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सीजेआई के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न मामले में जाँच को लेकर उठे सवाल

क्या देश की सर्वोच्च अदालत में सबकुछ ठीकठाक नहीं है? यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई के ख़िलाफ़ चल रहे यौन उत्पीड़न के मामले में हो रही जाँच प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने आपत्ति दर्ज कराई है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने यौन उत्पीड़न मामले की जाँच कर रही समिति से कहा है कि आरोप लगाने वाली महिला की अनुपस्थिति में जाँच को आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए। बता दें कि सीजेआई रंजन गोगोई पर उन्हीं के दफ़्तर में काम कर चुकी 35 साल की जूनियर कोर्ट असिस्टेंट ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। 

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अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, जस्टिस चंद्रचूड़ ने जस्टिस रोहिंटन नरीमन के साथ इस मामले में शुक्रवार 2 मई को समिति के सदस्यों से मुलाक़ात की थी। ख़बर के मुताबिक़, दोनों न्यायाधीशों ने इस दौरान जाँच प्रक्रिया को लेकर अपनी चिंताओं के बारे में समिति के सदस्यों से बात की। समिति में जस्टिस एसए बोबडे, इंदु मल्होत्रा ​​और इंदिरा बनर्जी शामिल हैं। 

न्यायमूर्ति चंद्रचूड वरिष्ठता की सूची में दसवें स्थान पर हैं और 2022 से 2024 तक दो साल के लिए मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में हैं। जस्टिस नरीमन वर्तमान में कॉलेजियम के सदस्य हैं और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों में वरिष्ठता सूची में पांचवें स्थान पर हैं। 

2 मई को ही जस्टिस चंद्रचूड़ ने जाँच समिति को पत्र लिखकर कहा कि अगर महिला की अनुपस्थिति में जाँच को आगे बढ़ाया जाता है तो इससे सुप्रीम कोर्ट की छवि को और ज़्यादा नुक़सान होगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने पत्र में यह भी सुझाव दिया है कि समिति को या तो महिला के अपने वकील के साथ आने की उसकी माँग मान लेनी चाहिए या जाँच के लिए एमिकस क्यूरी को नियुक्त किया जाना चाहिए। बता दें कि शिकायत करने वाली महिला ने कुछ दिन पहले इस जाँच प्रक्रिया से ख़ुद को अलग कर लिया था। महिला ने कहा था कि उसे समिति से डर लगता है और इसके कामकाज के तौर-तरीक़ों से सहमत नहीं है। इसके बाद जाँच समिति ने उसकी अनुपस्थिति में ही जाँच को आगे बढ़ाने का फ़ैसला किया था।ख़बरों के मुताबिक़, महिला ने जाँच समिति को एक चिट्ठी लिख कर कहा था कि समिति को ऐसी प्रक्रिया अपनानी चाहिए जो बराबरी पर आधारित हो और निष्पक्षता सुनिश्चित करे।
महिला ने कहा था कि वह जाँच प्रक्रिया से इसलिए हट रही हैं क्योंकि इसके सदस्य यह नहीं समझ पा रहे हैं कि यह कोई साधारण शिकायत नहीं है बल्कि यह देश के मुख्य न्यायाधीश के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न की शिकायत है।

सीजेआई गोगोई पर लगे पर यौन उत्पीड़न के आरोपों की जाँच करने के लिए तीन जजों की एक इन-हाउस समिति बनाई गई थी। लेकिन आरोप लगाने वाली महिला ने कहा था कि समिति के एक जज एन. वी. रमण जस्टिस गोगोई के क़रीबी हैं और सीजेआई के घर उनका आना-जाना लगा रहता है, लिहाज़ा, उसे न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है। इसके बाद जस्टिस रमण ने ख़ुद को इस समिति से अलग कर लिया था। 

आरोप लगाने वाली महिला ने समिति में एक ही महिला के होने पर भी आपत्ति जताई थी। जस्टिस रमण के हटने के बाद जस्टिस इन्दु मलहोत्रा को उनकी जगह कमेटी में लाया गया था।

बता दें कि भारत की न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार किसी सीजेआई पर यौन शोषण का आरोप लगा है। महिला के मुताबिक़, सीजेआई गोगोई ने अपने निवास कार्यालय पर उसके साथ शारीरिक छेड़छाड़ की और जब उसने इसका विरोध किया तो उसे कई तरह से परेशान किया गया और अंत में उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया। 

इन आरोपों के सामने आने के बाद सीजेआई गोगोई ने कहा था कि वह इन आरोपों से बेहद दुखी हैं। उन्होंने कहा था कि उन्हें नहीं लगता है कि उन्हें निचले स्तर तक जाकर इसका जवाब देना चाहिए। 

सीजेआई गोगोई ने कहा था, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बेहद, बेहद, बेहद गंभीर ख़तरा है और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने का एक बड़ा षड्यंत्र है।’ सीजेआई ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे उन्हें कुछ अहम सुनवाइयों से रोकने की साज़िश करार दिया था।

सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटी जनरल ने भी इन आरोपों को झूठा और अपमानजनक बताया था। सेक्रेटी जनरल ने कहा था कि हो सकता है कि इस शिकायत के पीछे कुछ शरारती तत्व हों जो सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था को बदनाम करना चाहते हों।

सीजेआई के ख़िलाफ़ हुई साज़िश!

सुप्रीम कोर्ट के ही एक वकील उत्सव बैंस ने इस मामले में सीजेआई के ख़िलाफ़ साज़िश रचे जाने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि सीजेआई के ख़िलाफ़ एक झूठा केस इसलिये दर्ज़ कराया गया है ताकि वह इस्तीफ़ा दे सकें। उत्सव ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र देकर कहा था कि सीजेआई गोगोई के ख़िलाफ़ आरोप लगाने वाली महिला के पक्ष में प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने के लिए अजय नाम के व्यक्ति ने उन्हें डेढ़ करोड़ रुपये देने की पेशकश की थी।

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यहाँ यह बताना ज़रूरी होगा कि सर्वोच्च अदालत के वकीलों के संगठन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड्स असोसिएशन ने माँग की थी कि सीजेआई पर लगे आरोपों की जाँच के लिए एक कमेटी का गठन किया जाए जो आरोपों की निष्पक्ष जाँच करे। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारियों के संगठन सुप्रीम कोर्ट इंप्लॉयज़ वेलफ़ेयर असोसिएशन ने मुख्य न्यायाधीश का पक्ष लिया था। संगठन ने एक बयान जारी कर कहा था कि वह इस तरह के मनगढ़ंत, झूठे और बेबुनियाद आरोपों का विरोध करता है, ये आरोप संस्था की छवि को ख़राब करने के लिए लगाए गए हैं। 
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क़मर वहीद नक़वी

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