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महाराष्ट्र: 4 दिन में 10 किसानों ने की आत्महत्या और नेताओं को बस कुर्सी की चिंता

महाराष्ट्र में पिछले दो सप्ताह से नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि प्रदेश के मराठवाड़ा क्षेत्र में पिछले चार दिनों के दौरान 10 किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव परिणाम 24 अक्टूबर को आए और सत्ता में हिस्सेदार रही बीजेपी और शिवसेना ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा और उन्हें पूर्ण बहुमत के बाद भी सरकार गठित नहीं हो पा रही है।

यहाँ बेमौसम बारिश के चलते फ़सलों को भारी नुक़सान हुआ है। नांदेड़ ज़िले के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ज़िले में एक नवंबर से अब तक किसान आत्महत्या की तीन घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बीड ज़िले में पिछले तीन दिनों में दो किसानों ने आत्महत्या कर ली। उन्होंने बताया कि हम इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर सकते हैं कि ये मौत बारिश से फ़सल बर्बाद होने या क़र्ज़ में डूबने के चलते हुई है या नहीं। 

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एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि लातूर ज़िले में किसान आत्महत्या की तीन घटनाएँ दर्ज की गईं। ऐसा संदेह जताया जा रहा है कि बेमौसम बारिश से फ़सल बर्बाद होने और क़र्ज़ में डूबने के चलते इन किसानों ने आत्महत्या की है। अधिकारियों ने बताया कि उस्मानाबाद और परभणी ज़िले में दो किसानों ने आत्महत्या की है, हालाँकि इसकी वजह पता नहीं चल सकी है। पुलिस ने बताया कि हिंगोली ज़िले के निवासी रामदास कराले (40) ने कथित रूप से आत्महत्या की कोशिश की, हालाँकि वह बच गए और उनका इलाज चल रहा है। औरंगाबाद ज़िले के धनोरा के निवासी कृष्ण एकनाथ काकड़े (38) की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई। उनकी तैयार फ़सल बारिश के चलते बर्बाद हो गई थी। उनके परिवार ने बताया कि उन पर क़र्ज़ का बोझ था और वह बेटी की शादी को लेकर चिंतित थे, जो अगले महीने होनी थी। 

शिवसेना का प्रदर्शन

शिवसेना के नेताओं ने बुधवार को पुणे के कोरेगाँव पार्क स्थित इफ़को -टोक्यो बीमा कंपनी के कार्यालय में घुसकर भारी तोड़फोड़ की। शिवसेना शहर प्रमुख संजय मोरे के नेतृत्व में कार्यकर्ता इस कार्यालय में घुसे और कर्मचारियों को एक तरफ़ कर वहाँ रखे सभी फ़र्नीचर, कंप्यूटर आदि तोड़ डाले। तोड़फोड़ करते समय ये नारे लगा रहे थे कि किसानों को फ़सल बीमा का मुआवजा मिलना ही चाहिए। 

महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या पिछले कुछ सालों से एक बड़ा मुद्दा रही है। इस चुनाव में भी कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ-साथ शिवसेना ने भी यह मुद्दा उठाया था। प्रदेश में पाँच सालों में क़रीब 16 हज़ार किसानों द्वारा आत्महत्या करने का सरकारी आँकड़ा है।

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अपनी हर चुनावी सभा में यह बात कहते रहे कि उन्होंने आज तक देश के इतिहास में सबसे बड़ी क़र्ज़ माफ़ी की घोषणा महाराष्ट्र में की है। लेकिन किसानों का कितना क़र्ज़ माफ़ हुआ यह चुनावी नतीजों ने दिखा दिया। बीजेपी-शिवसेना को  मुंबई, पुणे जैसे शहरों में ही जीत हासिल हो सकी है, जबकि ग्रामीण इलाक़ों में किसान संकट का उनको सामना करना पड़ा और 220 सीटों से ज़्यादा जीतने का जो आँकड़ा प्रचारित किया जा रहा था वह फ़ेल हो गया। 

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सरकारें कितनी संवेदनशील?

चुनाव परिणाम के बाद जब भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर दाँवपेच में व्यस्त थे उसी समय लौटते मानसून की बारिश किसानों की फ़सलें तबाह कर रही थी। राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता शरद पवार जब मुंबई के सत्ता संघर्ष से हटकर किसानों के बीच ठेठ उनके गाँवों में पहुँच गए तो बीजेपी और शिवसेना नेताओं की नींद उड़ी। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके पुत्र आदित्य ठाकरे भी मराठवाड़ा क्षेत्र के दौरे पर निकले। फडणवीस भी दौरे पर निकले और अधिकारियों की बैठक भी बुलाई। लेकिन एक सवाल यह उठता है कि किसानों को लेकर हमारी सरकारें कितनी संवेदनशील हैं।  पूरे चुनाव प्रचार में फडणवीस और उनकी सरकार यह प्रचार करती रही कि किसानों का क़र्ज़ माफ़ कर दिया गया है, लेकिन हक़ीक़त यह है कि कितने किसानों को यह क़र्ज़ माफ़ी मिली, यह कोई बता नहीं पाता। आज हर दिन दो से तीन किसान केवल मराठवाड़ा क्षेत्र में आत्महत्या कर रहे हैं और नेता अपनी कुर्सी के चक्कर से बाहर नहीं आ पा रहे?

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संजय राय

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