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भीमा कोरेगांव: ठाकरे सरकार में टकराव शुरू?, उद्धव से नाख़ुश हैं पवार!

भीमा कोरेगांव प्रकरण को लेकर क्या महाराष्ट्र की महाविकास अघाडी की सरकार में शामिल तीनों दलों के बीच टकराव शुरू हो गया है? दूसरी बार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बने चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाडी की सरकार में अंतर्विरोध शुरू हो गया है और आने वाले कुछ महीनों में यह सरकार गिर जाएगी। लेकिन क्या वाकई सरकार में आपसी मतभेद शुरू हो गए हैं? 

ख़बरों के मुताबिक़, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भीमा कोरेगांव मामले की जांच एनआईए को सौंपने की मंजूरी दे दी है। जबकि उद्धव सरकार के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने इस मामले की एनआईए द्वारा जांच के केंद्र के निर्णय को अदालत में चुनौती देने की बात कही थी। लेकिन अब राज्य सरकार को क़ानूनविदों द्वारा सलाह दी गयी है कि इस मामले को देश की सुरक्षा से जोड़कर केंद्र सरकार ने यह जांच अपने पास ले ली है लिहाजा इसे अदालत में चुनौती देना ठीक नहीं होगा क्योंकि वहां राज्य सरकार हार जाएगी। इससे राज्य सरकार की बदनामी होगी और इसी आधार पर उद्धव ठाकरे ने भीमा कोरेगांव मामले की जांच एनआईए को सौंपने की मंजूरी दे दी। बताया जाता है कि शरद पवार ठाकरे के इस फ़ैसले से ख़ुश नहीं हैं। 

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सवाल यह उठता है कि क्या शरद पवार जैसे नेता जिनके पास बहुत लंबा प्रशासनिक अनुभव है, क्या उन्हें इस मामले की पेचीदगियाँ मालूम नहीं हैं? शरद पवार ने मुख्यमंत्री के निर्णय के बाद कहा कि गृह मंत्रालय के ही कुछ अधिकारियों की इस मामले की जांच को लेकर जो आपत्तियां थीं, उन्हें ध्यान में रखना चाहिए था। दरअसल, जब इस प्रकरण में केंद्र ने हस्तक्षेप किया तो उद्धव ठाकरे और शिवसेना दोनों ने इस बात पर विरोध जताया था और सवाल खड़ा किया था कि क्या केंद्र सरकार इस जांच में किसी को बचाना चाहती है? लेकिन अब ठाकरे के इस फ़ैसले के बाद कई सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। 

पवार ने उठाये थे सवाल 

ठाकरे सरकार बनने के बाद से अब तक भीमा कोरेगांव मामले में क्या-क्या हुआ, इस पर भी नज़र डालने की ज़रूरत है। सरकार बनते ही इस मामले को लेकर शरद पवार ने सवाल उठाया। 23 जनवरी, 2020 को गृह मंत्रालय ने समीक्षा बैठक बुलाई जिसमें गृहमंत्री अनिल देशमुख, गृह राज्यमंत्री सतेज पाटिल और शंभुराजे देसाई के अलावा पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। 24 जनवरी को शरद पवार ने भीमा कोरेगांव की जांच पर प्रेस कॉन्फ़्रेंस में सवाल उठाये और कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले में दख़ल देकर पुलिस अधिकारियों की मदद से सामाजिक और मानवाधिकार के लिए संघर्ष करने वाले लोगों को निशाना बनाया और उनके ख़िलाफ़ मामले दर्ज किये। पवार ने यह भी कहा था कि इन आरोपियों के ख़िलाफ़ जो सबूत दिए गए वे भी आधे-अधूरे हैं और उन्हें ‘अर्बन नक्सल’ कहकर सरकार ने कुछ और ही कहानी गढ़वायी है जिसका सच सामने आना चाहिए। पवार ने यह भी कहा था कि उन्होंने इस संबंध में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र भी लिखा है। 

केंद्र के दख़ल से विवाद

पवार के इस पत्र को लेकर मुख्यमंत्री ठाकरे और गृहमंत्री देशमुख की बैठक भी हुई। बैठक में इस मामले की जांच एसआईटी से फिर से कराने का निर्णय किया गया लेकिन कुछ ही घंटों में यह घोषणा हो गयी कि केंद्र सरकार ने मामले की जांच एनआईए को सौंप दी है। चूंकि शरद पवार ने आरोप पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस पर लगाए थे इसलिए केंद्र सरकार के दख़ल से विवाद तो होना ही था। 

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भीमा कोरेगांव प्रकरण में शरद पवार के दांव को राजनीतिक नजरिये से देखने की भी ज़रूरत है। इस प्रकरण के बाद अर्बन नक्सल का मुद्दा उठा कर बीजेपी और उसकी राज्य सरकारों ने एक विशेष विचारधारा और अपने विरोधियों को देशद्रोही का टैग चस्पा करने की कोशिश की वहीं महाराष्ट्र में इसके बाद दलित वोटों का ध्रुवीकरण भी हुआ। 

भीमा कोरेगांव प्रकरण के बाद दलित राजनीति में प्रकाश अंबेडकर चमक कर आगे आये और उन्होंने वंचित अघाडी बनाकर अलग चुनाव लड़ा तथा लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-एनसीपी के परम्परागत मतों में बड़ी सेंध लगाई और अनेक सीटों के समीकरण बिगाड़ दिए।
ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि पवार इस जांच के माध्यम से दलित समाज का वह वोट बैंक फिर से हासिल करना चाहते हैं। वैसे, इस बार 1 जनवरी के कार्यक्रम में भीमा कोरेगांव में उप मुख्यमंत्री अजीत पवार की उपस्थिति ने भी यही संकेत दिया था। अब देखना है कि जांच के मुद्दे को लेकर इस सरकार में उपजा अंतर्विरोध यहीं थम जाएगा या आगे बढ़ेगा। 

दूसरी ओर, शनिवार से बीजेपी का प्रदेश स्तरीय अधिवेशन नवी मुंबई में शुरू हो रहा है। इससे पहले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल का यह बयान भी आया है कि उनकी पार्टी अब मध्यावधि चुनाव की तैयारी कर रही है। पाटिल का यह बयान बड़े मायने रखता है। यह बयान प्रदेश में बीजेपी के अब अकेले दम पर चुनाव लड़ने का भी इशारा कर रहा है। 

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संजय राय

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