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महाराष्ट्र: सुप्रिया सुले के आगे बढ़ने से असुरक्षित महसूस कर रहे थे अजीत पवार?

महाराष्ट्र में चल रहे सियासी घमासान के सबसे अहम किरदार एनसीपी के बाग़ी नेता अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ तो ले ली है लेकिन उनके साथ गए लगभग सभी विधायक वापस पार्टी के प्रमुख शरद पवार के साथ आ गए हैं। एनसीपी ने कड़ी कार्रवाई करते हुए अजीत पवार को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया है और कहा जा रहा है कि उन्हें पार्टी से भी बाहर किया जा सकता है। 

ऐसे में कहीं अजीत पवार को उनकी यह बग़ावत बहुत भारी तो नहीं पड़ जाएगी क्योंकि उनकी बग़ावत के बाद भी बीजेपी अगर विधानसभा में बहुमत साबित करने में सफल नहीं रही तो फिर अजीत पवार का सियासी भविष्य अंधकारमय हो सकता है। लेकिन अजीत पवार की यह बग़ावत उनकी सियासी महत्वाकांक्षाओं को ही दिखाती है। 

चाचा से नाराज़गी दिखा चुके हैं अजीत 

एनसीपी में यह पहली बार नहीं हुआ है जब अजीत पवार ने अपने चाचा शरद पवार के आदेश पर नाराजगी जतायी हो। साल 2004 के विधानसभा चुनाव में एनसीपी ने कांग्रेस के मुक़ाबले तीन सीटें अधिक जीती थीं और तय शर्तों के हिसाब से मुख्यमंत्री पद उन्हें मिलना चाहिए था लेकिन शरद पवार ने कांग्रेस को दे दिया था और अजीत ने इस निर्णय पर सार्वजनिक रूप से प्रतिक्रिया दी थी और कहा था कि मुख्यमंत्री का पद छोड़कर पार्टी का नुक़सान किया गया। 

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इसके बाद जब 2009 में विधानसभा चुनाव हुए तब भी अजीत पवार ने विधायक दल के नेता और उप मुख्यमंत्री पद के लिए अपना दावा किया लेकिन राजनीतिक समीकरण देखते हुए शरद पवार ने ओबीसी वर्ग के कद्दावर नेता छगन भुजबल को ये पद दिया। उस समय भी अजीत पवार नाराज होकर विधायक दल की बैठक से बाहर चले गए थे। उस सरकार में क़रीब आधे कार्यकाल के बाद पवार ने उन्हें उप मुख्यमंत्री का पद दिलाया था लेकिन सिंचाई घोटाले का मुद्दा जब गरमाया तो अजीत पवार ने बिना किसी को बताए पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। उस समय उन्होंने कहा था, ‘पार्टी के निर्णय हम युवाओं को ही लेने चाहिए और वरिष्ठ नेताओं को सिर्फ सलाह देनी चाहिए।’ इस बयान में इशारा सीधे शरद पवार की तरफ ही था। 
यही नहीं, एनसीपी की विरासत किसे मिलेगी, इसे लेकर भी सुप्रिया सुले और अजीत पवार में एक अप्रत्यक्ष टकराव काफी समय तक चर्चाओं में रहा लेकिन शरद पवार ने सुप्रिया सुले को हमेशा दिल्ली की राजनीति से जोड़ने का प्रयास कर इस टकराव को टालने की कोशिश की।

विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जब शरद पवार को ईडी का नोटिस आया था तो अजीत पवार ने विधायक के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। उस प्रकरण को भी शरद पवार ने बड़ी तत्परता से साधा और कुछ घंटों बाद अजीत पवार यह कहते हुए मीडिया के समक्ष आ गए कि उन्हें इस बात का दुःख हुआ कि शरद पवार का नाम महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक घोटाले से जोड़ा जा रहा है।

लोकसभा चुनाव में अपने बेटे पार्थ पवार की हार को लेकर भी अजीत पवार काफी असहज रहते हैं। पार्थ पवार को टिकट देने को लेकर शरद पवार की नाराजगी को वह इस हार से जोड़कर देखते हैं।

इस विधानसभा चुनाव में शरद पवार के दूसरे भाई के पोते रोहित पवार के चुनाव जीतने और उसकी लोकप्रियता भी शायद अजीत पवार को असहज करती है। 

महत्वाकांक्षाओं को लेकर टकराव

अजीत पवार का यह टकराव कहीं ना कहीं उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को दर्शाता है। 2014 से पहले के 15 साल तक एनसीपी और कांग्रेस की प्रदेश में सत्ता रही। सत्ता की धुरी के केंद्र शरद पवार थे और कोई दूसरा राजनीतिक विकल्प इतना मजबूत नहीं था लिहाजा यह सब होते हुए भी विद्रोह के स्वर पार्टी के अंदर ही सुनाई देते रहे। लेकिन 2014 के बाद स्थितियां बदली और पार्टी के बड़े नेता छगन भुजबल घोटाले के आरोप में गिरफ्तार हुए, प्रफुल्ल पटेल, अजीत पवार, सुनील तटकरे के खिलाफ कारवाई की तलवार लटकी हुई है। 

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इस बार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तमाम बड़े नेता पार्टी छोड़कर चले गए। लेकिन शरद पवार ने फिर मैदान में उतरकर पार्टी को खड़ा तो कर लिया लेकिन सरकार बनाने के करीब पहुंचकर अजीत पवार की बग़ावत ने उनके लिए नई परेशानी खड़ी कर दी। लेकिन अजीत पवार के साथ गए अधिकांश विधायक पार्टी में लौट आए हैं लेकिन देखना होगा कि एनसीपी में इस बग़ावत का क्या असर होगा और क्या शरद पवार अजीत पवार के ख़िलाफ़ कोई कड़ी कार्रवाई करेंगे। 
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संजय राय

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