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अजीत पवार से समर्थन लेने पर बीजेपी नेता खडसे ने उठाए सवाल

किसी भी सूरत में महाराष्ट्र में सरकार बनाने का बीजेपी का ख़्वाब आख़िरकार अधूरा रह गया। इसके लिए पार्टी की महाराष्ट्र इकाई से लेकर केंद्रीय नेतृत्व ने पूरा जोर लगा दिया लेकिन सरकार फिर भी नहीं बन सकी। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने संघ प्रमुख मोहन भागवत के दरबार में भी हाजिरी लगाई लेकिन शिवसेना मुख्यमंत्री पद के बंटवारे की जिद पकड़कर बैठी रही और उसने विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बना ली। 

हर राज्य में बीजेपी की सरकार बनाने के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में पार्टी ने वो काम कर दिया है जिसकी टीस उसे लंबे समय तक रहेगी। अपने इस क़दम के कारण उसकी छीछालेदार तो हुई ही पार्टी के भीतर भी उसके इस क़दम के ख़िलाफ़ आवाज उठने लगी है और यह क़दम है - एनसीपी के बाग़ी नेता अजीत पवार का समर्थन लेना। 

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महाराष्ट्र में बीजेपी की दूसरी बार बनी सरकार महज 80 घंटे के अंदर ही गिर गयी। यह सरकार उसने एनसीपी से बग़ावत करने वाले नेता अजीत पवार के समर्थन से बनाई थी। सरकार गिरी तो बीजेपी के अदंर से आवाज़ उठी है कि पार्टी को ऐसा नहीं करना चाहिए था। महाराष्ट्र बीजेपी के वरिष्ठ नेता और किसी समय महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे रहे एकनाथ खडसे ने पार्टी के अजीत पवार का समर्थन लेकर सरकार बनाने के निर्णय पर सवाल उठाए हैं। 

खडसे ने कहा, ‘यह मेरा निजी विचार है कि बीजेपी को अजीत पवार का समर्थन नहीं लेना चाहिए था। अजीत सिंचाई घोटाले में अभियुक्त हैं और उनके ख़िलाफ़ कई आरोप हैं। इसलिए हमें उनके साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए था।’

महाराष्ट्र की सियासत में उस समय हंगामा मच गया था जब एंटी करप्शन ब्यूरो ने अजीत पवार के ख़िलाफ़ सिंचाई घोटाले में चल रहे 9 मामलों को बंद कर दिया था। यह कहा गया था कि पवार को पार्टी से बग़ावत करने का इनाम मिला है। खडसे ने पत्रकारों से कहा कि अजीत पवार का उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना सिर्फ़ अपना चेहरा बचाने की कोशिश थी। महाराष्ट्र बीजेपी के वरिष्ठ नेता खडसे ने कहा कि अगर अजीत पवार फ़्लोर टेस्ट का इंतजार करते तो यह उनके लिए और ज़्यादा अपमानजनक होता और पहले ही यह उम्मीद थी कि वह इस्तीफ़ा दे देंगे। 

खडसे ने कहा कि बीजेपी और शिवसेना को मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चल रहे विवाद को सुलझा लेना चाहिए था और अगर ऐसा होता तो यह महाराष्ट्र के लिए अच्छा होता। महाराष्ट्र में सरकार गिर जाने के बाद बुधवार को जब देवेंद्र फडणवीस से इस बारे में पूछा गया कि क्या अजीत पवार का समर्थन लेना ग़लती थी तो उन्होंने भी इसका सीधा जवाब नहीं दिया। फडणवीस ने कहा कि वह इस बारे में सही समय पर सही बात कहेंगे और इसे लेकर चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। 

फडणवीस से रही है राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता

खडसे को महाराष्ट्र की राजनीति में फडणवीस का विरोधी माना जाता है। 2014 से पहले एकनाथ खडसे महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता थे और बीजेपी के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री पद पर उनका दावा सबसे प्रबल था। लेकिन कहा जाता है कि मोदी-शाह की पसंद देवेंद्र फडणवीस थे। 2014 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद खडसे एक साल तक मंत्री भी रहे थे लेकिन ज़मीन सौदे में अनियमितता के मामले में उनसे इस्तीफ़ा ले लिया गया और उसके बाद वापस मंत्री पद पर उनकी बहाली नहीं हुई। 

राज्य सरकार द्वारा इस घोटाले को लेकर बैठाई गयी जांच समिति की रिपोर्ट में खडसे को क्लीन चिट मिल गयी थी लेकिन सरकार का कार्यकाल ख़त्म होने तक उन्हें मंत्री पद नहीं मिला था। सरकार के कार्यकाल के अंतिम विधान सभा सत्र में खडसे ने अपना दर्द भी बयां किया था। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें टिकट ही नहीं दिया और कहा जाता है कि फडणवीस ने ही उन्हें किनारे लगाया था। कहा जाता है कि खडसे का राजनीतिक करियर ख़त्म करने के पीछे फडणवीस का ही हाथ था।
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क़मर वहीद नक़वी

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