प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अर्थव्यवस्था के लिए उन लोगों पर निर्भर हैं जो उन्हें आर्थिक जगत का कड़वा सच नहीं बताते, बल्कि वही कहते हैं जो वह सुनना चाहते हैं। यह कहना है बीजेपी सांसद सुब्रमणियन स्वामी का।
सुब्रमणियन स्वामी ने अंग्रेज़ी वेबसाइट 'द प्रिंट' में लिखे एक लेख में मोदी की जम कर तारीफ़ की है और उनकी तुलना पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से की है।
स्वामी ने कहा है कि मनमोहन सिंह कुशल अर्थशास्त्री थे, पर अपनी ही सरकार में उनकी कोई अहमियत नहीं थी और संयोग से ही प्रधानमंत्री बन गए थे। उनकी सरकार के कई वरिष्ठ मंत्रियों ने ज़बरदस्त भ्रष्टाचार किया था और अदालत ने उनके ख़िलाफ़ टिप्पणियाँ की थीं और कई लोगों के विरुद्ध क़ानूनी कार्रवाइयाँ भी हुई थीं।
मोदी की तारीफ़
स्वामी ने मोदी की तारीफ़ करते हुए कहा कि वह कोई बहुत विद्वान व्यक्ति नहीं हैं, लेकिन वह आम जनता और मध्यवर्ग के बीच बेहद लोकप्रिय हैं और उनकी ज़बरदस्त अपील है। मोदी बिल्कुल मामूली पृष्ठभूमि से आए हैं और अपनी अथक मेहनत से यहाँ तक पहुँचे हैं, 2002 के बाद से अब तक एक के बाद एक चुनाव जीतते गए, पहले राज्य और फिर केंद्र में और अंत में प्रधानमंत्री बन गए।
अकादमिक पृष्ठभूमि नहीं होने की वजह से ही मोदी अपने दोस्तों और ऐसे जड़विहीन मंत्रियों पर निर्भर हैं जो उन्हें कभी भी कड़वा सच नहीं बताते। ऐसे लोग मोदी को अर्थव्यवस्था की सूक्ष्म बातें नहीं समझाते या यह नहीं बताते कि उन्हें कब क्या करना चाहिए।
'मोदी की अकादमिक पृष्ठभभूमि नहीं'
स्वामी का मानना है कि इसी वजह से नोटबंदी और जीएसटी जैसी ग़लतियाँ हुईं। इन दोनों वजहों से अर्थव्यवस्था की बदहाली तेज़ हुई। मोदी बहुत ही बड़ी शख़्सियत हैं, जिसका कोई राजनीतिक मुक़ाबला नहीं है।
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मोदी अर्थव्यवस्था जैसे गूढ़ विषयों पर ऐसे सलाहकारों और सहयोगियों पर निर्भर हैं जो कभी चुनाव नहीं जीत सकते, वह ऐसे पढ़े लिखे अर्थशास्त्रियों पर भरोसा करते है जिनमें कुछ बोलने की हिम्मत नहीं है और जो पद और पैसे के लिए मोदी पर निर्भर हैं, वे वही कहते हैं जो मोदी सुनना चाहते हैं। यह देश के लिए बेहद ख़तरनाक है।
सुब्रमणियम स्वामी, बीजेपी सांसद
'आर्थिक संकट होने की बात स्वीकार करें'
इसके साथ ही स्वामी इस बात को खारिज कर देते हैं कि अर्थव्यवस्था बिल्कुल चौपट होने की कगार पर है। वे कहते हैं कि सबसे पहले तो यह स्वीकार किया जाए कि सचमुच संकट है। वह इस पर ज़ोर देते हैं कि अर्थव्यवस्था को नई विचारधारा से जोड़ना होगा।
सुब्रमणियन स्वामी का मानना है कि केंद्रीय स्तर से नियंत्रित होने वाली अर्थव्यवस्था के बचे-खुचे अवशेष को निकाल बाहर फेंकना होगा, पूरी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करना होगा और बाज़ारवादी प्रतिस्पर्द्धामूलक अर्थव्यवस्था अपनानी होगी।
अर्थव्यवस्था को सुधारने का फ़ार्मूला बताते हुए सुब्रमणियन स्वामी याद दिलाते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था का 65 प्रतिशत युवा हैं और एक बहुत बड़ा मध्यवर्ग बन चुका है। इस वर्ग के पास इंटरनेट है, मोबाइल फोन है, ये नया कुछ करना चाहते हैं, ये बदलाव चाहते हैं और हमेशा कुछ न कुछ नया करना चाहते रहते हैं। इनके बल पर सकल घरेलू उत्पाद 10 प्रतिशत की दर से हो सकता है। इसलिए हम बहुत बड़ी जनसंख्या का फ़ायदा उठा सकते हैं।
स्वामी अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए तीन उपाय बताते हैं। वह कहते हैं कि विकास की क्षमता बढ़ाई जाए जिससे सवा अरब लोगों की संपन्नता बढ़ेगी। एक, विकास को जन आंदोलन बना दिया जाए, जिससे हर व्यक्ति जुड़ा हुआ हो और इसके लिए ज़रूरी आर्थिक सुधार किए जाएँ। दूसरे, विकास का ऐसा मॉडल अपनाया जाए, जिससे हर वर्ग, समाज, क्षेत्र, राज्य का विकास हो, कृषि, उत्पादन, कारखाने, सेवा समेत हर क्षेत्र का विकास हो। तीसरा, विकास की ऐसी रणनीति बनाई जाए जिससे सरकारी और निजी क्षेत्र के बीच की खाई पाटी जाए। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को अधिक पारदर्शी बनाया जाए, उसके कामकाज को दुरुस्त किया जाए ताकि 2040 तक भारत चीन से भी आगे निकल जाए और 2050 तक यह अमेरिका को चुनौती देने की स्थिति में आ जाए।
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