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मामूली प्याज निकाले आँसू, सोने की चमक फीकी, ऐसी आर्थिक नीतियाँ क्यों?

इस देश की अर्थव्यवस्था या आर्थिक प्रबंधन पर सवालिया निशान खड़े होना स्वाभाविक है, जहाँ एक ओर प्याज जैसी मामूली चीज खरीददारों को आँसू निकाल रही है तो दूसरी ओर सोने जैसी बहुमूल्य चीज की चमक फीकी पड़ गई है। यह विरोधाभास और विडंबना सरकार की आर्थिक नीतियों की पोल तो खोलती ही है, बाज़ारवादी अर्थव्यवस्था के खोखलेपन को भी उजागर करती है। 
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प्याज की कीमत बीते कई महीने से लगातार बढ़ती जा रही है और देश के ज़्यादातर हिस्सों में यह 60-80 रुपये प्रति किलो की दर से खुले बाज़ार में बिक रही है। दिल्ली में इसकी कीमत 90-100 रुपये प्रति किलोग्राम हो चुकी है। पिछले हफ़्ते भर में प्याज की कीमत 40 प्रतिशत बढ़ी है। 

प्याज की कीमत क्यों बढ़ी?

इसके पहले सरकारी एजेन्सियों को लगता था कि जल्द ही प्याज की कीमतें गिरेंगी, क्योंकि नया प्याज बाज़ार में आ जाएगा। पर ऐसा नहीं हुआ, नया प्याज अभी बाज़ार तक नहीं पहुँचा है। 
नेशनल हॉर्टीकल्चर रीसर्च एंड डेवलपमेंट फ़ाउंडेशन के पूर्व अतिरिक्त निदेशक सतीश भोंडे ने कहा था: 

किसानों के पास प्याज का स्टॉक नहीं बचा है, बाज़ार में कम प्याज आने की आशंका है और इस वजह से प्याज की कीमत बढ़ने के आसार हैं।


सतीश भोंडे, पूर्व अतिरिक्त निदेशक, नेशनल हॉर्टीकल्चर रीसर्च एंड डेवलपमेंट फ़ाउंडेशन

स्थिति इतनी बुरी हो चुकी है कि सरकार भी परेशान है। उपभोक्ता मामलों के विभाग के सचिव अविनाश श्रीवास्तव ने एलान किया है कि जल्द ही अफ़ग़ानिस्तान, मिस्र, तुर्की और ईरान से प्याज का आयात किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इन देशों में मौजूद भारतीय राजनयिकों से कहा गया है कि वे जल्द से जल्द प्रक्रिया  पूरी करें। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही प्याज की उपलब्धता बढ़ेगी और इससे इसकी कीमतें गिरेंगी। 
पर्यवेक्षकों का कहना है कि प्याज की कीमत बढ़ने की मुख्य वजह केंद्र सरकार की नीति है। सरकार महाराष्ट्र की मजबूत प्याज लॉबी के दबाव में आकर प्याज निर्यात पर तरह-तरह के प्रोत्साहन देती है। इस वजह से प्याज का निर्यात बढ़ता है, घरेलू बाज़ार में उपलब्धता घटती है और कीमत बढ़ जाती है।

किसानों को फ़ायदा नहीं, नुक़सान!

बढ़ी कीमत पर उत्साहित किसान अगले साल ज़्यादा एकड़ ज़मीन पर प्याज उगाते हैं, प्याज की अधिकता हो जाती है और कीमत गिर जाती है। इससे किसानों को नुक़सान होता है। इसका नतीजा यह होता है कि बढ़ी कीमत का फ़ायदा तो किसानों को नहीं मिलता, पर गिरी कीमतों का नुक़सान उन्हें उठाना होता है। 
इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प भूमिका होती है निर्यातकों और बिचौलियों की। वे अपने हिसाब से कीमतें घटाते-बढ़ाते हैं, उन्हें अधिक मुनाफ़ा होता है, लेकिन वह मुनाफ़ा उस अनुपात में किसानों तक नहीं पहुँच पाता है।

सोने की चमक फीकी!

दूसरी ओर बहुमूल्य धातु सोने की चमक फीकी पड़ चुकी है। पिछले हफ़्ते सोने की कीमत लगातार गिरती रही और गुरुवार को कारोबार बंद होते समय 10 ग्राम सोने की कीमत गिर कर 38,214 रुपये पर पहुँच गई। बाद में सोने की कीमत गिर कर 38,016 प्रति 10 ग्राम हो गई। पूरे हफ्ते में सोने की कीमत प्रति 10 ग्राम 610 रुपये तक गिरी थी। इसके बाद इसकी स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ और यह शुक्रवार को 38,475 रुपये तक चढ़ी। 
पर्यवेक्षकों का कहना है कि अमेरिका के फ़ेडरल रिज़र्व यानी केंद्रीय बैंक ने  बीते हफ़्ते उस दर में कटौती का एलान किया था, जिस पर वह दूसरे बैंकों को पैसे देता है। इससे लोगों ने वहाँ से पैसे निकाल कर यहाँ सोना खरीदना शुरू कर दिया।
सवाल यह उठता है कि सरकार ऐसी नीतियाँ क्यों नहीं बनाती, जिससे किसानों को सही पैसे मिले और उपभोक्ताओं को भी उचित कीमत पर प्याज मिले। यह संतुलन क्यों नहीं बनता, यह सवाल उठना लाजिमी है।
इसे इससे समझा जा सकता है कि प्याज की किल्लत शुरू होने के बाद भी उसका निर्यात जारी था और वह भी सरकार के प्रोत्साहन के साथ। इस पर रोक तो अक्टूबर में लगाई गई है। यदि समय पर इस पर रोक लगा दी गई होती तो कीमतें इतनी नहीं बढ़तीं। इसी तरह सवाल यह भी उठता है कि प्याज के आयात का फैसला यदि अगस्त में ही ले लिया गया होता तो न किल्लत होती न कीमतें बढ़तीं।
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प्रमोद मल्लिक

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