loader

क्या जैश वाक़ई चाहता है कि बीजेपी फिर सत्ता में आए?

ममता बनर्जी ने हाल ही में आश्चर्य जताया कि आख़िर चुनाव से पहले ही पुलवामा हमला क्यों हुआ? मुझे नहीं मालूम कि वह क्या कहना चाह रही थीं, लेकिन मेरी समझ से उनका इशारा साफ़ था कि यह आतंकवादी हमला अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जिताने के लिए किया गया है।

क्या ममता बनर्जी का दिगाग़ ख़राब हो गया है? क्या कोई सपने में भी सोच सकता है कि कश्मीर को भारत से अलग करने की ख़्वाहिश रखने वाले और उसके लिए आतंक का सहारा लेने वाले सीमापार के संगठन ऐसा कोई भी काम कर सकते हैं जिससे बीजेपी को दुबारा सत्ता में आने का मौक़ा मिले? उस बीजेपी को जिसे घाटी के लोग अपना आज दुश्मन नंबर वन मानते हैं?
ममता बनर्जी का आरोप पहली नज़र में ही बेबुनियाद लगता है। वह शायद उस पुलिसिया ढंग से चीज़ों को देख रही हैं जिसके अनुसार किसी वारदात की शुरुआती जाँच में सबसे पहले उसपर शक किया जाता है जिसको उससे सबसे ज़्यादा फ़ायदा होता हो।

क्या चुनाव में मिलेगा फ़ायदा!

अगर पुलवामा में हुए हमले को हम पुलिसिया दृष्टि से देखें तो सबसे ज़्यादा फ़ायदा बीजेपी को ही होता नज़र आता है जो हमले के बाद अंधराष्ट्रवादी युद्धोन्माद भड़काने में कामयाब हुई है। इस उन्माद का उसे लोकसभा चुनावों में कितना लाभ मिलेगा, अभी से यह कहना मुश्किल है लेकिन हो सकता है, इससे वह बहुमत के थोड़ा और क़रीब आ जाए।

बीजेपी को कैसे ठहराएँ दोषी?

ठीक है। मान लेते हैं कि पुलवामा से बीजेपी को कम या ज़्यादा चुनावी लाभ हो सकता है। लेकिन इसके लिए बीजेपी को दोषी कैसे ठहराया जा सकता है? फ़ुटबॉल में कई बार खिलाड़ी सेल्फ़ गोल कर देते हैं। क्रिकेट मैच में भी कई बार बैट्समैन किसी ख़राब गेंद पर कैच दे देता है। मगर क्या हम यह कह सकते हैं कि उस फ़ुटबॉलर ने जानबूझकर अपनी ही टीम के ख़िलाफ़ गोल किया है या बैट्समैन ने जानबूझकर अपना विकेट गँवाया है? ऐसा सोचना बहुत दूर की कौड़ी होगी, उतनी ही दूर की कौड़ी जितना यह कहना कि जैश ने पुलवामा में धमाका करके बीजेपी के पक्ष में हवा बनवाने की साज़िश की है। 

जैश, पाक सेना को क्या लाभ होगा?

वैसे भी यह सवाल अपनी जगह मज़बूती से खड़ा है कि आख़िर जैश बीजेपी को सत्ता में दुबारा क्यों लाना चाहेगा! इसमें उसका क्या स्वार्थ है? पुलिसिया तरीक़े से ही सवाल करें तो माना कि पुलवामा धमाके से बीजेपी को चुनावी लाभ हो सकता है लेकिन उसको लाभ दिलाने से जैश को क्या लाभ हो सकता है? पाकिस्तानी सेना को क्या लाभ हो सकता है? अब हम आए हैं सही सवाल पर। पुलिस जब जाँच करती है तो हर बिंदु से तफ़तीश करती है। हम भी आगे यही जाँचेंगे कि क्या बीजेपी के सत्ता में आने से जैश या उसके जैसे और संगठनों को कोई लाभ हो सकता है? यदि हाँ तो क्या और कैसे?

  • आगे बढ़ने से पहले हमें यह समझना होगा कि पाकिस्तानी सेना और उसकी छत्रछाया में काम कर रहे आतंकवादी नेताओं का कश्मीर के संदर्भ में तात्कालिक और अंतिम मक़सद क्या है। तात्कालिक यह कि कश्मीरियों में अलगाववाद की ऐसी आग भड़काई जाए कि वे बग़ावत पर उतर आएँ और एक दिन वह स्थिति आ जाए कि भारत उसपर क़ाबू न कर सके और कश्मीर भारत से अलग होकर पाकिस्तान से मिल जाए। यह उनका अंतिम मक़सद है।

कश्मीर से ही आतंकी बनाने की कोशिश

पाक सेना और आतंकी नेता जानते हैं कि भारत से युद्ध लड़कर कश्मीर को अलग नहीं करवाया जा सकता। 1947, 1965 और 1971 के तीन युद्ध लड़ने के बाद उसे यह समझ में आ गया है। इसीलिए वे कोशिश कर रहे हैं कि कश्मीर की सरज़मीं में ही लड़ाकों की ऐसी फ़ौज पैदा की जाए जो भारतीय सुरक्षा बलों से मुक़ाबला करे। 

  • पाकिस्तानी सेना और आतंकी संगठनों के नेता चाहते हैं कि इस लड़ाई में मारा गया एक-एक लड़ाका अपने ख़ून से दस और लड़ाकों को जन्म दे; वे चाहते हैं कि इस हिंसा-प्रतिहिंसा से कश्मीरियों के मन में भारत और भारतीय सरकार के ख़िलाफ़ इतनी नफ़रत पैदा हो जाए कि भारत और भारत सरकार का नाम सुनकर उनका ख़ून खौल उठे।
यह सब कैसे होगा? किसके राज में संभव है यह? यदि दिल्ली में कोई ऐसी सरकार हो जो कश्मीरियों के साथ मेल-मिलाप और सौहार्द्र के साथ पेश आए तो ऐसा कभी नहीं होगा। यह तभी होगा जब दिल्ली में ऐसी सरकार हो जो संविधान द्वारा कश्मीर को दी गई हर विशेष सुविधा को ख़त्म करने का प्रयास करे, जो अनुच्छेद 370 को समाप्त करना अपना कर्तव्य समझे, जो कश्मीर को किसी भी तरह की स्वायत्तता देने का विरोध करे, जो कश्मीरियों और उनके नेताओं के साथ बातचीत करना नीतिगत कमज़ोरी समझे, जो मानती हो कि बंदूक के बल पर किसी क़ौम को हमेशा के लिए दबाया जा सकता है, जो बच्चों और बच्चियों के पथराव का जवाब गोलियों से देने की सैन्य नीति पर अमल करे। जब तक दिल्ली में ऐसी सरकार होगी, तब तक कश्मीर में अशांति रहेगी, वहाँ ग़ुस्से और हिंसा की आग धधकती रहेगी और उस आग से नए-नए आदिल (पुलवामा घटना का हमलावर) पैदा होते रहेंगे। जैश और अन्य आतंकी नेता यही तो चाहते हैं। पाक सेना भी यही चाहती है। इन दोनों को जलते हुए कश्मीर की लपटों में वह रोशनी दिखाई देती है जो एक-न-एक दिन कश्मीर के पाकिस्तान में विलय की राह को आलोकित करेगी।

कश्मीर नीति की हुई हार 

जलते हुए कश्मीर की रोशनी से बीजेपी का आँगन भी रोशन होता है, लेकिन इसकी आँच से वह हरगिज़ ख़ुश नहीं हो सकती। जलता हुआ कश्मीर दरअसल बीजेपी की कश्मीर नीति की हार है। कोई भी पिता अपनी अवज्ञाकारी संतान को छड़ी से पीटने के बाद उसकी आँखों में क्षमायाचना और फ़र्माबरदारी देखना चाहता है। वह उसकी आँखों से निकलने वाली चिनगारियों से कभी ख़ुश नहीं हो सकता।

आख़िर क्या करे बीजेपी?

लेकिन बीजेपी करे भी तो क्या करे? प्रधानमंत्री मोदी कितना भी कह दें कि हमारी लड़ाई कश्मीर और कश्मीरियों से नहीं है, लेकिन बीजेपी कश्मीरियों का विश्वास नहीं जीत सकती। इसके दो कारण हैं - एक, वह अपनी उस कश्मीर नीति का परित्याग नहीं कर सकती जो जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की असाधारण परिस्थितियों को सिरे से नकारती है और जिसमें कश्मीर और कश्मीरियों को किसी भी तरह के विशेष दर्ज़े या अधिकार के लिए कोई भी जगह नहीं है। दो, बीजेपी जिस हिंदूवाद-केंद्रित अंधराष्ट्रवादी विचारधारा के सहारे आज यहाँ तक पहुँची है, और जो उसका जीवन-तत्व भी है, उससे वह कभी मुक्त हो भी नहीं सकती। इन दोनों कारणों से कश्मीरी मुसलमान कभी भी बीजेपी का भरोसा नहीं कर सकते, न ही कर सकेंगे।

  • नतीजा यह कि बीजेपी दिल्ली की सत्ता में रहते हुए अपनी पिटाई की नीति जारी रखे हुए है और कश्मीरी इस पिटाई का जवाब ढिठाई से दे रहे हैं। एक दुश्चक्र-सा बनता दिखाई दे रहा है - ढिठाई, पिटाई, और-ढिठाई, और-पिटाई, और-और-ढिठाई, और-और-पिटाई…।
अब फिर से मूल सवाल पर आते हैं। इस ढिठाई-पिटाई के अंतहीन दौर से किसका फ़ायदा है? कश्मीर की देह पर पड़ रही छड़ी की हर मार और वहाँ से निकल रही हर चीख से किसका फ़ायदा है? जैश का ही तो है जिसका मानना है कि इस मार से लोगों में ग़ुस्सा और भड़केगा…और बीजेपी का भी, कि कुछ लोग तालियाँ पीटेंगे और कहेंगे - बहुत बढ़िया! और पीटो! सालों की हड्डियाँ तोड़ दो…।

लेकिन कश्मीर के जलने से और वहाँ से उठने वाली चीखों से भारत और भारतीयों का क्या फ़ायदा है? तपते हुए माथे पर ठंडे पानी की पट्टी लगाने के बजाय हथौड़े बरसाने से भारत माता का क्या फ़ायदा है?

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
नीरेंद्र नागर

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें