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पहले भी पाकिस्तान से आ चुके हैं ड्रोन, कहाँ हुई चूक?

जम्मू स्थित भारतीय वायु सेना के अड्डे पर ड्रोन हमले से नुक़सान भले ही ज़्यादा न हुआ हो, लेकिन यह सवाल तो उठता है कि ये ड्रोन कहाँ से आए, कैसे आए, किस तरह रक्षा पंक्ति को भेदा। यह सवाल उठना भी लाजिमी है कि क्या इसके पहले भी सीमा पार से ड्रोन भारत पहुँचे हैं और इसका उत्तर यदि हाँ है तो उससे जुड़े कई गंभीर सवाल मुँह फाड़े सबके सामने खड़े होते हैं। 

यह सच है कि सीमा पार से ड्रोन पहुँचने की यह पहली वारदात नहीं है। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) ने 14 मई 2021 को जम्मू में खेतों कुछ हथियार बरामद किए थे, जिसके बारे में यह आशंका जताई गई थी कि ये हथियार पाकिस्तान से किसी ने भेजे थे और वे सही ठिकाने पर नहीं पहुँच पाए। यह कहा गया था कि सीमा पार से ड्रोन आया था, जिसने ये हथियार गिराए और लौट गया। 

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हथियार

बीएसएफ़ ने जम्मू के सांबा सेक्टर में खोजबीन कर एक खेत से प्लास्टिक की थैली में ये हथियार पाए थे। उनमें ए. के. 47 राइफ़ल, पिस्टल, गोलियों की मैगजीन, 9 एमएम की 15 राउंड गोलियाँ, ड्रोन पर पे लोड रखने के लिए लकड़ी का एक ढाँचा और पे लोड बाँधने की सामग्री भी थी। 

सांबा सेक्टर में प्लास्टिक का यह बैग अंतरराष्ट्रीय सीमा से सिर्फ 250 मीटर की दूरी पर गिरा मिला था, लेकिन रविवार को ड्रोन हमला जिस एअर बेस पर हुआ, वह अंतरराष्ट्रीय सीमा से 15 किलोमीटर दूर है। इसके पहले एक बार 12 किलोमीटर की दूरी तक एक ड्रोन के आने को ट्रैक किया गया था। 

‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, 20 जून, 2020, को बीएसएफ़ ने एक ड्रोन को मार गिराया था। यह एक हेक्साकॉप्टर था, इस पर हथियार लदे हुए थे। बीएसएफ़ ने इसे हीरानगर सेक्टर के कठुआ ज़िले के रठुआ गाँव में हमला कर मार गिराया था। 

बीएसएफ़ के अनुसार, शाम को पाँच बजे अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगभग 250 मीटर अंदर यह हेक्साकॉप्टर देखा गया था, जो लगभग 200 फीट की ऊँचाई पर उड़ रहा था। 

इस ड्रोन में दो जीपीएस सिस्टम, चार बैटरी, एक रेडियो सिग्नल पकड़ने वाली मशीन के अलावा कई तरह के हथियार थे। 

drone attack at jammu air force station raises questions - Satya Hindi
आतंकवादियों को ड्रोन से भेजे जाते हैं हथियार

अखनूर

जम्मू के ही अखनूर सेक्टर में 21 सितंबर 2020 को नियंत्रण रेखा से कुछ दूरी पर ही एक ड्रोन खेत में पड़ा मिला था।

पुलिस ने 19 सितंबर को जम्मू-कश्मीर के ही रजौरी ज़िले से आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के तीन लोगों को पकड़ा था, उनके पास से हथियार बरामद किए थे। पूछताछ में उन लोगों ने बताया था कि पाकिस्तान से ड्रोन के जरिए हथियार गिराए गए थे। 

अमृतसर

इस तरह की घटनाएँ पंजाब के पाकिस्तान से सटे इलाक़ों में भी हुई हैं। अगस्त, 2020 को अमृतसर पुलिस को किसी अनजान व्यक्ति ने जानकारी दी थी कि उसे ‘आकाश में कोई पंखे जैसी चीज दिखी है।’

इसी तरह पुलिस को 13 अगस्त, 2020 को अमृतसर के मोहावा गाँव में एक हेक्साकॉप्टर एक खेत में पड़ा मिला था। 

काउंटर इंटेलीजेंस से जुड़ी एक संस्था के डीएसपी बलबीर सिंह ने कहा कि इस ड्रोन से खालिस्तान ज़िंदाबाद फ़ोर्स को हथियार भेजे गए होंगे।

तरण तारण

इसी तरह पंजाब के ही तरण तारण ज़िले में सितंबर 2020 में एक हेक्साकॉप्टर एक खेत में पड़ा मिला था और उसके बारे में भी यही आशंका जताई गई थी। 

सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में इस तरह की वारदात बढ़ गई है, ये ड्रोन अमूमन 5 किलो तक का पे लोड ले कर 15 किलोमीटर तक उड़ सकते हैं, ये अमूमन 200-250 फीट की ऊँचाई पर उड़ते हैं।

रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि कम ऊँचाई पर उड़ने के कारण ये ड्रोन हवाई सुरक्षा प्रणाली की पकड़ में नहीं आते हैं और उन्हें चकमा देने में कामयाब रहते हैं।

ड्रोन पकड़ने की तकनीक

दूसरी ओर, पूरे आकाश पर चौबीसों घंटे मानवीय नज़र रखना बेहद मुश्किल है। इस स्थिति का फ़ायदा उठा कर ड्रोन भेजे जाते हैं। 

बीएसएफ़ के अधिकारी ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा कि संगठन ने केंद्र सरकार से कई बार कहा है कि ड्रोन को इंटरसेप्ट करने की तकनीक बन चुकी है और भारत को वह तकनीक खरीद लेनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि कभी कभी तो एक ही दिन में 15-20 ड्रोन दिख जाते हैं, हालांकि वे लौट जाते हैं। लेकिन इससे यह तो साफ हो ही जाता है कि भारतीय सुरक्षा प्रणाली में छेद है और कोई इसका फ़ायदा उठा कर तबाही मचा सकता है। 

drone attack at jammu air force station raises questions - Satya Hindi

क़ानून होगा सख़्त?

रविवार की इस वारदात के बाद यह बात बिल्कुल साफ है कि केंद्र सरकार ड्रोन के मामले में पहले से तय नियम क़ानून को और सख़्त करेगी। 

विशेषज्ञों का कहना है कि ड्रोन उत्पादन से लेकर देश के अंदर उसके आने और अंत में उसका इस्तेमाल करने वाले तक की पूरी जानकारी सरकार को होती है, इसके पुख़्ता इंतजाम मौजूदा नियम में हैं।

लेकिन हमलावर ड्रोन इसके तहत नहीं आते क्योकि वे तस्करी से ही हासिल किए जाते हैं, उनका इस्तेमाल गुपचप व ग़ैरक़ानूनी ढंग से होता है, लिहाज़ा उसका कोई रिकॉर्ड नहीं होता। 

साल 2019 में सऊदी अरब के तेल ठिकानों पर ड्रोन हमले से शिक्षा लेकर भारत सरकार ने इससे जुड़े नियम क़ानून बनाए। ब्यूरो ऑफ़ सिविल एविएशन सिक्योरिटी (बीसीएएस) ने एक कमेटी गठित की थी, जिसमें कई विभागों के लोग शामिल थे।

इस कमेटी में वायु सेना, एअरपोर्ट अथॉरिटी, नागरिक विमानन, नेशनल सिक्योरिटी गार्ड, सीआईएसएफ़, डीआरडीओ, इंटेलीजेंस ब्यूरो और दूसरे विभागों के लोग थे। 

इस कमेटी ने दिशा निर्देश बना कर दिए थे।

इसके अलावा यह भी तय किया गया था कि ड्रोन की घुसपैठ को रोकने के लिए अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग उपाय किए जाएंगे और अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इनमें इनफ्रारेड कैमरा, इलेक्ट्रो ऑप्टिकल उपकरण, रेडियो फ्रीक्वेंसी डीटेक्टर व रेडियो सिग्नल पकड़ने वाले व दूसरे उपकरण लगाए जाएंगे।

सवाल यह उठता है कि ये उपकरण लगे हुए थे इसके बावजूद ये ड्रोन जम्मू के एअर बेस तक पहुँचने में कामयाब रहे या ये उपकरण थे ही नहीं और पूरे इलाके को राम भरोसे छोड़ दिया गया था। इन सवालों के जवाब पूरी जाँच के बाद ही मिल सकेंगे। 

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क़मर वहीद नक़वी

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