ओमप्रकाश राजभर ने यह कहकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है कि असदुद्दीन ओवैसी भी उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बन सकते हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में सीएम तो बन नहीं पाए!
ओम प्रकाश राजभर ने हाल ही में अपने 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' की तरफ़ से 5 साल में 5 मुख्यमंत्री और 20 उपमुख्यमंत्री बनाने का ऐलान किया था। राजभर मुसलमानों के बड़े मसीहा के तौर पर उभरेंगे या फिर पिछले चुनाव में जीती हुई अपनी चारों सीटें भी गँवा देंगे?
क़रीब चालीस साल से आरएसएस ने राम जन्मभूमि आंदोलन की कमान अपने हाथ में ही रखी है। और अब मंदिर निर्माण और अयोध्या प्रोजेक्ट की ज़िम्मेदारी संघ के सरकार्यवाह रहे भैयाजी जोशी को सौंपी गई है।
पत्रकार सुरेंद्र प्रताप सिंह को याद करत हुए पत्रकार शैलेश बताते हैं कि किस तरह उन्होंने किसी ख़बर के लिए सबूत जुटाने का सबक एक ग़लती से सीखा और किस तरह 'रविवार' के संपादक उनके साथ खड़े रहे।
ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने रविवार को उत्तर प्रदेश में 100 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। यूपी चुनाव लड़ने का उनका मक़सद क्या है?
इमरजेंसी को भारत एक ऐसे भयावह काल की तरह याद रखता है जिसने सभी संस्थाओं को विकृत करके भय के वातावरण का निर्माण किया था। लेकिन इमरजेंसी या इस तरह के हालात में मीडिया की क्या भूमिका है?
बीजेपी और आरएसएस के लिए यूपी चुनाव ज़्यादा बड़ा मसला है। बीजेपी और संघ यूपी को किसी भी क़ीमत पर नहीं गँवाना चाहते। दक्षिणपंथी राजनीति के लिए यूपी का चुनाव कई लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहा है।
आपातकाल की 46वीं वर्षगाँठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का छोटा सा ट्विटर संदेश ख़ासा दिलचस्प तो है ही राजनीतिकअंतर्विरोध की ज़बरदस्त गुत्थियों में उलझा हुआ भी है। उनकी यह टिप्पणी कश्मीर के संदर्भ में कैसे मायने रखता है?
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले पुलिस ने कथित 'धर्म परिवर्तन रैकेट' का खुलासा किया है। क्या इसके पीछे कुछ भी सच्चाई है और क्या मुसलिम धर्म जबरन धर्मांतरण की इजाज़त देता है?
आपातकाल को उन लोगों ने भी बढ-चढकर याद किया, जो अपनी गिरफ़्तारी के चंद दिनों बाद ही माफ़ीनामा लिखकर जेल से बाहर आ गए थे, ठीक उसी तरह, जिस तरह विनायक दामोदर सावरकर अंग्रेजों से माफ़ी माँग कर जेल से बाहर आए थे।
मुझे आज भी इस बात पर अचरज होता है कि एक बहुत कम उम्र के छात्र से प्रशासन इतना क्यों डरा हुआ था कि परीक्षा देने के लिए भी कॉलेज तक ले जाने के लिए तैयार नहीं था।
21-22 मार्च 1977 की मध्य रात्रि थी जब हमने आकाशवाणी पर उस समय के मशहूर समाचार वाचक अशोक वाजपेयी की तैरती आवाज़ में पहली बार सुना कि प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी रायबरेली से चुनाव हार गयी हैं।