रामकृष्ण मिशन और सिस्टर भगिनी निवेदिता के लोगों को सफाई के प्रति जागरूक करने और ज़मीन पर काम करने के कारण ही कोलकाता मुंबई के मुक़ाबले प्लेग से ज्यादा अच्छे ढंग से निपट सका।
क्या कोरोना वायरस के ख़तरे को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है? तो यह क्यों नहीं बताया जाता कि टी.बी., फ्लू, मलेरिया, डेंगू, मधुमेह, दिल का दौरा और अन्य कई चिकित्सा समस्याओं से इस काल के दौरान कितने भारतीयों की मृत्यु हुई?
अगर चुनाव आयोग कोरोना के संकट के दौरान महाराष्ट्र में चुनाव कराने का आदेश दे सकता है तो कई राज्यों की राज्यसभा और विधान परिषद की सीटों के चुनाव को क्यों टाला जा रहा है?
भारत की विदेश नीति के सामने एक बड़ी दुविधा आ फँसी है। भारत शीघ्र ही विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ का अध्यक्ष बननेवाला है। यहाँ भारत के लिए सवाल यह है कि इस मुद्दे पर वह किसका समर्थन करे, चीन का या ताइवान का?
मैं बार-बार पीएम मोदी से कुछ ऐसा ही करने और 'नेशनल गवर्नमेंट' बनाने की विनती कर रहा हूँ जैसा कि पीएम चर्चिल ने मई 1940 में नाज़ी आक्रमण के ख़तरे का सामना करते समय किया था।
देश की वित्त मंत्री आरोप लगा रही हैं कि राहुल गाँधी ड्रामेबाज़ी कर रहे हैं। वित्त मंत्री ने ‘दुख’ के साथ कहा कि राहुल ने मज़दूरों के साथ बैठकर, उनसे बात करके उनका समय बर्बाद किया।
लॉकडाउन की मार शहरों और गाँवों, दोनों पर पड़ी है। इसका असर कृषि कार्यों पर भी हुआ है और ग़ैर कृषि कार्यों पर भी। लाखों लोगों को इस वजह से बेरोज़गार होना पड़ा है।
शेषाद्रि चारी ने मोदीजी के ‘भारतीय आत्मनिर्भरता’ पर एक लेख लिखा है। उनका कहना है कि मोदी जी का विचार वही है जो-गाँधीजी के आधुनिकीकरण का था- हाँ, पश्चिमी निर्भरता- नहीं’। शेषाद्रि चारी की बातें खोखली और अर्थहीन हैं।
कोरोना संकट का दंश भारत में रहने वाले ग़रीब-मजदूर झेल रहे हैं। जबकि संपन्न वर्ग के लोगों पर इसका ज़्यादा असर नहीं हुआ है और वे आराम से घरों में बैठे हैं।
क्या हम नब्बे दिन बाद ही पड़ने वाले इस बार के पंद्रह अगस्त पर लाल क़िले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के तिरंगा फहराने और सामने बैठकर उन्हें सुनने वाली जनता के परिदृश्य की कल्पना कर सकते हैं?
रमज़ान के पवित्र महीने में दरिंदों ने काबुल के एक मैटरनिटी हॉस्पिटल पर ऐसा हमला किया जिसमें 24 लोगों की जानें चली गयीं। इसे युद्ध अपराध का दर्जा देना भी पर्याप्त नहीं।
प्रधानमंत्री के लॉकडाउन राहत कोष से दी जाने वाली भामाशाही रहमतें, औद्योगिक अस्पताल के बाहरी बरामदे के टूटे-फूटे बेड पर लेटे नज़ीर अहमद के फ़ुटवियर उद्योग के लिए 'वेंटिलेटर' का इंतज़ाम कर पाएँगी?
लॉकडाउन के कारण हज़ारों मजदूरों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। इससे वंचित तबके को भयंकर नुक़सान हुआ है लेकिन बीजेपी समर्थक तबके पर कोई असर नहीं होगा।