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पूर्व आईएएस अफ़सर का दावा, संघ नेता कृष्णगोपाल ने कहा था- नहीं चाहिए अयोध्या में राम मंदिर

अयोध्या में विवादित स्थल पर आरएसएस राम मंदिर बनाने की बात तो करता रहा है, लेकिन क्या इसने राम मंदिर बनाने का प्रयास किया? बीजेपी में शामिल रिटायर्ड आईएएस सूर्यप्रताप सिंह कहते हैं कि संघ को राम मंदिर चाहिए ही नहीं। फिर संघ क्या चाहता है? पढ़िए सूर्यप्रताप सिंह का पूरा इंटरव्यू। वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह ने उनसे बातचीत की है।
शीतल पी. सिंह
राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ अयोध्या की विवादित ज़मीन पर राम मंदिर बनाना नहीं चाहता। उसकी मंशा राम मंदिर निर्माण नहीं, इसके ज़रिए हिन्दू स्वाभिमान को जगाना और इस बहाने केंद्र की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी को स्थापित करना है।
संघ के शीर्ष नेताओं में से एक कृष्णगोपाल ने उस समय बीजेपी में शामिल रिटायर्ड आईएएस नेता सूर्यप्रताप सिंह से कहा था, 'हमें यह मंदिर नहीं चाहिए। मंदिर तो घट-घट में है, राम घट-घट में हैं। हमें तो हिंदू स्वाभिमान चाहिए।' 
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सत्य हिंदी ने यह ख़बर दी थी कि फ़ैजाबाद मूल के वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह की किताब ने यह रहस्य खोला था कि अयोध्या में राम मंदिर की सबसे बड़ी बाधा वही है। साफ़ हुआ था कि लक्ष्य राजनैतिक है, चोला धार्मिक है। 
उत्तर प्रदेश काडर के 1982 बैच के आईएएस अफ़सर सूर्य प्रताप सिंह ने रिटायरमेंट के क़रीब तीन बरस पहले ही स्वैच्छिक अवकाश यानी वीआरएस लेकर नौकरी छोड़ दी थी। वह उस समय उत्तर प्रदेश में प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी थे। 

सिंह ने नौकरी छोड़कर तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार के समय के भ्रष्टाचार के मामलों को उठाना शुरू कर दिया था। उस समय अमिताभ ठाकुर नामक एक आईपीएस अधिकारी पत्नी के साथ मिल कर सरकार के भ्रष्टाचार की पोल खोलने में लगे हुए थे। 

साल 2017 के विधानसभा चुनावों के वक़्त सूर्य प्रताप सिंह अरुण जेटली के प्रस्ताव पर बीजेपी में शामिल हो गये और उन्होंने उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश में बीजेपी प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार भी किया था।
आज जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में फ़ैसला टाइप करवा रहा है, यह दुबारा स्थापित हुआ कि निःसंदेह यह मामला उनके लिये तो सिर्फ़ और सिर्फ़ राजनैतिक है।
सत्य हिन्दी ने इस सिलसिले में संघ नेता कृष्णगोपाल को उनका पक्ष जानने के लिये फ़ोन किया। उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया। इसके बाद सत्य हिन्दी ने 23 अक्तूबर की शाम 5 : 56 पर उन्हें ई-मेल पर लिख भेजा। दिल्ली प्रान्त आरएसएस प्रचार प्रमुख राजीव तुली को भी यही ईमेल उसी दिन शाम 6:02 पर भेजा। सत्य हिन्दी को अब तक कहीं से कोई जवाब नहीं मिला है। 
शीतल पी सिंह ने सूर्य प्रताप सिंह से लंबा इंटरव्यू किया। पढ़ें, पूरा इंटरव्यू, जस का तस। 

शीतल पी सिंह : नमस्कार, मैं शीतल पी सिंह, सत्य हिंदी डॉट कॉम पर आपका स्वागत है। मैं आज लखनऊ में हूँ और यह संयोग है कि एस. पी. सिंह भी लखनऊ में हैं। सिंह साहब 1982 बैच के उत्तर प्रदेश काडर के अफसर रहे हैं। अब रिटायर हो गए हैं, लेकिन उसके पहले उन्होंने एक सामाजिक जीवन शुरू किया। उत्तर प्रदेश में और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ और उत्तर प्रदेश कैसे इस समाज को एक बेहतर समाज में अपने आप को बदल सके, उसके लिए क्या क्या किया जाए, उसे करने का यत्न करते रहे। उसके लिए क्या-क्या कठिनाइयाँ झेलीं, बहुत से मुक़दमे झेले, सिस्टम और एडमिनिस्ट्रेशन आपको तकलीफें देता है, वो सब झेल कर भी वह सब किया। आप की एक और ख़ासियत है, आप फैज़ाबाद के कमिश्नर रहे हैं, तो राम जन्म भूमि आंदोलन और राम जन्म भूमि विवाद और उससे जुडी और तमाम सामाजिक चीज़ों से भी आपका सीधा वास्ता रहा है। कमिश्नर होने के नाते उस परिसर में जहाँ यह राम मंदिर होने की बात है, एक मसजिद के मुतवल्ली भी हैं। सारे कागज़ात इनके पास हैं, जो इन्हें सौंपे गए हैं। श्री श्री रविशंकर के साथ जुड़ कर आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके जुड़े संगठनों से जुड़ गए। आपने उसमें हस्तक्षेप करने की कोशिश की ताकि आम सहमति से मामले का निपटारा हो सके। और ऐसा करने में क्या-क्या हुआ, इस प्रसंग में हम उस पर बातचीत आपसे करेंगे। आपका स्वागत है।

सूर्य प्रताप सिंह : थैंक यू!
शीतल पी सिंह : थोड़ा सा ब्रीफ करें, इस आन्दोलन से पिछले साल और इस दौरान आप कैसे जुड़े?
सूर्य प्रताप सिंह : मैं 1997 में कमिश्नर था और यह वह पीरियड था जब आपको याद हो कि 1993, 1997, 2003 में हाई कोर्ट की तरफ सेआर्कीओलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया को यह काम दिया गया था कि वह खोद के देखें कि जो आर्टिफैक्ट्स निकल रहे हैं वह कहीं से ऐसे रिलेटेड हैं कि वह कोई हिन्दू स्ट्रक्चर था या मंदिर था या राम का मंदिर था? अवशेष हैं, जिसको तोड़ कर मसजिद बनायीं गयी थी। 1986 में जब पूजा आरम्भ की गयी, ताला खुलवाया गया, उस वक़्त वीर बहादुर सिंह चीफ मिनिस्टर थे, मैं जॉइंट सेकेटरी था। जब शिलान्यास हुआ था, एन. डी. तिवारी ने किया था, उस वक़्त भी मैं था।
शीतल पी सिंह : उस दौरान प्रशासन, वीर बहादुर सिंह और मुसलिम पक्ष की क्या प्रतिक्रिया थी? 
सूर्य प्रताप सिंह : 86 में और 89 में स्थानीय मुसलमानों की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई थी कि साहब ऐसा क्यों कर दिया गया।  
शीतल पी सिंह : आप यह कहना चाह रहे हैं कि मुसलामानों ने संयम का परिचय दिया था?
सूर्य प्रताप सिंह : संयम का परिचय दिया था मुसलमानों ने।  कोई झगड़ा नहीं, कोई इशू नहीं हुआ था।  1949 में रात में 3 शरारती लोगों ने मसजिद में मूर्तियाँ रख दी थीं। जवाहरलाल नेहरू उस वक़्त प्राइम मिनिस्टर थे और के. के. के. नायर उस समय जिला मजिस्ट्रेट हुआ करते थे। 
शीतल पी सिंह : जो बाद में वहाँ से सांसद भी हुए। 
सूर्य प्रताप सिंह : हाँ, बाद में सांसद हुए और फिर हिन्दू महासभा जॉयन कर लिया उन्होंने। जो मूर्तियाँ रखीं गयीं थीं, उन्हें प्रधानमंत्री के कहने के बावजूद क़ानून-व्यवस्था का सहारा लेते हुए नायर साहब ने नहीं हटाया था। तब से वह ताला बंद, मूर्तियाँ अंदर, चला आ रहा था।
शीतल पी सिंह :  फिर 97 में क्या हुआ जब पुरातत्व विभाग के लोगों ने खुदाई की?
सूर्य प्रताप सिंह : एएसआई ने उसके आधार पर कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल की। उसके बाद फिर कोर्ट ने कहा, कुछ और डिटेल माँगा उन्होंने, 2003 में फिर खुदाई हुई। इस खुदाई के बाद जो रिपोर्ट सौंपी थी, उससे भी कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ। कोर्ट यह जानना चाहता था कि वास्तव में यहाँ कोई राम का मंदिर था या नहीं? उसमें 50 खम्बे हैं। एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में साफ़ लिखा है कि ये खंबे, मंदिर का प्रमाण नहीं हैं। वहाँ कोई हिन्दू बड़ी स्ट्रक्चर रही हो, यह हो सकता है, महल हो यह भी  संभावना है। वहाँ 1611 में विलियम फिंच एक अँगरेज़ थे। 
शीतल पी सिंह : उसका ही एक कमेंट यूज़ किया जाता है अब तक लगातार। 
सूर्य प्रताप सिंह : उसने यह कहा था कि यहाँ एक बड़ा महल था, राम का। 1991 में, कल्याण सिंह चीफ मिनिस्टर थे, 1991 में कल्याण सिंह की गवर्नमेंट ने एक आर्डर किया था, 2. 77 एकड़ भूमि को राज्य सरकार ने अधिकृत कर लिया। उसके बाद हाई कोर्ट ने उस पर 'स्टे' दिया, कहा कि अधिकरण नहीं हुआ है। मुझे लगता है कि यह पहला जो टाइटल सूट था, 1856 या 55 में फाइल हुआ था।
शीतल पी सिंह : वह राम चबूतरे और उसका विवाद है, गर्भगृह का विवाद नहीं है।
सूर्य प्रताप सिंह : वह गर्भगृह का विवाद नहीं है। वह केवल टाइटल सूट है कि यह ज़मीन हमारी है। और कितनी बार हम लोगों ने टेंट की जगह बदली। कोई कहता है यहाँ पर वह स्थान है, कोई कहता वहाँ। हमने कितनी बार तो मूर्तियों को बरसात में इधर से उधर किया गया!
शीतल पी सिंह : हम लोग फिर वहीं आते हैं, दो सालों में जो आपने कोशिशें की, श्री श्री रविशंकर के साथ, प्रतिनिधि बन कर, उनके सहयोगी बन कर और राष्ट्रीय स्वयं स्वयंसेवक संघ के बड़े नेताओं से मिले। लगा के अब मामला हल कर देंगे, फिर चीज़ें कहाँ ख़राब हुईं?

सूर्य प्रताप सिंह : देखिये, 2015 में जब मैंने देश के अंदर बदलाव के लिए आन्दोलन शुरू किया था, अखिलेश यादव की सरकार थी और मेरी 3 साल की नौकरी बाकी थी, मैंने वॉलन्टरी रिटायरमेंट ली थी। उसके बाद जब सरकार बदल गयी, नई सरकार आयी तो हमको बहुत आशा थी कि सरकार नई आयी है, काम करेगी, योगी जी की सरकार है, और मोदी जी की सरकार है। उन आशाओं के साथ फिर हमने मदद भी की, 17-18 महीने तक काम किया। मेरी माँ ने पहले 2,000 रुपये अशोक सिंघल को मंदिर बनाने के लिए दिया था, उन्होंने यह वाकया श्री श्री रविशंकर को बताया और कहा कि मेरा पैसा वापस दिलवा दीजिये। हमने कहा कि विवाद हल हो जाए, अगर वास्तव में मंदिर था तो मंदिर बन जाए और अगर मंदिर नहीं था, मसजिद थी, तो मसजिद बन जाए। सामाजिक सौहार्द्र का वातावरण बने और लंब समय से चला आ रहा इसका पोलिटिकल दोहन ख़त्म हो। हमने सोचा कि हमने सरकार को बनाने में भूमिका निभायी तो सरकार सुनेगी हमारी बात। इसके पीछे संघ है, आरएसएस है, उससे भी मेरा अच्छा परिचय हो गया, रविशंकर निरंतर संपर्क में थे। 

हमने कहा कि गुरु जी, आप इनिशिएटिव लीजिये और हम लोग काम करेंगे क्योंकि मैं सभी लोगों को मैं जानता हूँ। वहाँ के पक्षकार मेरे विश्वास में है। वहाँ एक मसजिद है, जो हनुमानगढ़ी मसजिद कहलाती है, हिन्दू मसजिद भी कहलाती है, उसका मैं सब कर्ताधर्ता हूँ। उसको हम ट्रेड ऑफ कर सकते हैं, एक्सचेंज करके, उनको दे दें और यह 2.77 एकड़ में एक तिहाई ही तो है इनका, और एक तिहाई में भी 1/15 शिया का है। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की प्रॉपर्टी है, उसमें शिया का होता है प्रॉपर्टी में, ये हिस्सा उनका होता है। हम लोगों ने प्रयास शुरू किया, हमको लगने लगा समाधान होने वाला है। तब तक मध्यस्थता पैनल डिक्लेअर नहीं हुआ था और मैं रविशंकर को लेके अयोध्या गया। उनकी एक कॉन्फ्रेंस कराई, बड़ी मीटिंग कराई, सारे संतों को इकठ्ठा किया, सारे पक्षकारों से मुलाक़ात कराई।

शीतल पी सिंह : यह किस समय की बात है, पिछले साल की?
सूर्य प्रताप सिंह : यह पिछले साल की बात है। 
शीतल पी सिंह : मेरा ख़याल है, जाड़ों की ही बात है?
सूर्य प्रताप सिंह : जी, जाड़ों की ही बात है। जब प्रयास हुआ, उसमें एक सदस्य ऐसे थे जिनको सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने निकाल दिया है। हम लोगों ने कोशिश शुरू की। इसमें पक्षकार कौन है? तो पक्षकारों में एक तो राम लल्ला विराजमान हैं, सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड है और निर्मोही अखाड़ा है, तीन ही पक्षकार हैं। तीनों पक्षकार के जो कर्ताधर्ता हैं उनसे मेरा स्थानीय आयुक्त होने के कारण परिचय अच्छा था। सबसे बात की। उन्होंने कहा, कोई मसला नहीं है, अगर मसजिद बनती है तो बने, मंदिर में कोई दिक्क़त ही नहीं है। हमने कहा, अगर आपको मसजिद दे दें, तो कोई दिक्कत नहीं है? बोले, नहीं, कोई दिक्क़त नहीं है, बनाने का खर्चा है, वह दे दीजिये। तो तय हुआ 80 करोड़ रुपये देना है।
शीतल पी सिंह : 80 करोड़ रुपये मसजिद निर्माण के लिए, यह आपस में तय हुआ। यह तय हुआ कि मुसलमान उस मसजिद में चले जाएँ और यहाँ राम मंदिर बन जाए?

सूर्य प्रताप सिंह : एक तिहाई उनको छोड़ना है 2.77 एकड़ से, वे तैयार हैं। पता चला इसमें वास्तव में निर्मोही अखाड़ा या पुजारी राम लल्ला नहीं है, इसके अंदर तो विश्व हिन्दू परिषद है। असली पक्षकार तो वे हैं। श्री श्री रविशंकर कौन? ये तो संत भी नहीं हैं , ये तो किसी अखाड़े के पार्ट भी नहीं हैं, ये तो श्वेताम्बर हैं, ये तो भगवाधारी भी नहीं हैं, ऐसी बातें होने लगीं।   मैंने वीएचपी और संघ के साथ काम करने की कोशिश की,  इनके सभी बड़े-बड़े लोग ऊपर से लेकर नीचे तक जितने भी लोग हैं और जो कर्ताधर्ता हैं उनसे बात हुई, प्रेजेंटेशन हुईं इनके सामने। उनके सामने खाका बताया गया, कैसे करना है, ट्रस्ट बनेगा। 86 लोगों के ट्रस्ट का खाका बना, सब तैयारी हो गयी, प्रेस कॉन्फ्रेंस की तारीख़ तक तय कर दी गई। तय हुआ कि हमलोग अयोध्या जायेंगे, तीनों पक्षकारों को मंच पर बैठा कर प्रेस कांफ्रेंस कराएँगे, तीनों कहेंगे समझौता मंज़ूर है। सुप्रीम कोर्ट में उसको कॉपी दाखिल कर दी जाएगी। 

प्रेस कांफ्रेंस होने से दो दिन पहले की बात है, दिल्ली स्थित संघ दफ्तर में बैठक हुई। एक पक्षकार ने अचानक अपना रुख बदल लिया।

शीतल पी सिंह : कौन?

सूर्य प्रताप सिंह : आपको जानकारी होगी, आप नाम लीजिये, मैं हाँ बोल दूँगा।

शीतल पी सिंह : कृष्णगोपाल जी तो नहीं?

सूर्य प्रताप सिंह : हाँ, कृष्णगोपाल जी। उन्होंने रुख बदला अपना। उन्होंने कहा, सिंह जी, आप इससे पीछे हट जाइये और श्री श्री रविशंकर से भी कहिये वे भी पीछे हट जाएँ। हमें मंदिर नहीं चाहिए, मंदिर तो घट-घट में है, राम घट-घट में है, हमें तो हिन्दू स्वाभिमान चाहिए। 
सूर्य प्रताप सिंह : उन्होंने कहा था, जैसे बाबर ने हमसे छीना, वैसे छीन के लेना है। हमें ट्रेड ऑफ थोड़ी करना? सौदा करेंगे तो हिन्दुओं को मुँह क्या दिखाएंगे? मुझे लगा, ये समझौता नहीं करना चाहते। मंदिर नहीं बना देना चाहते, यह सच्चाई है। संघ मंदिर नहीं बना देना चाहता। 
शीतल पी सिंह :  यह बैठक झंडेवालाँ में हुई थी?
सूर्य प्रताप सिंह : हाँ। सुन्नी वक़्फ़ के जो मेंबर हैं, वे भी नहीं बना देना चाहते, क्योंकि उनकी दुकान बंद हो जा रही है। उन लोगों से बात करते थे बोलते थे, अरे सर! कोर्ट से आने दीजिये। और जो पक्षकार हैं, खुद वे कह रहे हैं, हम तैयार हैं।
शीतल पी सिंह : ज़ाहिर है, पक्षकार तैयार है तो वक़्फ़ बोर्ड क्या कर लेगा?
सूर्य प्रताप सिंह : नहीं, वह पार्टी में नहीं है। वह तो किसी के द्वारा हैं। मेरा अनुभव यह रहा कि वास्तव में मंदिर बनाने में रुचि नहीं है, यह लड़ाई है। तो ऐसी चीज़ें जब सामने आयीं मुझे तो अनुभव हुआ, हम  या अनुमोदन है या रिजेक्शन हैं। हमें यह नहीं पता है कि इसमें अनुमोदन है लेकिन अंदर रिजेक्शन है। किसको मंदिर चाहिए भाई? घट- घट में है राम तो! कितने मंदिर हैं। और किसने कहा कि वहाँ राम पैदा हुए थे? किसी ने देखा?
शीतल पी सिंह : यह कृष्णगोपाल जी के शब्द हैं आप कह रहे हैं? ये बहुत बड़ी बात आप कह रहे हैं?
सूर्य प्रताप सिंह : भाई किसने देखा? मैंने उनको यह बताया था कि जब वहाँ टेन्ट लगते थे, फट जाता था, मूर्तियाँ भी आगे पीछे करते थे हम। जब पानी ज़्यादा भर जाता था तो मूर्तियाँ डूब जाएँगी। लब्बो-लुबाव यह है कि यह मंदिर कब का बन गया होता, अगर इससे राजनीति हट जाती।
शीतल पी सिंह : अयोध्या एक तो आस्था का प्रतीक है, लेकिन अयोध्या इस देश में राजनीति का एक बहुत बड़ा सिंबल है और बाकी सारी बातें अपने शब्दों में सुनी हैं मैं उसमें कुछ और जोड़ घटाव नहीं करना चाहता। इस इंटरव्यू के उस भाग में जो एस. पी. सिंह साहब ने खुद बताया है, सुनिए और  समझिये के वाकई अयोध्या का मसला है क्या? बहुत बहुत धन्यवाद!
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