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सांसदों, विधायकों पर दर्ज आपराधिक केस हाई कोर्ट की मंजूरी से ही हटेंगे: SC

राजनीति को अपराध से मुक्त करने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फ़ैसला दिया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की बेंच ने मंगलवार को कहा है कि सांसदों, विधायकों के ख़िलाफ़ दर्ज आपराधिक मामले हाई कोर्ट की मंजूरी के बिना वापस नहीं लिए जा सकेंगे। इसके साथ ही राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के चयन के 48 घंटों के भीतर आपराधिक रिकॉर्ड सार्वजनिक करना ही होगा। अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह को निलंबित करने की माँग की गई थी जो अपने उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि का खुलासा नहीं करते हैं।

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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल फ़रवरी में अपने फ़ैसले में कहा था कि उम्मीदवारों को इन विवरणों को अपने चयन के 48 घंटों के भीतर या नामांकन पत्र दाखिल करने की पहली तारीख़ से कम से कम दो सप्ताह पहले अपलोड करना होगा। अदालत ने वह फ़ैसला पिछले साल नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव से जुड़े एक मामले में दिया था। 

पहले के उस फ़ैसले में कहा गया था कि सभी राजनीतिक दलों को यह बताना होगा कि उन्होंने आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों को क्यों चुना और ऐसे उम्मीदवारों के चयन के कारणों के साथ मामलों के विवरण अपनी पार्टी की वेबसाइट पर खुलासा करें। चुनाव आयोग ने भी राजनीतिक दलों को उम्मीदवारों के बारे में यह जानकारी अख़बारों में प्रकाशित करने का निर्देश दिया था। इसका सही से पालन नहीं किए जाने का आरोप लगाते हुए ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला काफ़ी अहम इसलिए है क्योंकि राजनीति के अपराधीकरण या अपराध के राजनीतिकरण को ख़त्म किए जाने की वकालत की जाती रही है। लेकिन हर प्रयास के बाद भी ऐसा होता नहीं दिखता है। सांसदों और विधायकों के ख़िलाफ़ दर्ज ऐसे मामले काफ़ी ज़्यादा आते रहे हैं। चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फ़ोर डेमोक्रेटिक रिफ़ार्म्स यानी एडीआर इसका आकलन करती रही है। हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट विस्तार के बाद एडीआर ने दागी मंत्रियों पर ऐसी ही एक रिपोर्ट जारी की है।

एडीआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ कैबिनेट में शामिल 78 मंत्रियों में से 42 फ़ीसदी ने अपने ख़िलाफ़ आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जिनमें से चार पर हत्या के प्रयास से जुड़े मामले हैं।

एडीआर ने इसी साल जुलाई में तब रिपोर्ट जारी की जब 15 नए कैबिनेट मंत्रियों और 28 राज्य मंत्रियों ने शपथ ली थी। इसी के बाद मंत्रिपरिषद की संख्या 78 हो गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने चुनावी हलफनामों का हवाला देते हुए कहा है कि विश्लेषण किए गए सभी मंत्रियों में से 33 (42 फ़ीसदी) ने अपने ख़िलाफ़ आपराधिक मामले घोषित किए हैं। लगभग 24 यानी 31 प्रतिशत मंत्रियों ने अपने ख़िलाफ़ दर्ज हत्या, हत्या के प्रयास, डकैती आदि से संबंधित मामलों सहित गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं।

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कूचबिहार निर्वाचन क्षेत्र से निसिथ प्रमाणिक, जिन्हें गृह राज्य मंत्री नियुक्त किया गया है, ने अपने ख़िलाफ़ हत्या (आईपीसी धारा-302) से संबंधित मामला घोषित किया है। 35 साल की उम्र में वह कैबिनेट में सबसे कम उम्र के मंत्री भी हैं। चार मंत्रियों- जॉन बारला, प्रमाणिक, पंकज चौधरी और वी मुरलीधरन ने हत्या के प्रयास (आईपीसी की धारा-307) से जुड़े मामले घोषित किए हैं। 

विश्लेषण किए गए मंत्रियों में से 70 (90 फ़ीसदी) करोड़पति हैं और प्रति मंत्री औसत संपत्ति 16.24 करोड़ रुपये हैं। चार मंत्रियों ने 50 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति घोषित की है। ये मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, पीयूष गोयल, नारायण राणे और राजीव चंद्रशेखर हैं।

आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसद भारत में कोई नया मामला नहीं है, लेकिन नरेंद्र मोदी ने 2014 में जिस तरह से राजनीति में अपराध, पैसे के प्रभाव और भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का वादा किया था उससे काफ़ी ज़्यादा उम्मीदें थीं।

लेकिन इसके कम होने की तो बात ही दूर है, और ज़्यादा मामले बढ़ते रहे हैं। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में चुनाव के बाद संसद के निचले सदन के नए सदस्यों में से लगभग 43% ने आपराधिक आरोपों का सामना करने के बावजूद जीत हासिल की। यह उनके द्वारा दायर चुनावी हलफ़नामे में ही कहा गया है। रिपोर्ट के अनुसार, उनमें से एक चौथाई से अधिक बलात्कार, हत्या या हत्या के प्रयास से संबंधित हैं।

एडीआर की ही एक रिपोर्ट के अनुसार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई. क़ुरैशी ने कहा था कि 2004 के राष्ट्रीय चुनाव में लंबित आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों का प्रतिशत 24 प्रतिशत था, जो 2009 में बढ़कर 33 प्रतिशत, 2014 में 34 प्रतिशत था जो 2019 में और ज़्यादा बढ़कर 43 प्रतिशत हो गया।

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क़मर वहीद नक़वी

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