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महाराष्ट्र : कोरोना को लेकर राजनीति, लेकिन क्या है ज़मीनी हक़ीक़त?

लॉकडाउन का चौथा चरण ख़त्म होने जा रहा है। कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में महाराष्ट्र भी पहली पंक्ति के उन प्रदेशों में शामिल है जिसने सबसे पहले लॉकडाउन की घोषणा की थी। प्रदेश में कोरोना का संकट दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है और देश के एक तिहाई से ज़्यादा संक्रमण और उसकी वजह से होने वाली मौत के आँकड़े महाराष्ट्र से ही हैं। 24 मार्च को महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमितों की संख्या 101 थी जो अब 50 हज़ार को पार कर चुकी है। कोरोना को लेकर प्रदेश में राजनीति भी गर्म है।

भारतीय जनता पार्टी के नेता राज्य सरकार पर इस महामारी से निपटने से विफल रहने का आरोप लगाते हुए आंदोलन कर रहे हैं तथा राष्ट्रपति शासन लगाने तक की माँग कर रहे हैं। जबकि सत्ताधारी दल के नेता कोरोना संकट गंभीर होने के लिए केंद्र सरकार और उसकी रणनीति को ही ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। राज्य सरकार का कहना है कि हमने केंद्र सरकार द्वारा जारी हर दिशा-निर्देशों का पालन किया है, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ़ से हमें एक वेंटिलेटर तक नहीं उपलब्ध कराया गया। यही नहीं, टेस्टिंग और पीपीई किट, मास्क माँग के अनुसार नहीं मिले। 

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महाराष्ट्र में अर्थव्यवस्था का क़रीब-क़रीब पूरा दारोमदार उद्योग-धंधों पर है इसलिए सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती यह भी है कि उसे पटरी पर किस तरह लाया जाए तथा लॉकडाउन को किस तरह से खोला जाए? पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इस बारे में पत्र भी लिखे हैं कि हमें उद्योग-धंधों को फिर से खोलना ही पड़ेगा नहीं तो अर्थव्यवस्था के साथ-साथ श्रमिकों का पलायन बढ़ेगा और उनके समक्ष रोज़ी-रोटी का बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। लेकिन सरकार मुंबई और पुणे में कोरोना के मरीज़ों की बढ़ती संख्या को देखकर इस उलझन में है कि लॉकडाउन को कैसे खोला जाए?

चौथे लॉकडाउन के समय ही केंद्र सरकार ने एक तरह से स्पष्ट संकेत दे दिए थे कि आगे की लड़ाई अब राज्यों को ही लड़नी होगी। इसलिए अब पाँचवाँ लॉकडाउन राज्य सरकार की क्षमताओं के आकलन का एक पैमाना बन सकता है कि वे कैसा कार्य कर रही हैं। चार लॉकडाउन में महाराष्ट्र सरकार ने क्या कार्य किये इसका भी आकलन होगा। 

स्वास्थ्य सेवाओं के मूलभूत ढाँचे की बात करें तो महाराष्ट्र सरकार ने इन 70 दिनों में बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में देश का पहला ओपन हॉस्पिटल, जिसकी क्षमता 1000 बेड की है, बनाया। यहाँ पर 200 बेड की आयसीयू सुविधा भी उपलब्ध है। इसके अलावा नेस्को एक्जीबिशन सेंटर, गोरेगाँव में 535 बेड की सुविधा कोरोना संक्रमितों के लिए तैयार है। दहिसर, मुलुंड में भी कोविड हॉस्पिटल बनाये हैं। राज्य सरकार दावा कर रही है कि 31 मई तक 7000 बेड से अधिक के कोविड हॉस्पिटल मरीज़ों के उपचार के लिए पूरी तरह से कार्य करने लगेंगे। यहाँ पर अभी 2500 बेड उपलब्ध हैं। इसके अलावा मुंबई महानगरपालिका के माध्यम से सरकार ने मुंबई के हर वार्ड में 100 बेड तथा 20 आईसीयू वाले सभी चिकित्सालयों को अपने अधीन ले लिया है। 

सरकार ने 30 हज़ार बेड की क्षमता वाले कोविड केयर सेंटर बनाये हैं। ये ऐसे संक्रमितों के लिए हैं जिनके पास स्वयं को क्वॉरंटीन करने की सुविधा नहीं है। मुंबई में 100 सरकारी एंबुलेंस की संख्या को बढ़ाकर 450 कर दिया गया है। झोपड़पट्टियों में कोरोना की जाँच बढ़ाने के लिए 360 फीवर क्लीनिक बनाये गए हैं।

लॉकडाउन-4 में महाराष्ट्र सरकार के लिए एक शुभ संकेत यह आया कि मुंबई में धारावी झोपड़पट्टी जो कोरोना का हॉटस्पॉट बन गयी थी और जिसमें औसतन हर रोज़ जो 97 नए मामले आते थे उनकी संख्या घटकर 25 रह गयी है। उसने वरली, कोलीवाड़ा जैसे घनी जनसंख्या वाले इलाक़े में भी कोरोना नियंत्रण करने सफलता पायी है लेकिन हर दिन बढ़ रहे आँकड़ों की वजह से सरकार सवालों के घेरे में है। 

महाराष्ट्र में कोरोना टास्क फ़ोर्स अधिकारी डॉ. प्रदीप आवटे के अनुसार लॉकडाउन सफल हुआ या नहीं, इसका आकलन दो पैमानों पर किया जा सकता है। पहला संक्रमित होने की संख्या कितने दिनों में दोगुना हो रही है तथा दूसरा R नॉट यानी संक्रमित व्यक्ति से कितने अन्य लोग संक्रमित हो रहे हैं। महाराष्ट्र में लॉकडाउन से पहले संक्रमितों की संख्या दोगुना होने की अवधि दो से तीन दिन थी जो अब बढ़कर 15 दिन हो गयी है। वहीं R नॉट जो लॉकडाउन 3 से 4 लोगों तक था वह अब 1 से 2 व्यक्ति तक सीमित हो गया है। यह आँकड़ा जितना कम होगा कोरोना प्रसार उतना ही सिमटता जाएगा और इस पर नियंत्रण किया जा सकेगा। इसके बावजूद मुंबई और महाराष्ट्र में आँकड़ा कम नहीं हो रहा इसलिए इसको लेकर राजनीति भी गर्म है। 

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महाराष्ट्र सरकार के दावे

शिवसेना नेता और सरकार में मंत्री अनिल परब का कहना है कि केंद्र सरकार ने जो पीपीई, मास्क और जाँच किट दिए हैं वह मुफ्त नहीं हैं इनके पैसे राज्य सरकार को केंद्र को देने हैं। शुरू में केंद्र सरकार ने ये सभी किट हमें निशुल्क देने को कहे थे। उनका कहना है कि प्रदेश में सबसे ज़्यादा कोरोना के मामले हैं लेकिन ज़्यादा जाँच भी महाराष्ट्र में ही की जा रही है, इसलिए यह कहना कि सरकार गंभीर नहीं है या कुछ भी नहीं कर रही, यह कहना ग़लत होगा। उनका कहना है कि विपक्ष अस्पतालों में बेड नहीं होने की झूठी ख़बर फैला रहा है जबकि हमने चीन की तरह मुंबई में इतना बड़ा चिकित्सालय तैयार कर दिया इस बात की कहीं चर्चा नहीं हो रही। महाराष्ट्र को 1611 करोड़ मिले हैं जो आपदा निधि से मिले हैं। जबकि महाराष्ट्र सरकार का जीएसटी का 42 हज़ार करोड़ रुपये केंद्र सरकार को देना बाक़ी है। उन्होंने कहा कि विरोधी पक्ष नेता देवेंद्र फडणवीस ने पत्रकार परिषद में केंद्र सरकार के जिस पैकेज की बात कहकर राज्य सरकार पर आरोप लगाए हैं उसकी हक़ीक़त यह है कि 1750 करोड़ का गेहूँ भी महाराष्ट्र को नहीं मिला।

उन्होंने आरोप लगाया कि स्थानांतरित मज़दूरों के लिए घोषित 122 करोड़ निधि भी नहीं मिली और न ही पर्याप्त संख्या में ट्रेन मिलती हैं जिससे अधिकाँश श्रमिकों को सही तरह से उनके घर तक पहुँचाया जा सके। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार मज़दूरों के टिकट का 68 करोड़ रुपया रेलवे को दे चुकी है।  

ठाकरे सरकार में मंत्री जयंत पाटिल का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन से कई अन्य संस्थानों  ने अनुमान व्यक्त किया था कि मई के अंत तक महाराष्ट्र में एक लाख 50 हज़ार से अधिक मामले होंगे लेकिन जिस तरह से आँकड़े आ रहे हैं उसे देखकर यही लगता है कि यह आँकड़ा 60 हजार से ज़्यादा नहीं हो पायेगा। ऐसे में यह कहना कि महाराष्ट्र सरकार कुछ नहीं कर रही, ग़लत है। उन्होंने कहा कि सरकार इस बात के पूरे प्रयास कर रही है कि कोरोना पर नियंत्रण रखा जाए। मुंबई और पुणे में मामले बढ़ रहे हैं, इसके पीछे एक बड़ा कारण यहाँ का जनसंख्या घनत्व ज़्यादा होना है। महाराष्ट्र सरकार ने वैसे लॉकडाउन 4 के दौरान बहुत से क्षेत्रों में कारखाने और व्यावसायिक गतिविधियों में काफी छूट दी है और आने वाले दिनों में वह यह छूट और बढ़ाने वाली है। ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी लाया जा सके।

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संजय राय

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