6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की 36वीं बरसी पर श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के साथ खालिस्तान की खुली हिमायत करने वाले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के प्रधान भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल को शिरोमणि अकाली दल (शिअद) अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने पार्टी की कोर कमेटी में शामिल कर लिया है।
यह कदम उस वक्त उठाया गया है, जब एसजीपीसी प्रधान के खालिस्तान के समर्थन वाले रुख पर सवालिया निशान उठ रहे हैं और इस बाबत प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर सिंह बादल और अकाली दल से सफाई मांगी जा रही है।
सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था एसजीपीसी के प्रधान के अकाली दल की कोर कमेटी का सदस्य बनने के बाद यह भी साफ हो गया है कि अकाली दल अब 'धर्म और राजनीति' के पुराने एजेंडे पर वापस लौट रहा है।
सुखबीर सिंह बादल ने लोंगोवाल को पार्टी की कोर कमेटी में शामिल करके एक तीर से कई निशाने साधे हैं और नए विवादों को जन्म दे दिया है। पंजाब में इसका विरोध भी शुरू हो गया है।
6 जून को भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के साथ मिलकर सिखों के लिए अलग देश खालिस्तान की हिमायत की और 8 जून को सुखबीर ने उन्हें अपनी पार्टी की 19 सदस्यीय कोर कमेटी का सदस्य बना दिया। तब तक सभी यह पूछ रहे थे कि अकाली दल का, एसजीपीसी प्रधान और श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार के द्वारा खालिस्तान की हिमायत करने पर क्या रुख है?
तो क्या अब एसजीपीसी प्रधान को कोर कमेटी में शामिल करके बादलों और उनकी सरपरस्ती वाले अकाली दल ने अपना रुख साफ़ कर दिया है?
एसजीपीसी पर बादलों का कब्जा
एसजीपीसी सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था है और इसे बाकायदा संवैधानिक दर्जा भी हासिल है। यह गुरुद्वारों की देखभाल करती है और इसका सालाना बजट खरबों रुपये का है। अमृतसर स्थित श्री स्वर्ण मंदिर साहिब और अन्य बड़े-छोटे गुरुद्वारे इसके एकमुश्त नियंत्रण में हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तरह ही इसके सदस्यों का चुनाव होता है और वह भी पूरी संवैधानिक प्रक्रिया के जरिए। सदस्य बाद में प्रधान का चुनाव करते हैं। लंबे अरसे से एसजीपीसी की कार्यकारिणी में बादल समर्थक ही पहुंचते रहे हैं। इसलिए अध्यक्ष बादलों (प्रकाश व सुखबीर) की पसंद का होता है। मौजूदा अध्यक्ष भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल भी बादलों के खास चहेते हैं।
लोंगोवाल के अकाली दल की कोर कमेटी का सदस्य बनने का मतलब है कि अब एसजीपीसी पर बादलों का अपरोक्ष नहीं सीधा कब्जा है। प्रधान ही जब उनके दल की कार्यकारिणी में है तो इसका दूसरा कोई अर्थ नहीं।
चुप हैं अकाली नेता
9 जून को चंडीगढ़ में सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई में शिरोमणि अकाली दल की अहम बैठक हुई। इसमें तमाम मुद्दे उठे लेकिन श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार और एसजीपीसी प्रधान की खालिस्तान की हिमायत के बाद बरपे तूफान का मुद्दा सिरे से गायब था। कहा जा रहा था कि बैठक में सुखबीर सिंह बादल अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ विचार-विमर्श करके इस पर कुछ बोलेंगे। चर्चा तो बहुत दूर की बात है, इस पर किसी ने जुबान तक नहीं खोली।
बैठकों के बाद अक्सर मीडिया से मुखातिब होने वाले सुखबीर सिंह बादल इस बार मीडिया से दूर ही रहे। शिरोमणि अकाली दल का कोई भी नेता फिलवक्त इस मामले पर बातचीत के लिए तैयार-राजी नहीं है। संपर्क करने पर यही जवाब मिलता है, "किसी अन्य विषय पर बात कीजिए, इस पर हम नहीं बोलेंगे।" एक नेता ने इशारों में बताया कि बोलने की इजाजत नहीं है!
विरोध में उतरी आम आदमी पार्टी
उधर, विपक्षी दल आम आदमी पार्टी (आप) ने इस मामले में मोर्चा खोल दिया है। आप प्रवक्ता और विधायक प्रोफेसर बलजिंदर कौर कहती हैं, "सियासी पार्टियों में धार्मिक नुमाइंदों को शामिल करना नागवार रिवायत है। एसजीपीसी मुखी लोंगोवाल को शामिल करके अकाली दल ने गलत परंपरा को आगे बढ़ाया है। यह संविधान की भी खुली अवहेलना है। हमारी पार्टी चुनाव आयोग में पूरे तथ्यों के साथ जाएगी और मांग करेगी कि अकाली दल की मान्यता इस आधार पर रद्द की जाए कि उसने एक धार्मिक संस्था के रहनुमा को अपनी कोर कमेटी में शामिल किया है।"
बठिंडा ग्रामीण सीट से विधायक रूपिंदर कौर रूबी के अनुसार, "सुखबीर सिंह बादल ने गोबिंद सिंह लोंगोवाल को शिरोमणि अकाली दल की कोर कमेटी का सदस्य बना कर एसजीपीसी की अध्यक्षता अधिकृत रूप से अपने अधीन कर ली है। लोंगोवाल को सदस्य बनाना संविधान का उल्लंघन ही नहीं बल्कि सिख मर्यादा का अपमान भी है।"
बहरहाल, एसजीपीसी प्रधान भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल के शिरोमणि अकाली दल के कोर कमेटी में शामिल होने के बाद पंथक सियासत और पंजाब में नई बहस का आगाज हुआ है। यकीनन, यह बहुत संवेदनशील मामला है।
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