह 2024 के आम चुनाव की राजनीतिक तारीख़ है। हालाँकि संघ ने इसे कुंभ से जोड़कर बताया।
इससे ऐसा भी लगता है 2019 के चुनाव नतीजों के बारे में आरएसएस आश्वस्त नहीं है कि मोदी के नेतृत्व में लड़ा जाने वाला यह चुनाव बीजेपी की वापसी करेगा। इसलिए आरएसएस 2024 के लिए वैचारिक योजना बनाने में जुट गया है।
इसीलिए आज संघ के शीर्ष नेताओं ने अपनी ही सरकार की कड़ी आलोचनाएँ भी कीं। नागपुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने केंद्र सरकार को आईना दिखाते हुए कहा कि जब सीमा पर युद्ध नहीं हो रहा है तो सैनिक क्यों शहीद हो रहे हैं।
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