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महाराष्ट्र में तीसरे चरण का चुनाव बीजेपी के लिए अग्नि परीक्षा!

लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 23 अप्रैल को महाराष्ट्र में जिन 14 लोकसभा क्षेत्रों में मतदान होने जा रहे हैं वे बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के लिए अग्नि परीक्षा साबित होने वाले हैं। बीजेपी के सामने चुनौती होगी पिछले चुनाव के अपने प्रदर्शन को बरक़रार रखने की, जबकि कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस के सामने अपनी परम्परागत ताक़त को हासिल करने की चुनौती होगी। 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबंधन ने इन 14 लोकसभा सीटों में से 7 और शिवसेना-बीजेपी गठबंधन ने 6 सीटें जीती थीं। 2014 के चुनावों में राष्ट्रवादी कांग्रेस तो अपनी सीटें बचाने में कामयाब रही, लेकिन कांग्रेस विफल रही। इस चरण में बारामती लोकसभा क्षेत्र में भी मतदान होने जा रहे हैं जिसे नरेन्द्र मोदी ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है और उसे लेकर वह अपनी हर सभाओं में शरद पवार पर आक्रामक दिखाई दिए। जबकि शरद पवार के सामने एक बार फिर से चुनौती है कि वे तमाम अटकलों को ग़लत साबित करते हुए हर बार की तरह अपना गढ़ बरक़रार रखें।

कांग्रेस के लिए जिस तरह से उत्तर प्रदेश में अमेठी और रायबरेली की सीट परंपरागत रही है वैसे ही पवार घराने के लिए महाराष्ट्र में बारामती सीट रही है।

इस बार तीसरे चरण में होने वाली 14 लोकसभा सीटों में से चार सीटें 2014 में मोदी लहर के बावजूद राष्ट्रवादी कांग्रेस ने जीती थी। शरद पवार की पार्टी ने बारामती, माढा, सातारा व कोल्हापुर लोकसभा सीटें 2014 में जीती थी। और ये चारों सीटें उसने 2009 के लोकसभा चुनावों में भी जीती थीं। यानी इन सीटों पर राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रदर्शन पर मोदी लहर का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। जबकि कांग्रेस अपने हिस्से की सीटों पर 2009 के लोकसभा चुनावों का प्रदर्शन 2014 में बरक़रार नहीं रख पायी थी। कांग्रेस के सुरेश कलमाड़ी ने 2009 में पुणे की सीट, प्रतीक पाटिल ने सांगली और निलेश राणे ने रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग की सीट जीती थी और ये तीनों सीटें 2014 में वह हार गयी थी।

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राजू शेट्टी बिगाड़ेंगे बीजेपी का खेल?

हातकनंगले एक ऐसी सीट है जिस पर साल 2009 में स्वाभिमानी शेतकरी (किसान) संगठन के राजू शेट्टी ने जीत हासिल की थी। 2014 में राजू शेट्टी ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन में शामिल होकर यह सीट जीती थी लेकिन 2016 में इस गठबंधन से उनका मोह भंग हो गया और वे इस बार कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। राजू शेट्टी की किसानों में पकड़ मज़बूत है। हर बार की तरह इस बार भी किसानों ने लाखों रुपये का चंदा दिया है इसलिए उनकी जीत की संभावनाएँ ज़्यादा नज़र आती हैं। गठबंधन में इस बार कांग्रेस ने अपने हिस्से की सांगली लोकसभा सीट राजू शेट्टी की पार्टी को दे दी है। साल 2014 में वसंत दादा पाटिल के पौत्र प्रतीक पाटिल यहाँ से हार गये थे और इस बार चुनाव नहीं लड़ने की बात कही थी। लेकिन इसके पीछे वजह कांग्रेस पार्टी के अन्दर चल रही गुटबाज़ी को भी बताया जाता है।

जब सीट राजू शेट्टी की पार्टी के खाते में गयी तो उन्होंने वसंत दादा पाटिल के परिवार से बैर लेने की बजाय उन्हीं के परिवार के युवा विशाल पाटिल को मना लिया और अपनी पार्टी से टिकट दे दिया। सांगली ऐसी लोकसभा सीट है जिस पर आज़ादी के बाद पहली बार कांग्रेस को साल 2014 में हार का सामना करना पड़ा था। राजू शेट्टी और कांग्रेस के नेता ये प्रयास कर रहे हैं कि वे फिर से बीजेपी से ये सीट छीन लें। 

इन सीटों पर बड़े फेरबदल की संभावना

तीसरे चरण में कुछ ऐसी सीटें हैं जिन पर बड़ा फेरबदल हो सकता है। इसमें से एक सीट है रायगड की। इस सीट पर शिवसेना के अनंत गीते कई बार से जीतते रहे हैं। पिछली बार मोदी लहर के बावजूद उनकी जीत का अंतर मात्र 1500 वोटों तक सिमट गया था। इस सीट पर उन्हें इस बार भी राष्ट्रवादी के सुनील तटकरे चुनौती दे रहे हैं। वैसे इस बार माढा की सीट बचाने के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस को काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इस सीट से एनसीपी के विजय सिंह मोहिते पाटिल पिछली बार चुनाव लड़े थे लेकिन वह अब बीजेपी में जा चुके हैं।

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कॉमन वेल्थ गेम्स घोटाले में नाम आने के बाद राजनीति के हाशिये पर पहुँचे सुरेश कलमाड़ी की परम्परागत पुणे लोकसभा सीट इस बार कांग्रेस वापस ले सकती है। पिछली बार यह सीट कांग्रेस हार गयी थी। रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग की सीट इस बार नारायण राणे के लिए अस्तित्व का सवाल बनी हुई है। निलेश राणे इस बार इस सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं। 

इस चरण में राष्ट्रवादी कांग्रेस अहमद नगर की सीट बीजेपी से छीन सकती है। बीजेपी ने इस सीट से अपने दो बार के विजेता सांसद दिलीप गाँधी की बजाय विपक्ष के नेता और कांग्रेस नेता राधा कृष्ण विखे पाटिल के बेटे को मैदान में उतारा है। बीजेपी सांसद दिलीप गाँधी नाराज़ चल रहे हैं जो बीजेपी के लिए नुक़सानदेह साबित हो सकती है।

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संजय राय

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