loader

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा- नवलखा को चश्मा नहीं देना 'अमानवीयता'

तलोजा जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को नया चश्मा नहीं मिलने के मामले में मुंबई हाई कोर्ट को जेल अधिकारियों को मानवता की याद दिलाना पड़ा है। कोर्ट ने कहा कि सबसे ज़रूरी मानवता है। जेल अधिकारियों के रवैये पर कोर्ट ने तो यहाँ तक कह दिया कि उनको कैदियों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए कार्यशाला किए जाने की ज़रूरत है। 

हाई कोर्ट की इस टिप्पणी से सवाल उठता है कि जेल अधिकारी बुजुर्ग लोगों को भी ज़रूरत की जीचें देने में आनाकानी क्यों करते हैं? क्या वे इतने संवेदनहीन हो गए हैं या फिर किसी दबाव में वे ऐसा बर्ताव कर रहे हैं। नवलखा का चश्मा चोरी होने के बाद जब पार्सल से उन्हें नया चश्मा भेजा गया तो जेल अधिकारियों ने चश्मा स्वीकार नहीं किया। ऐसा ही सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी के मामले में भी रवैया दिखाया गया था। स्ट्रा और सिपर कप तक उनको नहीं दिया जा रहा था। क्या यह अमानवीयता नहीं है? ऐसे उठते सवाल पर शायद हाई कोर्ट की यह टिप्पणी जवाब है। 

ख़ास ख़बरें

बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस एस के शिंदे और एम एस कर्णिक की खंडपीठ ने कहा कि पता चला है कि कैसे नवलखा के चश्मे जेल के अंदर चोरी हो गए और जेल प्रशासन ने कूरियर के माध्यम से उनके परिवार द्वारा भेजे गए नए चश्मे को लेने से इनकार कर दिया।

जस्टिस शिंदे ने कहा, 'मानवता सबसे महत्वपूर्ण है। बाक़ी सब इसके बाद। आज हमें नवलखा के चश्मे के बारे में पता चला। वक़्त आ गया है जब जेल अधिकारियों के लिए एक कार्यशाला आयोजित की जाए।' उन्होंने कहा, 'क्या इन सभी छोटी चीजों से इनकार किया जा सकता है? ये सभी मानवीय विचार हैं।'

बता दें कि भीमा कोरेगाँव से जुड़े एल्गार परिषद केस में जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा का चश्मा चोरी हो गया है और पोस्ट से भेजे गए चश्मे को जेल अधिकारी स्वीकार नहीं कर रहे हैं। 
नवलखा के परिवार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि बिना चश्मा के वह क़रीब-क़रीब अंधे हैं और कई दिनों से उन्हें दिक्कत हो रही है।

परिवार का क्या है आरोप?

अपने परिवार के साथ हाल ही में बातचीत में नवलखा ने कहा है कि पिछले महीने उनका चश्मा चोरी हो गया था। उन्होंने कहा है कि वह गंभीर दिक्कतों का सामना कर रहे हैं और देखने में असमर्थ हैं। नवलखा 69 साल के होने वाले हैं। उनके साथी सहबा हुसैन ने सोमवार को कहा कि जब उन्होंने चश्मा बनवाकर इसे 3 दिसंबर को जेल के लिए पार्सल से भेजा तो जेल प्रशासन ने पार्सल को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। 
वीडियो में देखिए, स्टेन स्वामी को स्ट्रॉ नहीं देना क्या अमानवीयता?

27 नवंबर को चोरी हुआ था चश्मा

हुसैन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि नवलखा का चश्मा 27 नवंबर को चोरी हुआ था। उन्होंने कहा कि बिना चश्मे के उन्हें कुछ भी नहीं दिखता है फिर भी उन्हें घर बात करने के लिए तीन दिनों तक तब तक अनुमति नहीं दी गई जब तक फ़ोन करने के लिए उनकी बारी नहीं आई। बयान में यह भी कहा गया है कि परिवार को जेल के अधिकारियों को यह भी बताया गया था कि पोस्ट से नवलखा के लिए चश्मा भेजा गया है, इसके बावजूद उस पार्सल को स्वीकार नहीं किया गया। 
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, जेल अधिकारियों ने दावा किया कि उन्होंने हुसैन को सूचित किया था कि कूरियर पार्सल स्वीकार नहीं किए जाएँगे और चश्मा किसी व्यक्ति के माध्यम से भेजा जा सकता है। जेल अधिकारी ने कहा, 'हमने यहाँ बने चश्मे की भी पेशकश की है, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। जेल के अंदर पार्सल की अनुमति देने में जोखिम है। हम उन्हें स्वीकार करेंगे अगर किसी जानकार व्यक्ति द्वारा सौंपा जाए।'
बता दें कि ऐसा ही मामला जेल में बंद समाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी को लेकर आया था जब उन्हें स्ट्रॉ और सिपर कप नहीं दिया जा रहा था। स्वामी पार्किंसन नामक बीमारी से जूझ रहे हैं और इसके बिना उन्हें खाने में भी दिक्कतें हो रही हैं। 
bombay hc says humanity most important in gautam navlakha spectacles case - Satya Hindi
झारखंड के आदिवासियों के लिए काम करने वाले 83 वर्ष के बुज़ुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी को विशेष देखभाल की ज़रूरत है और कुछ छोटी-मोटी सहूलियतों की भी। स्ट्रॉ और सिपर कप भी ऐसी ही चीज़ें हैं। उन्होंने ये दोनों चीज़ें अपनी ज़ब्त की गई चीज़ों में से देने की मामूली सी माँग की थी। 
राष्ट्रीय जाँच एजेंसी यानी एनआईए ने इसके लिए बीस दिनों का समय माँगा था और फिर यह कहते हुए मना कर दिया था कि ज़ब्त सामान में ये चीज़ें थी ही नहीं।

स्वामी के वकील ने इसे ग़लत ठहराते हुए कहा था कि उनके बैग में दोनों चीज़ें थीं। स्टेन स्वामी के मामले में यह रिपोर्ट आने पर कहा गया कि यदि मान लिया जाए कि एनआईए सही बोल रही है तो क्या मानवीय आधार पर वह इन्हें उपलब्ध नहीं करवा सकती थी? ये चीज़ें इतनी महँगी नहीं हैं और वैसे भी स्वामी उसके लिए भुगतान करने को तैयार थे। लेकिन एनआईए ने ऐसा नहीं किया।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

महाराष्ट्र से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें