हमें संभल पाने का मौक़ा भी क्यों नहीं मिल रहा है? एक शोक से उबरते हैं कि दूसरा दस्तक देने लगता है! हो सकता है कि हम जो अभी क़ायम हैं, हमारे बारे में भी कल ऐसा ही हो।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता जसवंत सिंह का निधन हो गया। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में 1996 से 2004 के बीच रक्षा, विदेश और वित्त जैसे मंत्रालयों का ज़िम्मा संभालने वाले जसवंत सिंह को कैसे याद किया जाएगा?
बॉलीवुड में ड्रग्स के बारे में ममता कुलकर्णी, संजय दत्त और राहुल महाजन बरसों पहले जो ख़ुलासे कर चुके, रिया चक्रवर्ती और दीपिका पादुकोण जैसों की जाँच कर एनसीबी को क्या कोई नयी जानकारी मिलेगी। ज़ाहिर है कि ड्रग्स कारोबार को रोकने में एनसीबी पूरी तरह विफल रही है।
किसान नेता अशोक तिवारी कहते हैं कि यदि विकास का मौजूदा मॉडल चंबल में लागू हो सका तो यहाँ का ग़रीब और निर्धन बन चुका किसान ग़लत डगर पर चलकर हथियार उठाने को मजबूर हो जायेगा।
सीएए-एनआरसी का विरोध करने वाले लोगों को दंगों का अभियुक्त बनाने, उन पर यूएपीए और राजद्रोह का मुकदमा लगाने से कई सवाल खड़े होते हैं। राजनीतिक विरोधियों से राजनीतिक तरीकों से निपटने के बजाय क्या राज सत्ता का दुरुपयोग करते हुए विरोध की आवाज़ को दबाया जा रहा है।
राज्यसभा उप सभापति हरिवंश कृषि विधेयकों पर फँसी समूची मोदी सरकार का संकटमोचक बने। जानिए, पारदर्शी समाजवादी पत्रकार से सांसद और फिर उप सभापति बनने तक का कैसा रहा उनका सफर।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुरक्षा परिषद का विस्तार करने की बात कही। उन्होंने कहा कि जमाना काफी आगे निकल चुका है लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ 75 साल पहले जहां खड़ा था, वहीं खड़ा है।
विश्व बैंक की मदद से चंबल के बीहड़ों के समतलीकरण और इसे कृषि योग्य बनाने की कोशिश शुरू हुई है। इसमें साज़िश की आशंका जताई जा रही है और कहा जा रहा है कि तबाह हो चुके किसान 'बाग़ियों' की नई फौज के रूप में जन्म लेंगे।
हिंदी के प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का आज जन्मदिन है। 23 सितंबर 1908 को जन्मे दिनकर की किताब ‘संस्कृति के चार अध्याय’ हर भारतीय को पढ़नी चाहिये। यह किताब भारत की सांस्कृतिक यात्रा है।
भारत में सरकारी शिक्षा, स्वास्थ्य, दूरसंचार और उड्डयन क्षेत्र के डूबने का भरपूर उदाहरण हमारे सामने है। सरकारी क्षेत्र में कमियाँ होती हैं, लेकिन प्राइवेट के आने से पहले और बाद में इन्हें और बढ़ाया जाता है।
कृषि विधेयकों पर राज्यसभा में समूची सरकार फँसी हुई थी, ऐसे में हरिवंश उसके संकटमोचक बन कर उभरे हैं। उन्होंने सदन की तरफ़ बिना आँख उठाए एक झटके में उस सरकार को उबार दिया जिसकी साँस अटकी हुई थी। यह कोई मामूली बात तो नहीं है।