सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से कहा है कि वह बलात्कार के मामले में रूढ़िवादी और घिसी-पिटी टिप्पणियों से बचें। अदालत ने इसके साथ ही उस फ़ैसले को रद्द कर दिया है जिसमें यौन उत्पीड़न के शिकार से कहा गया था कि वह अभियुक्त को राखी बाँध दे और इस शर्त पर ज़मानत की याचिका को स्वीकार कर लिया था।
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा पीड़िता को राखी बाँधने की शर्त के साथ यौन उत्पीड़न के अभियुक्त को ज़मानत देने के मामले में अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल से मदद माँगी थी।
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"ज़मानत और दूसरी शर्तों में इस तरह की रूढ़िवादी टिप्पणियों से बचना चाहिए जिससे पुरुषवादी सोच और समाज में महिलाओं की स्थिति झलकती हो। दूसरे शब्दों में मुक़दमा करने वाली की पोशाक, व्यवहार और अतीत के बर्ताव व नैतिकता के आधार पर ज़मानत पर फ़ैसला नहीं दिया जाना चाहिए।"
सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का अंश
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ज़मानत की शर्तों में अभियुक्त और पीड़िता के बीच संपर्क कायम करने का आदेश नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि लिंग- आधारित मामलों में ज़मानत में ऐसा फ़ैसला नहीं देना चाहिए जिससे पीड़िता और अभियक्त के बीच किसी तरह का समझौता करने की बात कही जाती हो।
लेकिन इस पर विवाद तब गहराया जब 9 महिला वकीलों ने ज़मानत की शर्त को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इन महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि ऐसे आदेश महिलाओं को एक वस्तु की तरह पेश करते हैं।
क्या है मामला?
इसकी शुरुआत अप्रैल 2020 में हुई थी, जब पड़ोस में रहने वाली महिला के घर में घुसकर छेड़छाड़ करने के आरोप में जेल में बंद विक्रम बागरी ने इंदौर में ज़मानत याचिका दाखिल की थी।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने छेड़छाड़ के एक अभियुक्त को 30 जुलाई को इस शर्त पर ज़मानत दी थी कि वह रक्षाबंधन पर पीड़ित के घर जाकर उससे राखी बँधवाएगा और रक्षा का वचन देगा। जस्टिस रोहित आर्या ने 50 हजार के मुचलके के साथ ज़मानत दे दी थी।
हाईकोर्ट ने कहा था कि अभियुक्त 3 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन अपनी पत्नी के साथ पीड़िता के घर राखी और मिठाई लेकर जाए और उससे राखी बाँधन के आग्रह करे। इसके साथ ही वह पीड़िता की रक्षा का वचन दे, उसे भाई के रूप में 11 हज़ार रुपए, उसके बेटे को 5 हज़ार रुपए, कपड़े और मिठाई दे।
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