प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्मार्ट सिटी की घोषणा को छोड़ दें तो उससे पहले भी मुंबई को कभी हांगकांग तो कभी शंघाई बनाने के सपने दिखाए गए। लेकिन जब शहर में बारिश आती है तो न तो सड़क पर गाड़ियाँ, ट्रैक पर रेल और न ही हवा में हवाई जहाज़ चल पाते हैं। सबकुछ जलमग्न हो जाता है और तेज़ गति से दौड़ने वाली देश की आर्थिक राजधानी थम-सी जाती है। पहले यह सालों बाद हुआ करता था, लेकिन अब यह एक सिलसिला-सा बन गया है। लेकिन कोई ठोस उपाय अब तक नज़र नहीं आये हैं। हर मानसून में कुछ लोग मारे जाते हैं, कोई इमारत ढह जाती है, जाँच बैठती है और ‘बारिश ख़त्म, बात ख़त्म’ जैसा होकर शहर फिर अपनी रफ़्तार से चलने लगता है।
मुंबई में इस साल फिर से बाढ़ के हालात पैदा हो गए हैं। 2005 और 2017 में भी मुंबई ऐसी ही बाढ़ का सामना कर चुकी है। 2005 में मुबंई में 24 घंटों में 944 मिमी बारिश हुई थी जिस बाढ़ में 500 से ज़्यादा लोगों की जान गई थी। 30 अगस्त 2017 को सांताक्रूज में 24 घंटों में 304 मिमी, अंधेरी में 297 मिमी, बोरिवली में 211 मिमी और भायखला में 227 मिमी बारिश हुई थी। इस बारिश में क़रीब 14 लोगों की मौत हुई थी। वहीं, एक इमारत ढहने से 21 लोगों की मौत हो गई थी।
पिछले दो दिनों से एक बार फिर से बारिश जारी है। भारतीय मौसम विभाग ने कहा कि शनिवार सुबह साढ़े आठ बजे तक 234.8 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। यह 2015 के बाद से एक दिन में होने वाली सबसे अधिक बारिश है। ठाणे में 237.5 मिलीमीटर और नवी मुंबई में 245.2 मिलीमीटर बारिश हुई है। शनिवार को जून में होने वाली औसत बारिश का 46 फ़ीसदी हिस्सा सिर्फ़ 24 घंटे के अंदर ही हो गया है। सोमवार को भी भारी बारिश हुई। मुंबई में जब भी बाढ़ आती है तब कई उपनगरीय इलाक़ों में जल जमाव हो जाता है, यातायात व्यवस्था चरमरा जाती है। राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगते हैं।
बीएमसी, रेलवे तैयारी नहीं करते: कोर्ट
महानगरपालिका में पिछले 20 सालों से शिवसेना की सत्ता है इसलिए कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस नाली और गटर में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती हैं। यही नहीं, मुंबई उच्च न्यायालय भी इसके लिए सरकार को खरी-खोटी सुना चुका है।
कोर्ट कह चुका है कि बीएमसी और रेलवे दोनों ही बारिश के लिए तैयारी नहीं करते। निचले इलाक़ों में रेलवे ट्रैक की ऊँचाई मानसून के पहले क्यों नहीं बढ़ाई जाती? हर साल उन्हीं रेलवे ट्रैक पर पानी भरता है तो सबक़ क्यों नहीं लिया जाता?
कोर्ट ने कहा कि मुंबई की लोकल सेवा के लिए अलग से रेलवे बोर्ड क्यों नहीं बनाया जाता, जिससे हर बार दिल्ली से इजाज़त माँगने की ज़रूरत न पड़े। लेकिन नतीजा वही का वही। इस साल फिर से दादर, मुंबई सेंट्रल, कुर्ला, अंधेरी, साकी नाका, बोरीवली, गोरेगाँव, जुहू, बांद्रा, परेल, सायन, माटुंगा, धारावी, ठाणे, कोलाबा, सांताक्रूज, कल्याण, वसई, मीरा रोड, नालासोपारा और चेंबूर इलाक़ों में पानी भरा है और लोग आने वाले किसी भी हादसे को लेकर चिंतित हैं।
एक अध्ययन के मुताबिक़ पिछले 100 सालों में मुंबई के औसत तापमान में 2.5 डिग्री सेल्सियस का इजाफ़ा हुआ है। कारण है ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज।
पिछले दो दशकों में मुंबई में पूरे मानसून अवधि में अत्यधिक बारिश के दिन बढ़कर 10 से 12 हो गए हैं। जबकि 2 दशक पहले ये 9 दिन थे। आमतौर पर मुंबई में औसत बारिश 240 मिमी होती है, लेकिन समुद्र में बढ़ी नमी की वजह से बारिश की मात्रा बढ़ जाती है। लोग कचरे को यहाँ-वहाँ खुले में फेंक देते हैं। मुंबई का ड्रेनेज सिस्टम प्लास्टिक और कचरे से चोक हो जाता है। इससे सड़कों पर जमा पानी धीरे-धीरे निकलता है।
मुंबई के उपनगरीय इलाक़ों की सड़कों के नीचे 2000 किमी लंबा ड्रेनेज सिस्टम है। इससे जुड़ते हैं - 440 किमी लम्बे छोटे-छोटे द्वीपों के ड्रेनेज, 200 किमी बड़ी और 87 किमी छोटी नहरें और 180 मुहाने (नदी, नालों के)। ये सब अरब सागर में गिरते हैं। अरब सागर में इनका मिलान होता है तीन जगहों से- पहला माहिम की खाड़ी, दूसरा माहुल की खाड़ी और तीसरा ठाणे की खाड़ी। इसके अलावा बारिश में ही दिखने वाली मुंबई की मीठी नदी भी उफान पर आने के बाद कहर बरपाती है।
जलनिकासी की उपेक्षा और ग़लत प्रबंधन
शहरी बाढ़ प्रबंधन के विशेषज्ञ और आईआईटी मुंबई के प्रोफ़ेसर कपिल गुप्ता का कहना है कि अनियोजित निर्माण, शहरी नालों में ठोस गंदगी और जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ती बारिश, दुनिया भर में शहरी बाढ़ के जाने-पहचाने कारणों में से कुछ सामान्य कारण हैं। गुप्ता कहते हैं, ‘जलनिकासी मार्ग ठीक से चिह्नित होना चाहिए और शहर के प्राकृतिक जलनिकासी तंत्र में कोई अतिक्रमण नहीं होना चाहिए।’ उपेक्षा या ग़लत प्रबंधन के चलते बाढ़ क्षेत्र की जलनिकासी मार्ग बाधित हो चुकी है। इनको तुरंत दुरुस्त करना होगा। लगभग सभी शहरों पर जनसंख्या का दबाव ऐसा पड़ रहा है कि बाढ़ क्षेत्र में बस्तियाँ बसने लगी हैं।
अतिक्रमण के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़नी होगी। बड़ी संख्या में पुल, ओवरब्रिज समेत मेट्रो परियोजनाओं का जो निर्माण हो रहा है वह मौजूदा जलनिकासी मार्गों में किया जा रहा है। उचित इंजीनियरिंग डिजाइनों जैसे केंटिलीवर निर्माण आदि का सहारा लेकर ड्रेनेज सिस्टम की रक्षा की जा सकती है। ज़मीन सिर्फ़ मकान बनाने के लिए नहीं है, पानी के लिए भी है। ताल-तलैये और पोखर शहर के सोख्ते की तरह हैं। बाढ़ नियंत्रण के इन परंपरागत तरीक़े के प्रति उपेक्षा ने स्थिति को और गंभीर बनाया है। लेकिन इन पर ध्यान कौन देगा यह सवाल सबसे बड़ा है।
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