क्या सलाफ़ी इसलाम भारत में अपने पैर तेज़ी से पसार रहा है? क्या भारत में जिस सूफ़ी प्रभाव वाले इसलाम को मानने वाले करोड़ों लोग सदियों से दूसरे धर्मों के लोगों के साथ मेलजोल और भाईचारे के साथ रहते हैं, उसकी जगह लेने के लिए कट्टर और दकियानूसी इसलाम आगे आ रहा है? ये सवाल अहम इसलिए हैं कि दक्षिण भारत और ख़ास कर केरल में अरबी प्रभाव वाले इसलाम का असर बढ़ रहा है। इसलाम के इस स्वरूप को मानने वाले लोग दूसरे धर्मों की तो बात ही क्या, अपने धर्म के भी उन लोगों को चुप कराने पर तुले हुए हैं जो उनके कट्टर विचारों से इत्तिफ़ाक नहीं रखते।
इसका ताज़ा उदाहरण केरल के तिरुवनंतपुरम ज़िले का है। कोझीकोड के मुसलिम एजुकेशन सोसाइटी ने बीते दिनों एक सर्कुलर जारी कर संस्था से जुड़े स्कूल-कालेजों से कहा कि वे अपने यहाँ उन पोषाकों पर प्रतिबंध लगा दें जिसमें चेहरा ढंका जाता हो। इसके बाद संस्था के प्रमुख पी. ए. फ़ज़ल गफ़ूर को किसी ने फ़ोन कर जान से मार देने की धमकी दी।
पुलिस को दायर एफ़आईआर में गफ़ूर ने कहा कि किसी ने उन्हें फो़न कर जान से मार देने की धमकी दी।
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शुक्रवार को मुझे किसी ने मोबाइल से फ़ोन किया, जान से मार डालने की धमकी दी। यह किसी पुरुष की आवाज़ थी और उसने मुझसे बहुत ही अभद्र, धमकाने वाले और अपमानजनक तरीके से बात की। वह चेहरा ढंकने वाले लिबास पर रोक लगाने के फ़ैसले से बेहद उत्तेजित और गुस्से में था।
पी. ए. फ़ज़ल गफ़ूर, मुसलिम एजुकेशन सोसाइटी के प्रमुख
क्या है पूरा मामला?
मुसलिम एजुकेशन सोसाइटी ने एक सर्कुलर जारी कर कहा, ‘शैक्षणिक वर्ष 2019-2020 से संस्था बग़ैर किसी विवाद में पड़े यह फ़ैसला लागू करे कि कोई भी लड़की ऐसा लिबास पहन कर कक्षा में न आए, जिससे चेहरा ढंका हुआ हो।’ गफ़ूर ने हाई कोर्ट के एक फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा है कि स्कूल-कॉलेज के प्रबंधन को यह हक़ है कि वह अपने हिसाब से ड्रेस तय करे और उसे लागू करे।उन्होंने एनडीटीवी से बात करते हुए इस फै़सले की वजह बताई। उन्होंने कहा, ‘चेहरा ढंके होने से किसी छात्रा को पहचाना नहीं जा सकता, वे चेहरा ढंक कर क्लास में बैठने से शिक्षक की बातें भी ठीक से नहीं समझ सकतीं। यदि किसी मुसलिम संस्था को इससे विरोध है तो वे अपने स्कूल-कॉलेजों में उस तरह की लिबास की अनुमति दे सकते हैं।’
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केरल की संस्कृति, यहाँ माने जाने वाले किसी धर्म या परंपरा में महिलाओं या लड़कियों के चेहरा ढंकने का रिवाज नहीं है।
पी. ए. फ़ज़ल गफ़ूर, मुसलिम एजुकेशन सोसाइटी के प्रमुख
लेकिन कुछ लोग गफ़ूर की इस बात से सहमत नहीं हैं। राज्य के इसलामी संगठन समस्था केरल जमीयतुल उलमा के विद्वान उमर फ़ैज कहते हैं, ‘इसलाम के मुताबिक़, महिलाओं के शरीर का कोई हिस्सा नहीं दिखना चाहिए। एमईएस को कोई हक़ नहीं है कि वह किसी को अपना चेहरा ढंकने से रोके। इसलामी नियम क़ानूनों का पालन किया जाना चाहिए।’
तात्कालिक कारण?
दरअसल भारत में बुर्क़े पर एक बार विवाद शुरू हो गया है। श्रीलंका में गिरजाघरों और होटलों पर ईस्टर रविवार के दिन हमले होने के बाद वहाँ की सरकार ने बुर्के पर रोक लगा दी है। इसकी एक वजह यह भी है कि सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ के बाद जब वहां लोग पहुँचे तो बुर्के में कुछ लोग वहाँ से भाग निकले और उन्हें नहीं पहचाना जा सका। वे संदिग्ध आतंकवादी हो सकते थे। इसके बाद भारत में शिवसेना ने बुर्के पर रोक लगाने की माँग कर दी और इसके साथ ही इस पर बहस छिड़ गई। भोपाल से चुनाव लड़ रहीं साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और अपना बेतुके बयानों के लिए बदनाम हो चुके मोदी सरकार के मंत्री गिरिराज सिंह ने शिव सेना की माँग से सहमति जताई।ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष असदउदु्दीन ओवैसी ने शिवसेना और बीजेपी नेताओं को कड़ा जवाब दिया।
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आज बुर्क़े पर पाबंदी की बात हो रही है, कल दाढ़ी-टोपी पर पाबंदी लगाने की माँग हो सकती है। बुर्क़े और नक़ाब पर पाबंदी की माँग करने वाले घूंघट पर पाबंदी की माँग क्यों नहीं करते?
असदउदु्दीन ओवैसी, अध्यक्ष, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन
इन देशों में है बुर्क़े पर पाबंदी
बुर्क़े पर पाबंदी के फ़ैसले के साथ ही श्रीलंका एशिया, अफ़्रीका और यूरोप के उन देशों में शामिल हो गया है जहाँ इसे पहनने पर प्रतिबंध है। बता दें कि चैड, कैमरून, गैबन, मोरक्को, ऑस्ट्रिया, बल्गारिया, डेनमार्क, फ़्रांस, बेल्जियम और उत्तर-पश्चिम चीन के मुसलिम बहुल प्रांत शिनजियांग में बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी है। डेनमार्क में पिछले साल ही बुर्क़े पर पाबंदी लगाई गई है। वहाँ बुर्क़े पर पाबंदी लगाने वाले क़ानून में मुसलिम महिलाओं का ज़िक्र किए बिना कहा गया है, 'कोई भी अगर सार्वजनिक तौर पर चेहरे को ढकने वाला कपड़ा पहनेगा तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा।' इसलाम क्या कहता है?
न बुर्क़े से इस्लाम है और न ही बुर्क़े में इस्लाम है। क़ुरआन में औरतों को पर्दे का हुक्म हैं। मर्दों को निगाहें नीची करके चलने का हुक्म है। क़ुरआन (सूरह नूर आयत न. 30) ‘ऐ नबी (मुहम्मद साहब स.अ.व.) कह दो मोमिन (मुसलमान) मर्दों से कहो कि वे अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों (शरीर के खास अंगों) की हिफाजत करें। ये उनके लिए बेहतर है।’
क्या है मध्य-पूर्व कनेक्शन?
लेकिन केरल का मामला थोड़ा अलग है। इसे समझने के लिए यह ध्यान में रखना ज़रूरी है कि केरल की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा मध्य-पूर्व के देशों में रहता है। इन देशों को नर्स, डॉक्टर, अर्द्धकुशल मजदूर और तकनीकी जानकारी वाले कामगारों की ज़रूरत पड़ी क्योंकि वे अपने यहाँ बड़े पैमाने पर विकास कार्य कर रहे थे। उनके पास तेल के व्यापार से उपजा अथाह पैसा तो है ही, इस पैसे के बल पर दूसरे क्षेत्रों में निवेश और विकास की ज़रूरत भी है। वहाँ तेल कारखाने, रिफ़ाइनरी ही नहीं बने, बड़े पैमाने पर ढाँचागत सुविधाओं का निर्माण हुआ।एक अध्ययन के अनुसार 2008 में लगभग 25 लाख लोग मध्य पूर्व के क़तर, ओमान, बहरीन, क़ुवैत में फैले हुए थे। यह तादाद बढ़ी और दो साल पहले तेल संकट गहराने के पहले तक इन देशों में 30 लाख से ज़्यादा केरलवासी थे।
यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि वहाँ गए मुसलमान वहाँ के इसलामी स्वरूप से प्रभावित होंगे। वे उन देशों में मौजूद कट्टर सलाफ़ी इसलाम के संपर्क में आए, उससे प्रभावित हुए और केरल में भी वैसा ही इसलाम लागू करने के बारे में सोचने लगे। केरल में भी बहावी धारा के इसलाम के प्रचार-प्रसार में लगे मदरसे धड़ल्ले से खुलने लगे। यह इसलाम केरल के पारंपरिक इसलाम से बिल्कुल अलग है, लेकिन इसे मानने वालों की तादाद वहाँ तेज़ी से बढ़ रही है। ऐसे में बुर्के पर प्रतिबंध पर ग़ुस्सा आना या इस वजह से किसी को धमकी देना ताज्जुब की बात नहीं है। गफ़ूर को धमकी देने की घटना को इसी परिप्रेक्ष्य में समझे जाने की ज़रूरत है।
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