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सेना के सियासी इस्तेमाल पर राष्ट्रपति को लिखी कथित चिट्ठी पर विवाद

क्या सेना का सियासी इस्तेमाल होना चाहिए? क्या सेना की बहादुरी के नाम पर चुनाव में वोट माँगना चाहिए? क्या देश के प्रधानमंत्री को बालाकोट में हुए सर्जिकल स्ट्राइक का हवाला  देकर नए वोटरों से वोट देने की अपील करनी चाहिए? क्या सेना की तस्वीरों के साथ पार्टी नेताओं के पोस्टर-बैनर चुनाव के दौरान लगाने चाहिए? क्या चुनाव के लिए सेना का सियासी इस्तेमाल देश के लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक है और जो लोग ऐसा कर रहे हैं क्या वे देश के संविधान और लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ नहीं कर रहे हैं?
ये वे सवाल हैं जो 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बहुत मजबूती के साथ पूछे जा रहे हैं, क्योंकि बीजेपी और मोदी सरकार पुलवामा हमले के बाद हुए बालाकोट की सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय लेने में जुटी है और प्रधानमंत्री मोदी उनके नाम पर वोट माँगने की कोशिश कर रहे हैं। इस संदर्भ में 11 अप्रैल 2019 को सेना, नौसेना और वायु सेना के रिटायर हो चुके 150 वरिष्ठ अफ़सरों के नाम से एक चिट्ठी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेजे जाने की ख़बर सामने आई है। इस ख़बर में सेना के राजनीतिकरण पर चिंता जताई गई है और राष्ट्रपति से हस्तक्षेप करने की गुज़ारिश की गई है। लेकिन अगले ही दिन एक नया विवाद शुरू हो गया जब चिट्ठी लिखने वालों में कुछ अफ़सरों ने कहा कि न तो उन्होंने चिट्ठी पर हस्ताक्षर किए हैं और न ही उनकी राय ली गई है। ऐसा कहने वालों में पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल जे. एफ़ रॉड्रिग्स और पूर्व वायु सेना प्रमुख एन. सी, सूरी हैं। 
रॉड्रिग्स ने कहा है कि उन्हें नहीं पता कि इस चिट्ठी में क्या है। उन्होंने यह भी कहा कि वह 42 साल की अपनी सेवा के दौरान पूरी तरह अराजनीतिक रहे और ऐसा ही बना रहना चाहते हैं। उन्होंने चिट्ठी को फ़ेक न्यूज़ करार दिया।

सेना के पूर्व उप प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल एम. एल. नायडू ने कहा है कि न तो उन्होने इस तरह का कोई ख़त लिखा है और न ही खत लिखे जाने से पहले उनकी सहमति ली गई थी। 
राष्ट्रपति भवन के सूत्रों ने कहा है कि इस तरह की कोई चिट्ठी नहीं  मिली है। 
सरकार की ओर इस पर प्रतिक्रिया जताते हुए रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि ऐसी कोई चिट्ठी नहीं लिखी गई है और यह पूर मामला ही फ़र्जी है। 
दूसरी ओर, मेजरल जनरल हर्ष कक्कड़ ने कहा है कि चिट्ठी लिखे जाने से पहले उनकी सहमित ली गई थी और उस ख़त के मजमून को समझ कर इस पर अपनी सहमति दी थी। 

क्या है इस कथित चिट्ठी में?

इन रिटायर्ड सैनिकों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखी चिट्ठी में कहा है कि ‘चुनाव प्रचार के दौरान सेना के इस तरह के राजनीतिक इस्तेमाल से मौजूदा और रिटायर्ड हो चुके सैनिकों में काफ़ी बेचैनी है।’ ख़त में कहा गया है कि ‘यह असामान्य और किसी सूरत में स्वीकार नहीं किए जाने लायक राजनीतिक कोशिश है। कुछ राजनेता सीमा पार हमले जैसी सैन्य कार्रवाइयों का श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं।’
चिट्ठी में कहा गया है कि ‘चुनाव मंच पर और चुनाव प्रचार में पार्टी कार्यकर्ता सेना की वर्दी पहने नज़र आते हैं। सैनिकों और ख़ास कर विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान की तस्वीरें मंच पर लगी होती हैं या चुनाव प्रचार सामग्री में इसका इस्तेमाल होता है।’
इस चिट्ठी में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान का भी ज़िक्र है, जिसमें उन्होंने भारतीय सेना को ‘मोदी की सेना’ बताया था।

इन अफ़सरों ने राष्ट्रपति से अपील की है कि वह तुरन्त आदेश जारी कर सभी राजनीतिक दलों से कहें कि वे सेना, सैनिक, प्रतीक और उसकी कार्रवाइयों का राजनीतिक इस्तेमाल रोकें और इस तरह के काम से बाज आएँ।

इस पर हस्ताक्षर करने वालों में रिटायर हो चुके जनरल शंकर राय चौधरी, जनरल दीपक कपूर, नौसेना प्रमुख एडमिरल लक्ष्मी नारायण रामदास, एडमिरल अरुण प्रकाश, एडमिरल सुरेश मेहता भी शामिल हैं।

एडमिरल रामदास की चिट्ठी

इसके पहले रिटायर्ड एडमिरल एल रामदास ने 20 फ़रवरी को राष्ट्रपति कोविंद को चिट्ठी लिख कर कहा था कि पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद कश्मीरियों के ख़िलाफ़ एक तरह का मीडिया युद्ध चल रहा है, जिसे तुरन्त रोका जाना चाहिए और कश्मीरियों पर हमले रुकने चाहिए। उन्होंने इसके साथ ही पुलवामा में सीआरपीएफ़ काफ़िले पर हुए आतंकवादी हमले पर चिंता जताते हुए सवाल उठाया था कि एक गाड़ी इस तरह काफ़िले में कैसे घुस सकती है और आतंकवादी तक किस तरह भारी मात्रा में विस्फोटक पहुँच गया।

veterans letter to president on politicization of Indian Army - Satya Hindi

मोदी की सेना?

इसके पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ग़ाज़ियाबाद में एक रैली में कहा था, ‘कांग्रेस के लोग आतंकवादियों को बिरयानी खिलाते थे और मोदी की सेना उन्हें गोली और गोला देती है।’ इसके बाद चुनाव आयोग में आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ चुनाव आयोग से शिकायत की गई। चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को फटकार भी लगाई थी।

पर इससे बीजेपी और उसके रणनीतिकारों को कोई असर नहीं पड़ा। इसके बाद रामपुर में बीजेपी उम्मीवार जयाप्रदा के लिए चुनाव प्रचार करते हुए पार्टी के बड़े नेता अब्बास मुख़्तार नक़वी ने भी ‘मोदी की सेना’ कह दिया।

पुलवामा हमले के एक हफ़्ते बाद ही राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी की एक चुनाव रैली को संबोधित किया था। उस रैली में मंच पर शहीद हुए सीआरपीएफ़ जवानों की तस्वीरें लगाई गई थीं। उस रैली में मोदी ने पुलवामा हमले का ज़िक्र करते हुए दावा किया था कि देश सुरक्षित हाथों में है।

veterans letter to president on politicization of Indian Army - Satya Hindi
पहले चरण के चुनाव से एक दिन पहले प्रधानमंत्री ने एक रैली को संबोधित करते हुए पहली बार वोट डालने वालों से कहा कि वे पुलवामा हमले में शहीद होने वाले सैनिकों के लिए वोट करें, बालाकोट हमले को अंजाम देने वाले सैनिकों के लिए वोट करें।

रणनीति का हिस्सा?

ऐसा नहीं है कि बीजेपी के लोग कभी कभार सेना का नाम लेते हैं या उसकी बहादुरी पर गौरव महसूस करते हैं। सच तो यह है कि बीजेपी ने जानबूझ कर चुनाव में सेना का इस्तेमाल करने की रणनीति अपना रखी है। इसके दो कारण हैं। एक तो यह है कि इसी बहाने उग्र राष्ट्रवाद का नैरेटिव मजबूत होता है, जिस पर बीजेपी पहले से ही काम करती  आई है। उसने इसे 2014 में भी मुद्दा बनाया था। नरेंद्र मोदी ने उस दौरान सीमा पार से होने वाली घुसपैठ पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार को घेरा था तो सुषमा स्वराज ने ‘एक भारतीय सैनिक के बदले दस पाकिस्तान सैनिकों के सिर काट लाने’ की बात कही थी। बीजेपी रणनीति का दूसरा हिस्सा यह है कि राष्ट्रवाद की बहस खड़ी होने से बीते पाँच साल के दौरान उसके कामकाज की समीक्षा नहीं होगी। 
सत्तारूढ़ दल की रणनीति है कि चुनावी बहस को सरकार के कामकाज से भटका दिया जाए ताकि लोगों का ध्यान ही उस ओर नहीं जाए और उससे सवाल नहीं पूछे जाएँ। उल्टे राष्ट्रवाद के नाम पर मोदी ही विपक्ष से सवाल पूछ रहे हैं और उन्हें रक्षात्मक रवैया अपनाने पर मजबूर कर रहे हैं।
राष्ट्रवाद के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की रणनीति से बीजेपी को क्या फ़ायदा होगा, यह तो बात में पता चलेगा, पर इसने एक नया विवाद ज़रूर खड़ा कर दिया है। सेना के इस तरह के सियासी इस्तेमाल का दूरगामी असर हो सकता है, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है। 
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क़मर वहीद नक़वी

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