नेशनल डिफ़ेंस एकेडमी यानी एनडीए में महिलाओं के प्रवेश में एक साल की देरी करने की सरकार की कोशिश को सुप्रीम कोर्ट ने झटका दिया है। इसने सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया है जिसमें नयी व्यवस्था बनाए जाने तक महिलाओं के परीक्षा में शामिल होने को एक साल के लिए टाल दिए जाने का अनुरोध किया गया था। अदालत ने साफ़-साफ़ कह दिया है कि महिलाओं को इसी साल परीक्षा में भाग लेने दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 'हमने लड़कियों को एक उम्मीद दी है। हम अब उनकी इन उम्मीदों को दरकिनार नहीं कर सकते हैं।' सुप्रीम कोर्ट के लगातार दबाव के बीच क़रीब एक पखवाड़ा पहले ही केंद्र सरकार ने फ़ैसला किया है कि महिलाओं को एनडीए में शामिल किया जाएगा। तब सरकार ने यह भी कहा था कि महिलाओं को भारतीय सेना में पर्मानेंट कमीशन दिया जाएगा। बाद में सरकार ने अदालत से कहा था कि एनडीए के लिए पहली बार महिला उम्मीदवार अगले साल मई में परीक्षा में शामिल की जानी चाहिए क्योंकि इस साल परीक्षा लेने के लिए बहुत कम समय बचा है।
आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जवाब दिया, 'सशस्त्र बलों ने बहुत कठिन परिस्थितियों और आपात स्थितियों से निपटा है। उन्हें आपात स्थिति से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। और वे इससे निपटने में सक्षम होंगे।'
जस्टिस एसके कौल और बीआर गवई ने कहा, 'अगर वे मई 2022 में परीक्षा में शामिल होते हैं तो जनवरी 2023 में प्रवेश होगा। हम एक साल की देरी नहीं कर सकते।'
इसके साथ ही अदालत ने 14 नवंबर को परीक्षा के लिए अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया और कहा कि 'परीक्षा आज नहीं, कल' का तरीक़ा युवतियों की आकांक्षाओं के ख़िलाफ़ जाएगा।
वैसे, एनडीए में महिलाओं के प्रति भेदभाव की नीति को लेकर सुप्रीम कोर्ट लगातार सरकार की खिंचाई करता रहा है। अदालत ने 18 अगस्त को सुनवाई के दौरान देश के सशस्त्र बलों में पुरुषों और महिलाओं के लिए समान सेवा के अवसरों को लेकर कहा था कि यहाँ 'मानसिकता की समस्या' है। उसने सरकार को चेतावनी दी थी कि 'बेहतर होगा कि आप बदलाव करें'।
इससे पहले मार्च महीने में एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया था कि सेना में सबसे उँचे पद यानी सेना की कमान महिलाओं के हाथ देने में कितना पक्षपात होता रहा है।
कोर्ट ने तब कहा था कि सेना में पर्मानेंट कमीशन पाने के लिए महिलाओं के लिए मेडिकल फिटनेस का जो नियम है वह 'मनमाना' और 'तर्कहीन' है। इसने कहा था कि ये नियम महिलाओं के प्रति पक्षपात करते हैं। तब सुप्रीम कोर्ट सेना में पर्मानेंट कमीशन को लेकर क़रीब 80 महिला अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं पर फ़ैसला सुना रहा था। कोर्ट ने कहा था कि हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि समाज का जो ढाँचा है वह पुरुषों द्वारा और पुरुषों के लिए तैयार किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेना की चयनात्मक वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट मूल्यांकन और चिकित्सा फिटनेस मानदंड देर से लागू होने से महिला अधिकारियों के ख़िलाफ़ भेदभाव होता है।
इन आलोचनाओं के बीच ही इस साल 8 सितंबर को सरकार ने फ़ैसला किया कि महिलाओं को भारतीय सेना में पर्मानेंट कमीशन के लिए एनडीए में शामिल किया जाएगा। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि तीनों सेना प्रमुख महिलाओं को इसकी अनुमति देने के लिए सहमत हो गए हैं। हालाँकि सरकार ने कहा था कि महिलाओं को एनडीए में शामिल करने के लिए गाइडलाइंस तैयार करने में कुछ वक़्त लगेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस मामले में जवाब देने के लिए 10 दिन का समय दिया था। सेना में महिलाओं की भागीदारी और बराबरी के हक को देखते हुए इसे एक ऐतिहासिक फ़ैसला क़रार दिया गया।
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