सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में कहा है कि निजी अस्पतालों में मुफ़्त कोरोना जाँच की सुविधा सिर्फ समाज के सबसे ग़रीब लोगों को ही मिल सकती है।
यह फ़ैसला कोर्ट के पहले के फ़ैसले के एकदम उलट है, जिसमें उसने कहा था कि कोरोना संक्रमण की मुफ़्त जाँच सबकी होनी चाहिए।
इसके पहले निजी अस्पतालों ने कहा था कि वे कोरोना संक्रमण की मुफ़्त जाँच नहीं कर सकते। इस पर इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ने सुप्रीम कोर्ट में अपना स्टैंड बदल लिया था।
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अदालत ने कहा है कि आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत जो लोग आते हैं, निजी अस्पतालों में उनकी ही मुफ़्त जाँच हो। इसके अलावा सरकार ख़ुद तय करे कि वह किन वर्गों के लोगों को मुफ़्त जाँच की सुविधा देना चाहती है। सरकार यह तय करे कि समाज के दूसरे कमज़ोर तबके मसलन दिहाड़ी मज़दूर या असंगठित क्षेत्र के दूसरे कामगार, किसे वह यह सुविधा देना चाहती है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला ऐसे समय आया है जब यह बात साफ़ हो गई है कि लॉकडाउन के बाद भी कोरोना वायरस का फैलना नहीं रुका है। 14 दिन पहले यानी 29 मार्च को जहाँ 160 ज़िले वायरस से प्रभावित थे वे अब बढ़कर 364 हो गए हैं। यानी देश के 718 ज़िलों में से आधे अब कोरोना की चपेट में हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने 24 मार्च को जो देश भर में लॉकडाउन की घोषणा की थी उसकी मियाद भी अब ख़त्म होने को आ गई है और अब संकेत ऐसे मिल रहे हैं कि इसको इस महीने के आख़िर तक बढ़ाया जाना क़रीब-क़रीब तय है।
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