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जजों का लिखा फ़ैसला भी बदलवा देते हैं कॉरपोरेट घराने : कोर्ट

क्या न्यायपालिका गंभीर संकट में है? यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि एक बार फिर उसके आदेश को बदलने की कोशिश हुई है। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि उन्हें इस बात से बेहद धक्का लगा है कि उनके दिए गए आदेश में तब्दीली कर दी गई। जस्टिस मिश्रा ने इस ओर इशारा किया कि कुछ प्रभावशाली कॉरपोरेट घराने कोर्ट के स्टाफ़ के साथ जोड़तोड़ करके न्यायपालिका में भी घुस गए हैं और अदालत के आदेश को बदलने की कोशिश कर रहे हैं।
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दिलचस्प बात यह है कि जस्टिस मिश्रा की बेंच फ़िक्सर और बिचौलियों द्वारा न्यायिक प्रक्रिया में हेरफेर की कोशिश करने के मामले में जाँच के आदेश दे चुकी है। जस्टिस मिश्रा को सुनवाई के दौरान बुधवार को इस बात का पता चला कि उनके आदेश में छेड़छाड़ की गई है। अदालत ने कहा कि पहले भी ऐसा हो चुका है जब जस्टिस आरएफ़ नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच के द्वारा उद्योगपति अनिल अंबानी के द्वारा अवमानना वाले मामले में अदालत के दिए गए आदेश को बदल दिया गया था। उस समय अदालत के स्टाफ़ के दो लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया था और उन पर आपराधिक मुक़दमा दर्ज किया गया था।
जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘यह काम बहुत ही शातिर तरीक़े से किया गया है और यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। अदालत में यह क्या हो रहा है? वे लोग हमारे आदेश को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। अदालत में बेहद गंभीर चीजें हो रही हैं। कुछ और लोगों को जाने की ज़रूरत है और 2-3 लोगों को हटाने से बात नहीं बनेगी। ऐसा करके न्यायपालिका को ख़त्म किया जा रहा है और इसे मंजूरी नहीं दी जा सकती। हम आते हैं और चले जाते हैं लेकिन संस्थान बना रहता है।’ 2 मई को, जस्टिस मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपने आदेश में जोतिन्द्र स्टील और ट्यूब्स लिमिटेड, मौरिया उद्योग लिमिटेड, बिहारी जी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड, बिहारी जी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, बिहारी जी हाईराइज़ प्राइवेट लिमिटेड और सर्वोम हाउसिंग प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों को फ़ॉरेंसिक ऑडिटर पवन अग्रवाल के सामने पेश होने को कहा था। जबकि कोर्ट के आदेश में यह लिखा गया था कि निदेशकों को किसी दूसरे फ़ॉरेंसिक ऑडिटर रविंदर भाटिया के सामने पेश होना है। भाटिया इस मामले में इन कंपनियों के ख़िलाफ़ जाँच कर रहे थे। 
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एक दूसरी घटना में, सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच कुछ दिन पहले अपने ही दिए गए निर्देशों के विपरीत आदेश आने के कारण हैरान हो गई थी। यह मामला कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ रफ़ाल मामले में अदालत की अवमानना और इसी मामले में अदालत के आदेश की समीक्षा याचिका को साथ में सूचीबद्ध करने को लेकर था। सीजेआई गोगोई ने कहा था कि हमने 10 मई को अवमानना याचिका को सुनने के लिए सूचीबद्ध किया था। लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है। हमने यह कहा था कि दोनों मामलों को एकसाथ सुना जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
बता दें कि इन दिनों अदालत पर विश्वसनीयता का बड़ा संकट है। सीजेआई रंजन गोगोई पर उन्हीं के दफ़्तर में काम कर चुकी एक जूनियर कोर्ट असिस्टेंट ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। हालाँकि इस मामले में बनी इन-हाउस कमेटी ने सीजेआई को क्लीन चिट दे दी है लेकिन कई न्यायविदों ने इस मामले में अदालत की जाँच प्रक्रिया को ग़लत बताया है और यह भी कहा है कि इससे अदालत की साख पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
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पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने इस बात पर हैरानी जताई है कि 1997 में ख़ुद सुप्रीम कोर्ट ने भंवरी देवी बनाम राजस्थान सरकार के मामले में कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशाखा गाइडलाइंस बनाई थी। और इस मामले में ख़ुद सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा गाइडलाइंस को नहीं माना।दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और बेहद सम्मानित जज एपी शाह का कहना है कि जाँच कमेटी के फ़ैसले से वह बहुत परेशान हैं और इसे किसी भी तरीक़े से जाँच नहीं कहा जा सकता और इससे किसी का भला नहीं हुआ। वह महिला सिर्फ़ एक वकील की माँग कर रही थी और इसमें ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसकी पूर्ति नहीं की जा सकती थी।
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क़मर वहीद नक़वी

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