किसान आंदोलन में फिर से तेज़ी आएगी। 40 किसान यूनियनों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि मई महीने में किसान संसद तक मार्च निकालेंगे। हालाँकि इस बारे में निश्चित तारीख़ की घोषणा बाद में की जाएगी। उन्होंने इतना ज़रूर कहा है कि मई के पहले पखवाड़े में ही यह मार्च निकाला जाएगा। किसान तीन कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं और पिछले कई महीनों से दिल्ली की सीमा पर डेरा डाले हुए हैं। गणतंत्र दिवस के दिन किसान दिल्ली में घुसे थे और उस दिन हिंसा की ख़बरें आई थीं। बाद में किसान आंदोलन को ख़त्म करने की कोशिश की गई और एक समय यह आंदोलन धीमा भी पड़ गया था। लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत के मोर्चा संभालने के बाद आंदोलन फिर तेज़ हो गया और तब से देश भर में किसान महापंचायतें की जाती रही हैं।
इस बीच अब संयुक्त किसान मोर्चा यानी एसकेएम ने सरकार पर नये कृषि क़ानूनों को वापस लेने के लिए दबाव बनाने के लिए नयी रणनीति बनाई है। मोर्चा ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस की। इसके बयान में कहा गया, 'एसकेएम ने मई के पहले पखवाड़े में संसद मार्च की घोषणा की है। किसानों और मज़दूरों, महिलाओं, दलित-आदिवासी-बहुजन, बेरोज़गार युवा के अलावा समाज के हर वर्ग के लोग इस मार्च का हिस्सा होंगे। यह कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण होगा।'
एसकेएम ने इसके लिए पूरी योजना बनाई है और यह भी साफ़-साफ़ कहा है कि किसान कैसे आएँगे और किस तरह से मार्च निकाला जाएगा। किसान संघों के इस संगठन ने कहा है कि किसान देश भर से दिल्ली की सीमा पर प्रदर्शन की तीन जगहों पर आएँगे। ये तीन जगह हैं सिंघु, टिकरी और ग़ाज़ीपुर। बयान में यह भी कहा गया है कि किसान अपने-अपने वाहनों से दिल्ली सीमा पर आएँगे और फिर वहाँ से सभी पैदल मार्च निकालेंगे। यह मार्च संसद तक जाएगा।
पहले इस पैदल मार्च को एक फ़रवरी के लिए तय किया गया था, लेकिन एक फ़रवरी को बजट का दिन होने की वजह से यह नहीं किया जा सका था। माना जाता है कि 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च के दौरान हिंसा के बाद किसानों ने ऐसा फ़ैसला लिया था।
दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड में हज़ारों किसान ट्रैक्टर लेकर तय रूट से अलग हो कर दिल्ली में घुस गए थे। हिंसा हुई थी। लाठीचार्ज हुआ था। आँसू गैस के गोले छोड़े गए थे। इस बीच एक व्यक्ति की मौत भी हो गई थी। कुछ लोगों ने लाल किले पर चढ़ कर सिखों का पवित्र झंडा निशान साहिब फहरा दिया था। इस हिंसा के बाद किसान आंदोलन से जुड़े किसानों और लोगों को निशाना बनाया गया। इस बीच आंदोलन फीका पड़ने लगा था। हालाँकि आंदोलन कभी अपनी मांगों से डिगा नहीं है।
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