क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं कि आप नागरिकता क़ानून के विरोध की बात भी कर रहे हों तो बग़ल में खड़ा आदमी पुलिस बुला ले? पुलिस आपको थाने ले जाए और आधी रात को भी घंटों पूछताछ करे। अजीबोग़रीब सवाल करे। हैरान न हों, ऐसा मामला मुंबई में आया है। आइए, हम आपको बताते हैं कि मामला क्या है। दरअसल, उबर ड्राइवर ने अपनी टैक्सी में सवारी को फ़ोन पर नागरिकता क़ानून के विरोध की बात सुनी। ड्राइवर ने एटीएम से रुपये निकालने की बात कहकर गाड़ी रोकी, दो पुलिस कर्मियों को साथ ले आया और उसे गिरफ़्तार करने को कहा।
भले ही यह घटना छोटी और सामान्य लगती हो, लेकिन यह देश में ख़तरनाक ट्रेंड को दिखाती है। क्या किसी क़ानून के विरोध की बात भर करने से किसी आम व्यक्ति द्वारा इस तरह की प्रतिक्रिया देना सामान्य है? क्या वह उस नफ़रत का नतीजा नहीं दिखता जिस नफ़रत के कारण जामिया में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान एक किशोर ने गोली चलाई थी और गोली चलाने वाले ने कहा था 'ये लो आज़ादी'? क्या यह एक ख़ास प्रोपगेंडा का नतीजा नहीं है?
इस घटना को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा कि कवि बप्पादित्य सरकार के साथ एक डरावनी घटना घटी। कृष्णन ने जो ट्वीट किया है उसमें बप्पादित्य सरकार का बयान भी है। उन्होंने लिखा है, 'पिछली रात सरकार सिल्वर बीच पर थे और क़रीब साढ़े दस पौने ग्यारह बजे कुरला के लिए उबर कैब बुक किया। यात्रा के दौरान वह दिल्ली के शाहीन बाग़ में 'लाल सलाम' नारे से लोगों को दिक़्क़त होने के बारे में अपने दोस्त से (फ़ोन पर) चर्चा कर रहे थे।'
Last night, poet @Bappadittoh had a scary episode in Mumbai, at the hands of an @Uber driver and @MumbaiPolice cops (see screenshots): a glimpse of scary India under NPR NRC CAA, where every person will be incentivised to suspect & turn in others & police can harass everyone. pic.twitter.com/OOKUB58BxK
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) February 6, 2020
कैब ड्राइवर ये बातें सुन रहा था और इस बीच उसने गाड़ी रोककर पुलिस को बुला लिया। जैसा कि बप्पादित्य ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने कथित रूप से उनसे पूछा कि वह डफली क्यों लिए हुए हैं और घर का पता क्या है। इस पर सरकार ने कहा, 'वह जयपुर के हैं और वह दिन में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ 'मुंबई बाग़' प्रदर्शन में शामिल हुए थे। वह इसलिए डफली लिए हुए हैं क्योंकि वह वहाँ नारेबाज़ी कर रहे थे।'
इस दौरान कैब ड्राइवर ने कथित रूप से पुलिस से सरकार को गिरफ़्तार करने के लिए कहा। सरकार के अनुसार ड्राइवर ने पुलिस से कहा, ' सर आप इसको अंदर लो, ये देश जलाने की बात कह रहा है, बोल रहा है मैं कम्युनिस्ट हूँ, हम मुंबई में शाहीन बाग़ बना देंगे, मेरे पास पूरी रिकॉर्डिंग है'। सरकार ने अपने बयान में कहा है, "मैंने पुलिस से कहा कि वे उस रिकॉर्डिंग को सुनें यदि वे मुझे 'हम देश जला देंगे' कहते हुए सुनते हैं या वैसा कुछ भी जो भड़काऊ है या वैसा कुछ जो देश विरोधी है। फिर मैं उबर ड्राइवर की तरफ़ मुड़ा और पूछा, सर आपको किस बात का बुरा लगा, ये बताओ, आप पुलिस स्टेशन क्यों ले आए मुझे इतनी सी बात पे?"
बप्पादित्य सरकार के बयान के अनुसार, 'ड्राइवर ने जवाब दिया, तुम देश बर्बाद कर दोगे और हम देखते रहेंगे? मैं कहीं और ले जा सकता था तुझे, शुक्र मना पुलिस स्टेशन लाया हूँ।'
इस बीच पुलिस सरकार को थाने ले गई। सरकार ने आरोप लगाया कि पुलिस ने इस दौरान उनसे उनकी विचारधारा, उनके पिता की तनख्वाह और वह बिना नौकरी के कैसे सर्वाइव कर रहे हैं, डफली क्यों ले जा रहे थे, जैसे सवाल पूछे। इसके बाद रात क़रीब एक बजे एक अन्य कार्यकर्ता एस. गोहिल मौक़े पर पहुँचे तब उनको छोड़ा गया।
दरअसल, इस तरह की भाषा उस नफ़रत की ओर इशारा करता है जो इस राजनीतिक माहौल ने बना दिया है। इसी नफ़रत का नतीजा था कि जामिया और शाहीन बाग़ में गोलियाँ चलाई गईं।
ऐसी स्थिति के लिए ज़िम्मेदार कौन?
नफ़रत का ऐसा माहौल और गोलियाँ चलने की ये घटनाएँ तब आई हैं जब केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर ने दिल्ली की एक चुनावी रैली में नारा लगाया था- 'देश के गद्दारों को...' इस पर भीड़ ने '...गोली मारो सालों को' बोलकर इस नारे को पूरा किया था। ठाकुर ने यह नारा बार-बार लगाया और लगवाया था। वह जनता के '...गोली मारो सालों को' बोलने पर तालियाँ बजाते भी दिखे थे। तब उनके इस नारे को हत्या के लिए उकसाने वाला बताया गया था। एक के बाद एक दूसरे कई नेता भी ऐसी ही बयानबाज़ी करते रहे हैं।
एक अन्य बीजेपी नेता प्रवेश वर्मा ने शाहीन बाग़ में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों के बारे में कहा था कि 'ये लोग घरों में घुसेंगे और बहन व बेटियों का रेप करेंगे।'
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कश्मीर में आतंकवादियों का समर्थन करने वाले शाहीन बाग़ में बैठे हैं। पहले बीजेपी नेता दिलीप घोष ने कहा था, ‘कुत्तों की तरह गोली मार देनी चाहिए और यूपी में मारी है’।
चौंकाने वाली बात यह है कि उनके नारे लगाने के बाद से अब तक जामिया और शाहीन बाग़ क्षेत्र में फ़ायरिंग की एक के बाद एक 3 घटनाएँ हो चुकी हैं।
जामिया में शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर गोली किसने और क्यों चलाई? क्या यह नफ़रत की राजनीति का नतीजा नहीं है? आख़िर क्यों ऐसी स्थिति आन पड़ी और कौन है इसके लिए ज़िम्मेदार?
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