खाने-पीने की चीजें काफ़ी महँगी हो गई हैं। 71 महीने में सबसे ज़्यादा। महँगाई को नियंत्रण में रखने का दंभ भरने वाली बीजेपी सरकार के लिए यह बड़ी चुनौती है। जब सामान इतने महँगे हो जाएँ कि लोगों की जेबें खाली होने लगे तो सरकारों के सामने चिंताएँ मँडराने लगती हैं। फ़िलहाल जिस तरह के आर्थिक हालात हैं उसमें महँगाई का बढ़ना मोदी सरकार के लिए एक तरह से संकट से कम नहीं है।
खाने-पीने की चीजें महँगी होने की यह रिपोर्ट ख़ुद सरकार ने ही जारी की है। यह रिपोर्ट है महँगाई को मापने वाले थोक मूल्य सूचकांक की। खाने-पीने की चीजों में यह सूचकांक नवंबर में 11.1 प्रतिशत बढ़ गया है। यह पिछले 71 महीने के उच्चतम स्तर पर है। इसका साफ़ मतलब यह है कि थोक भाव में बिकने वाली खाने-पीने की चीजों की क़ीमतों में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है। यह पिछले महीने से काफ़ी ज़्यादा है। अक्टूबर में यह सूचकांक 9.8 प्रतिशत पर था। पिछले हफ़्ते ही ख़ुदरा में भी खाने-पीने की चीजों की महँगी होने की रिपोर्ट आई थी जो 10.01 फ़ीसदी बढ़ गई है।
बता दें कि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया यानी आरबीआई ने खुदरा महँगाई की दर 4 फ़ीसदी तक नियंत्रित रखने का लक्ष्य तय कर रखा है। लेकिन यह दर अक्टूबर महीने में इस तय सीमा को पार कर गई थी। नवंबर महीने में तो यह लक्ष्य से काफ़ी ज़्यादा हो गई है। यह रिज़र्व बैंक के लिए चिंता का विषय तो है ही सरकार के लिए भी चिंता का विषय है।
कई ऐसी रिपोर्टें आई हैं जिसमें कहा गया है कि लोगों के पास सामान ख़रीदने के पैसे नहीं हैं। हाल के दिनों में ऐसी रिपोर्टें भी आई हैं कि बेरोज़गारी रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ी है और लोगों की पैसे कमाने की क्षमता कम हुई है। जीडीपी वृद्धि दर दूसरी तिमाही में गिरकर 4.5 फ़ीसदी रह गई है। दूसरे आर्थिक संकेतक भी ख़राब स्थिति की ओर इशारा कर रहे हैं।
औद्योगिक उत्पादन गिरा
यह इस लिहाज़ से भी अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है कि लगातार गिरावट के बावजूद इसमें सुधार होता नहीं दिखाई दे रहा है। देश की पहले से ही आर्थिक स्थिति ख़राब है और ऐसे में औद्योगिक उत्पादन का गिरना सरकार के लिए चिंता की बड़ी वजह होगा। चिंता का कारण इसलिए भी है कि अर्थव्यवस्था के किसी भी मोर्चे पर सकारात्मक संकेत नहीं दिख रहे हैं।
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