जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने के बाद राज्य की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र ने एक बार फिर चिंता जताई है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (यूएनचसीआर) ने भारत से कहा है कि वह जम्मू-कश्मीर की जनता के तमाम अधिकार बहाल करे।
यूएनएचसीआर ने एक बयान जारी कर कहा है, 'हम इस पर बहुत चिंतित हैं कि भारत-प्रशासित कश्मीर के लोग अभी भी ज़्यादातर मानवाधिकारों से वंचित हैं। हम भारत के अधिकारियों से यह अपील करते हैं कि वे इस स्थिति को ठीक करें और जो हक़ अभी नहीं दिए जा रहे हैं, उन्हें तुरन्त बहाल करें।'
संयुक्त राष्ट्र के इस अंग ने यह माना है कि स्थिति पहले से थोड़ी सुधरी है, कुछ पाबंदियाँ हटाई गई है, पर उनका असर अभी भी मानवाधिकारों पर बहुत ज़्यादा पड़ रहा है।
यूएनएचसीआर ने यह भी कहा कि हालाँकि 5 अगस्त को लगाया गया कर्फ़्यू जम्मू और लद्दाख से हटा लिया गया है, पर कश्मीर घाटी में ज़्यादातर जगहों पर यह अभी भी लगी हुई है।
मानवाधिकार से जुड़े संयुक्त राष्ट्र के इस संगठन ने कहा, 'पेलेट गन, आँसू गैस, रबर बुलेट जैसे अत्यधिक बल प्रयोग के कई आरोप लगते रहे हैं। अपुष्ट ख़बर है कि 5 अगस्त से राज्य के अलग-अलग जगहों पर हुई वारदात में कम से कम 6 नागरिक मारे गए हैं।'
यूएनएचसीआर ने यंत्रणा देने के आरोप भी लगाए हैं और इसकी जाँच कराने को कहा है। इसने बयान में कहा है :
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हमें ये शिकायतें भी मिली हैं कि हिरासत में लोगों को यंत्रणा दी गई है और उनके साथ बुरा व्यवहार किया गया है। इन तमाम शिकायतों की निष्पक्ष और स्वतंत्र जाँच की जानी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत यंत्रणा पूरी तरह और स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित है।
यह अजीब स्थिति है कि यूएनएचसीआर ने यह बयान ठीक उसी दिन जारी किया है, जिस दिन यूरोपीय संसद के 23 सदस्यों का एक जत्था कश्मीर गया हुआ है। इस पर काफी तीखी प्रतिक्रिया हो रही है और इसकी काफ़ी आलोचना की जा रही है।
यदि इन सांसदों ने भारत की तारीफ कर भी दी और कश्मीर की स्थिति को बेहतर बता भी दिया तो उसकी कोई साख नहीं बचेगी। इसका एक कारण यह भी है कि उसी समय मानवाधिकार मामलों की संयुक्त राष्ट्र संस्था भारत की आलोचना कर रही है और कश्मीर की स्थिति पर चिंता जता रही है।
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