इज़राइली कम्पनी एनएसओ द्वारा विकसित साफ़्टवेयर पेगासस को वहाँ की सरकार ने ‘युद्ध के हथियार’ के रूप में घोषित कर रखा है। इससे भारत में जासूसी कराए जाने के आरोप क्यों लग रहे हैं।
मायावती ब्राह्मणों को लुभाने में क्यों लगी हैं? बसपा अगर विचारधारा के अनुसार चली होती तो क्या आज वोट की तलाश में ब्राह्मण के पास पहुँचने की ज़रूरत पड़ती?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को अपने मन की बात कार्यक्रम में कारगिल विजय दिवस और हमारे फौजियों की शहादत को याद किया है। कारगिल की जंग एक ऐसे फरेब की कहानी है जिसमें दोस्ती के भरोसे को तोड़ा गया।
पांच राज्यों से राज्यसभा की 8 सीटें खाली हुई हैं, जिनके लिए उपचुनाव होना है। लेकिन चुनाव आयोग ने इनमें से फ़िलहाल सिर्फ़ पश्चिम बंगाल की 1 सीट के लिए उपचुनाव कराने का ऐलान किया है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने तो यहाँ तक कहा है कि मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को तो अपना कमिटमेंट पूरा करना पड़ेगा क्योंकि उन्होंने जो वादा किया है, वह मुख्यमंत्री के रूप में किया है।
डॉ. मनमोहन सिंह जब आर्थिक विषयों पर बोलते हैं तो लोग उन्हें कांग्रेस नेता मानकर नहीं सुनते बल्कि एक मंझे हुए अर्थशास्त्री मानकर सुनते हैं। यह तो डॉ. सिंह ही बता सकते हैं कि वे खुद को कांग्रेस नेता मानकर बयान देते हैं अथवा अर्थशास्त्री के नाते बोलते हैं।
बड़े बदलाव किसी तारीख के मोहताज नहीं होते, लेकिन कुछ तारीखें जरूर ऐसी होती हैं जिन्हें कभी इसीलिए नहीं भुलाया जा सकता कि वहां से बदलाव का कारवां शुरू हुआ था।
बाबा तेरा मिशन अधूरा, का नारा देने वाली बीएसपी का दलित आंदोलन अगर भगवान राम से लेकर परशुराम तक पहुंच गया है तो इस सामाजिक बदलाव पर किसी को हैरानी क्यों नहीं होगी।
इज़रायल में निर्मित जासूसी करने वाले पेगासस सॉफ़्टवेयर या स्पाईवेयर की मदद से आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण के नाम पर नागरिक समाज के भी कुछ चिन्हित किए गए सदस्यों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल को भी इसी नज़रिए से देखा जा सकता है।
एनएसओ का कहना है कि वह पेगासस सिर्फ़ सरकारों या उनकी संस्थाओं को बेचती है। तो क्या भारत में भारत सरकार यह कर रही है? या कोई और सरकार इसके ज़रिए भारत के पूरे तंत्र की जासूसी कर रही है? दोनों ही गंभीर चिंता का विषय हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सरकार की योजनाओं और कथित उपलब्धियों का प्रचार ऐसे कर रहे हैं, मानो उन्हें अगले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा का नहीं बल्कि देश का चुनाव लड़ना है।
पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू के बीच लंबे समय से चल रही खींचतान ख़त्म होती नज़र आ रही है। इसके बावजूद पार्टी की अंतर्कलह कम होती क्यों नहीं है?