जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों के 14 नेताओं से प्रधानमंत्री की बैठक के बाद अब गृह मंत्रालय लद्दाख के कारगिल के लोगों से बातचीत करेगा।
गृह राज्य मंत्री जी. कृष्णरेड्डी इस बैठक की अध्यक्षता करेंगे, इसमें प्रधानमंत्री नहीं होंगे।
कारगिल के धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक संस्थाओं के शीर्ष संगठन कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के असगर करबलाई कृष्णरेड्डी से बात करेंगे और कारगिल से जुड़ी समस्याएँ उठाएंगे।
कारगिल के लोगों की माँगें
असगर करबलाई ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा कि उनकी दो मुख्य माँगें हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ‘ए’ को बहाल किया जाए, चूंकि यह मामला अदालत के अधीन है, इसलिए लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा दिया जाए।
करबलाई ने कहा,
“
पिछले 70 साल से हमारे पास यह अधिकार था कि हम अपने बारे में खु़द क़ानून बना सकें। पर 5 अगस्त, 2019 को यह अधिकार छीन लिया गया। हमें अलग राज्य के अलावा दूसरा कोई प्रस्ताव मंजूर नहीं है।
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लद्दाख की माँग
उन्होंने कहा कि कारगिल के लोगों के हितों की रक्षा के लिए संविधान में अलग अनुसूची जोड़ने से कुछ नहीं होगा, लोगों को अलग राज्य मिल जाए और वे अपने हितों की रक्षा खुद करें।
करबलाई की यह बात अहम इसलिए है कि इसके ठीक पहले लद्दाख के बीजेपी सांसद जामयांग त्सेरिंग नामग्याल ने अलग विधायिका की माँग की थी।
उन्हें लद्दाख के कई लोगों और सामाजिक व राजनीतिक संस्थाओं का समर्थन हासिल है। उन लोगों ने कहा है कि संविधान की छठी अनूसूची के तहत लद्दाख के लिए अलग विधायिका का गठन किया जा सकता है। यदि इसमें कोई दिक्क़त है तो संविधान में एक नई अनुसूची जोड़ी जा सकती है।
लेकिन कारगिल के कांग्रेस नेता करबलाई का कहना है कि अलग अनुसूची की ज़रूरत नहीं है, लद्दाख को अलग राज्य मिलना चाहिए।
इसके पहले बुधवार को गृह मंत्री अमित शाह के साथ लद्दाख के लोगों की बात हुई। इस बैठक में लद्दाख स्वायत्त विकास परिषद के अध्यक्ष ताशी ग्यालसन भी मौजूद थे।
लद्दाख के पूर्व सांसद थुप्सतन छेवांग भी ग्यालसन और बीजेपी सांसद जामयांग त्सेरिंग नामग्याल के साथ हैं। इन लोगों ने कहा है कि अनुच्छेद 370 और 35 ‘ए’ ख़त्म किए जाने से उनकी ज़मीन, रोज़गार, संस्कृति और भाषा पर ख़तरा है। वे अपनी सुरक्षा के लिए अलग राज्य या विधायिका की माँग कर रहे हैं।
अनुच्छेद 371
इसके ठीक एक दिन पहले जम्मू-कश्मीर के पूर्व उप मुख्यमंत्री मुज़फ्फ़र हुसैन बेग ने कहा कि यदि अनुच्छेद 370 की वापसी तुरन्त नहीं हो सकती है तो बीच का रास्ता अपनाते हुए अनुच्छेद 371 लागू किया जा सकता है।
इस अनुच्छेद के तहत पूर्वोत्तर के नागालैंड, मिज़ोरम और अरुणाचल प्रदेश को विशेष अधिकार मिले हुए हैं।
उन्होंने कहा कि यह मानना अव्यवहारिक होगा कि केंद्र सरकार फ़िलहाल अनुच्छेद 370 को बहाल कर देगी। ऐसे में व्यवहारिक यही है कि अनुच्छेद 371 को लागू किया जाए और उसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार मिलें।
मामला अदालत में
अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ‘ए’ को ख़त्म किए जाने के सरकार क फ़ैसले को चुनौती देती हुए याचिका सुप्रीम कोर्ट में डाली गई थी, जिस पर सुनवाई चल रही है।
बता दें कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार हासिल हैं।
मुज़फ़्फ़र बेग ने यह भी कहा है कि संविधान के अनुच्छेद तीन में अलग केंद्र-शासित क्षेत्र बनाने के प्रावधान हैं। लेकिन उन प्रावधानों के तहत पूरे राज्य को ही केंद्र शासित क्षेत्र नहीं बनाया जा सकता है, बल्कि उसके एक हिस्से को केंद्र-शासित क्षेत्र बनाया जा सकता है।
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