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क्या मेघालय के राज्यपाल को कश्मीरियों पर ट्वीट की वजह से हटना पड़ेगा?

कश्मीरियोंं के बॉयकॉट से जुड़े सुूप्रीम कोर्ट के ताज़ा आदेश के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या मेघालय के राज्यपाल तथागत राय को उनके पद से हटा दिया जाएगा या हटाने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो जाएगी? क्या राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द उन्हें इस्तीफ़ा देने को कहेंगे या बर्ख़ास्त कर देंगे और ऐसा नहीं हुआ तो मेघालय विधानसभा राज्यपाल के ख़िलाफ़ महाभियोग की प्रक्रिया शुरु कर देगा? पुलवामा हमले के बाद कश्मीरियों के बॉयकॉट का समर्थन करने से जुड़े उनके ट्वीट और शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ये सवाल उठना लाज़िमी हैं। 
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने आदेश में केंद्र सरकार और 10 राज्य सरकारों से कहा कि वे कश्मीरियों पर हमले, उनकी प्रताड़ना या उनका सामाजिक बहिष्कार की वारदात रोकें और इसके लिए ज़रूरी कदम उठाएँ। इसके साथ ही मुख्य सचिवों, पुलिस प्रमुखों और दिल्ली के पुलिस कमिश्ननर को आदेश दिया गया है कि वे इस तरह के काम करने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करें।  
पहले हम आपको बताएँ की मेघालय के राज्यपाल का इससे क्या सम्बन्ध है। राज्यपाल तथागत राय ने पुलवामा के आतंकवादी हमले के बाद ट्वीट कर कहा कि वे कश्मीर और उससे जुड़ी तमाम चीजों के बॉयकॉट का समर्थन करते हैं। पुलवामा हमले के बाद देश के कई हिस्सों में अलग-अलग जगहों पर कश्मीरियों पर हमले हुए, उन्हें परेशान किया गया। कई कश्मीरी छात्र अपने राज्य लौटने को मजबूर हो गए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील ने अदालत में याचिका दायर कर कश्मीरियों की सुरक्षा की गुहार लगाई। उन्होंने अपनी याचिका में मेघालय के राज्यपाल के इस ट्वीट का ज़िक्र भी किया था। 
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के मद्देनज़र तथागत राय के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिए, इसमें उन्हें गिरफ़्तार करने की कार्रवाई भी शामिल है। पर वे एक राज्य के राज्यपाल हैं। संविधान की धारा 360 के मुताबिक़, राज्यपाल के ख़िलाफ़ किसी तरह का आपराधिक या सिविलियन मुक़दमा उनके पद पर रहते हुए नहीं चलाया जा सकता। इसे समझने के लिए ताज़ा उदाहरण शीला दीक्षित का है। दीक्षित पर आरोप लगा कि उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए 22.56 करोड़ रुपए का घपला किया। उनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज भी हुआ। लेकिन जब यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट में पहुँचा उस समय तक वह केरल की राज्यपाल बन चुकी थीं।
संविधान की धारा 361(2) में यह कहा गया ह कि 'राष्ट्रपति और राज्यपाल के ख़िलाफ़ उनके पद पर रहते हुए किसी भी सूरत में किसी तरह का मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता है।'
संविधान के जानकारों का कहना है कि यदि राज्यपाल ने कोई आपराधिक काम भी किया है तो पहले महाभियोग लगा कर उसे पद से हटाया जाए। एक बार पद से हट जाने के बाद राज्यपाल को मिलने वाली यह 'इम्यूनिटी' उसे नहीं मिलेगी, उसके बाद उस पर मुक़दमा चलाया जा सकता है। 
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के पहले ही भारतीय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने माँग की थी कि राय को पद से हटा दिया जाए। सीपीएम के पोलित ब्यूरो ने एक बयान कर राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द से अपील की थी कि मेघालय के राज्यपाल को बर्ख़ास्त कर दिया जाए। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस पर प्रतिक्रिया जताते हुए तथागत राय को 'कट्टर' व्यक्ति क़रार दिया था। राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने सीधे सपाट शब्दों में कहा कि भारत सरकार को चाहिए कि वह तथागत राय को बर्ख़ास्त कर दे। उन्होंने यह भी कहा कि यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो समझा जाएगा कि राय को सरकार का परोक्ष समर्थन हासिल है और वह चुनाव के पहले वोटों का ध्रुवीकरण करने में राज्यपाल का इस्तेमाल कर रही है। 
यह पहला मौका नहीं कि तथागत राय ने मेघालय के राज्यपाल जैसे गरिमामय संवैधानिक पद पर रहते हुए इस तरह के विवादस्पद बयान दिए हैं। मार्च 2018 में त्रिपुरा में वाम मोर्चा के विधानसभा चुनाव हार जाने और वहाँ बीजेपी के सत्ता पर काबिज होने के बाद लेनिन की मूर्ति तोड़ दी गई। राय ने राज्य के राज्यपाल पद पर रहते हुए इसका समर्थन ही नही किया, जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बयान से जोड़ कर ट्वीट कर दिया कि हिन्दू-मुसलमान समस्या का समाधान गृहयुद्ध से ही निकल सकता है। उन्होंने अमेरिका में हुए गृहयुद्ध से इसकी तुलना कर दी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन से भी जोड़ दिया।  
पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेता तथागत राय के पहले त्रिपुरा और उसके बाद मेघालय के राज्पाल बनने के बाद के कुछ अहम विवादस्प ट्वीट: 
  • दुबई में रहने वाले किसी अरुण नांबियार के ट्वीट के जवाब में महामहिम ने ट्वीट किया : आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैं धर्मनरिपेक्ष हूँ? मैं हिन्दू हूँ, हालाँकि मेरा देश 1976 से धर्मनिरपेक्ष है। 
  • उन्होंने 17 दिसंबर, 2014 को ट्वीट किया, 'अलग-अलग धर्मों के समाज और धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि हिन्दुओं का जबरदस्त बहुमत हो। लेकिन पश्चिम बंगाल इस मामले में फिसल रहा है।'
  • राय ने 23 मार्च 2015 को हिन्दुओं के स्वभाव पर टिप्पणी करते हुए ट्वीट किया, 'हिन्दुओं का स्वभाव लड़ाई से भागने का है। गुजरात 2002 एक अपवाद है और मुझे खुशी है कि लोगों ने इसकी तारीफ की।' 
  • तथागत राय ने 23 अप्रैल 2015 को ट्वीट कर कहा : बांग्लादेश के ग़ाजीपुर में हिन्दुओं पर हमला हुआ, भारत के पश्चिम बंगाल स्थित मल्लिकपुर में हिन्दुओं पर हमला हुआ। हम हिन्दू अब किस बात का इंतजार कर रहे हैं?
  • राज्यपाल ने बीते साल कहा, 'लव जिहाद के मुद्दे को सामने लाने के लिए उत्तर प्रदेश बीजेपी को बधाई! पश्चिम बंगाल में भी हमे हिन्दू लड़कियों को बचाने के लिए कुछ करना ही चाहिए।'
  • राय ने 26 नवंबर, 2018 को कहा कि पाकिस्तान के समर्थन से हुए मुंबई हमले में सिर्फ़ निर्दोष हिन्दुओं को मारा गया। उनके कहने का मतलब था कि आतंकवादियों ने मुसलमानोें को बख्श दिया। इस पर विवाद होने पर उन्होंने यह कह कर ट्वीट हटा दिया कि उन्हें ग़लत जानकारी दी गई थी। 
  • एक राज्यपाल के पद पर रहते हुए उन्होंने बीते दिनों नागरिकता विधेयक पर जम कर बीजेपी का समर्थन किया और एक के बाद एक कई ट्वीट कर यह बताने की कोशिश की कि बाहर से आने वाले लोग शरणार्थी नहीं, घुसपैठिए थे। 
केंद्र की सरकार अपने लोगों को राज्यपाल बनाती है, यह आरोप इंदिरा गाँधी के ज़माने से ही लगता रहा है। राज्यपाल के पद का दुरुपयोग कर राज्य सरकार को अस्थिर करने का आरोप भी नया नहीं है। इसका ताज़ा उदाहरण जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने पेश किया। पर कट्टर पार्टी कार्यकर्ता भी एक बार राज्यपाल बन जाने के बाद अमूमन संयम बरतते हैं। 
लेकिन मेघालय के राज्यपाल महोदय इसका अपवाद है। वह जिस तरह खुले आम दो समुदायों के बीच वैमनस्य बढ़ाने वाली टिप्पणियाँ करते हैं और हर मुद्दे को हिन्दू-मुसलिम विवाद से जोड़ कर सांप्रदायिकता से लबरेज टिप्पणियाँ करते रहते हैं, इससे यह सवाल उठता है कि आख़िर ऐसा आदमी इस गरिमामय संवैधानिक पद पर क्यों है और कब तक रहेगा? हालाँकि कश्मीरियों से जुड़ी उनकी टिप्पणी के बाद केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने यह कहा कि ये राय के निजी विचार हैं और पार्टी को इससे कोई मतलब नहीं है, पर इससे यह सवाल तो उठता ही है कि क्या राय मेघालय के राज्यपाल पद से हटाए जाएँगे? 
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क़मर वहीद नक़वी

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