सेना में सबसे उँचे पद यानी सेना की कमान महिलाओं के हाथ देने के ख़िलाफ़ सरकार जो तर्क देती रही है उसे सुप्रीम कोर्ट ने एक झटके में खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि पुरुष अफ़सर की तरह ही महिला अफ़सर सेना की कमान संभाल सकती है। यानी सीधे-सीधे कहें तो महिला अफ़सर अब कर्नल रैंक से ऊँचे पदों पर अपनी योग्यता के दम पर जा सकती हैं। इस फ़ैसले को तीन महीने के अंदर लागू करना होगा। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सरकार का तर्क भेदभावपूर्ण, रूढ़ीवादी और परेशान करने वाला है और केंद्र सरकार को अपने नज़रिए और मानसिकता में बदलाव लाना चाहिए। साफ़ शब्दों में कहें तो सुप्रीम कोर्ट ने इस फ़ैसले के साथ सरकार के दकियानूसी तर्कों को ध्वस्त कर दिया है।
बता दें कि कर्नल रैंक तक के अफ़सरों के पास भी काफ़ी अधिकारी होते हैं और उसे स्वतंत्र काम करने का अधिकार दिया जाता है। कर्नल एक बटालियन का नेतृत्व करता है जिसमें क़रीब साढ़े आठ सौ जवान होते हैं। इस रैंक पर सफल महिला अफ़सर अब सेना में सबसे ऊँचे पद पर जा सकती है। हालाँकि, फ़िलहाल के लिए महिला अफ़सरों को इन्फ़ैंट्री, आर्टिलरी और बख़्तरबंद कोर जैसे कॉम्बैट आर्म्स में नहीं लगाया जाएगा। यानी साफ़ शब्दों में कहें तो कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद भी युद्ध क्षेत्र में महिला अधिकारियों को तैनाती नहीं मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला सरकार की ही याचिका पर आया है। महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के 2010 के दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2010 में शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत सेना में आने वाली महिलाओं को सेवा में 14 साल पूरे करने पर पुरुषों की तरह स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था।
तब सरकार के इस तर्क को चुनौती दी गई थी कि महिलाओं की शारीरिक क्षमता और मनोवैज्ञानिक वास्तविकता के अनुसार रैंक दिया जाना चाहिए।
अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे खारिज किया जाना चाहिए क्योंकि यह इसी काबिल है। इसने कहा कि महिलाएँ हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं, ऐसे में केंद्र सरकार का यह विचार लिंग के आधार पर भेदभाव करने वाला है और रूढ़ीवादी है। इसने कहा कि सेना की महिला अफ़सरों ने देश को गौरवान्वित किया है।
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