‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह चुनावी नारा सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन जैसे ही केंद्र और राज्यों में उनकी पार्टी की सरकारें बनीं, इस नारे का अर्थ ही बदल गया। केंद्र से लेकर राज्य की बीजेपी की सरकारों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने शुरू हो गए।
पंकजा के विभाग ने आंगनबाड़ी पोषण आहार के लिए क़रीब 6300 करोड़ के टेंडर जारी किए थे। बताया जाता है कि ये टेंडर्स महिला बचत समूहों को तो नहीं मिले और बड़े-बड़े ठेकेदारों को मिल जाएँ, इसको लेकर निविदा प्रक्रिया और उसके लिए नियमों में कुछ बदलाव किए गए थे।
बड़े ठेकेदारों के लिए जोड़ी शर्तें
23 फ़रवरी 2016 को राज्य सरकार के मंत्रिमंडल में इस प्रस्ताव को मंजूरी मिली थी और आनन-फानन में यानी 8 मार्च को ही इसकी निविदा भी निकाल दी गई। सिद्धांतत: सरकारी स्कूलों व आंगनबाड़ी केंद्रों पर पौष्टिक आहार सामग्री की आपूर्ति के काम में महिला बचत समूहों को प्रधानता दी जाती है। लेकिन पंकजा मुंडे के विभाग द्वारा जारी की गई इस निविदा में कुछ शर्तें बड़े ठेकेदारों के हित को देखते हुए जोड़ी गईं।
जस्टिस अरुण मिश्रा व दीपक गुप्ता की बेंच ने आदेश दिया कि ये ठेके तुरंत प्रभाव से रद्द कर दिए जाएँ। आदेश में कहा गया है कि 4 सप्ताह के अंदर नई निविदा निकाली जाए तथा उनमें महिला बचत समूहों का समावेश कराया जाए।
वे दल और नेता जो पंकजा मुंडे के ख़िलाफ़ चिक्की घोटाले को लेकर आक्रामक थे, अब नए सिरे से हमला करेंगे और ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ का नारा देने वाली सरकार को घेरेंगे।
पंकजा मुंडे के भाई धनंजय मुंडे जो अभी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में हैं और विधान परिषद में विरोधी पक्ष के नेता हैं, उनके लिए यह मनमाँगी मुराद से कम नहीं है। उल्लेखनीय है कि एनसीपी ने इस बार लोकसभा चुनाव के प्रचार की शुरुआत भी पंकजा मुंडे के गढ़ बीड़ से की है।
बीड़ लोकसभा सीट से वर्तमान में पंकजा की बहन डॉ. प्रीतम गोपीनाथ मुंडे सांसद हैं। पिता के निधन के बाद हुए उपचुनाव में प्रीतम निर्वाचित हुई थीं। बीड़ में हुई एक सभा में भी धनंजय मुंडे ने पंकजा पर तंज कसा था कि वे एनसीपी को ख़त्म करने की बात करतीं हैं लेकिन एनसीपी कोई चिक्की नहीं है।
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